Wednesday, December 22, 2010

माँ क्यों रोती है ?




एक बालक ने माँ से पूछा माँ औरते रोती क्यों हैं
माँ ने झट जवाब दिया - हम औरत है यूँ रोती हैं
बेटा बोला - माँ तेरा जवाब मुझे समझ नहीं आया
माँ ने पट जवाब दिया इसे तो कोई न समझ पाया


लड़के ने पिता से पूछा कि पापा माँ क्यों रोती है
पिता ने कहा -ये औरतें बिना कारण रोती रहती हैं
लड़का थोडा बड़ा होकर भगवान से ये प्रश्न पूछता है
भगवान् चक्कर मैं पड़े अब उन्हें कुछ ना सूझता है

भगवान परेशान होकर इन्टरनेट कैफे मैं जाता है
जिसको कोई न बताता उसे गूगल- देव बताता है
जब मैंने औरत बनाईं मैंने उसे विशिष्ट बनाया
पूरी धरा का भार उठाने कंधो को मज़बूत बनाया


स्पर्श मैं जादू हो इसलिए उसके हाथ तो नरम बनाए
उसको आतंरिक शक्ति दी ताकि संतान पैदा कर सके
ताकत दी ताकि दुत्कार खाकर भी बह सेवा कर सके
मैंने उसे मृदुलता दी ताकि बह सबसे प्यार कर सके

मैंने उसमे ये समझ पाने की बुद्धिमत्ता भर दी
कि एक अच्छा पति कभी ना हो सकता बेदर्दी
कभी वो जांचता है कि हमेशा ही तुम साथ हो
उसे तुम माफ़ करदो तुम्ही तो उसकी सांस हो


इन सबके बदले मैंने उसे रोने को आंसू दिए
जब जरूरत हो इनसे काम ले जब तक जिए
तुम ये समझो यही उसकी एक कमजोरी है
वरना वो उतनी ही सशक्त है जितनी भोरी है



जब वह आंसू बहाए तो उसे ये अहसास देना
भले रोये उसे बताना कि वो कितनी प्यारी है
रोकर भी उसका दिल ख़ुशी से चहक उठेगा

और तुम्हारा घर भी खुशबू से महक उठेगा,

Saturday, December 18, 2010

चल पगली तैयार खडा तेरा उड़न खटोला रे - आत्म प्रकाश शुक्ला ( प्रसिद्ध गीतकार )

बीते वर्ष मॉस पखवारे एक एक कर सांझ सकारे
थाम उम्र का हाथ बुढापा हंसकर बोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़नखटोला रे



ख़तम हुआ सब खेल तमाशा अब किस अभिनय की अभिलाषा
थोथे मंचो की तलाश मे भूल गया अपनी परिभाषा
लिए गंध की प्यास मन हिरन वन-वन डोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़न खटोला रे



भोर भई हंस खेल गवाई दोपहरी भर दौड़ लगाईं
गोधूली मे थककर बैठी सांझ देख नैना भर लाइ
अमित युगों से रही बदलती पचरंग चोला रे
चल पगली तय्यार खडा तेरा उड़नखटोले रे



अमृत सिन्धु धारे अंतर  में नाहक डूब मरी पोखर में
प्यासी धरा तृप्त हो जाये इतनी ओस कहाँ अम्बर में
अंतर रतन बेचकर पगली पाहन तोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़न खटोला रे


शब्द रूप रस गंध छुअन में चुम्बन दर्शन आलिंगन में
सारी साँसे हवन हो गयी कुछ काया मे कुछ कंचन में
अब काहे पछताए पिया का आया डोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़न खटोला रे

Thursday, December 9, 2010

परावाणी:The Eternal Poetry: जब जब शासक,खल के समक्ष झुकता है --

परावाणी:The Eternal Poetry: जब जब शासक,खल के समक्ष झुकता है --: "ki Nahi agar Janta Khamosh rahengi aisa hota rehanega"

Saturday, November 27, 2010

कालजयी - कवि कमलेश


जब तेरी जेब मैं 
ना हो फूटी कौड़ी और 
ताजमहल खरीदने का ख़याल आये, 
तो समझना तू कालजयी है..

चहुँ ओर हो निराशा 
और मन पर गम की बदली छाए 
मगर तू मुस्कुराए 
तो समझाना तू कालजयी है. 

लोग मारें तुझे नफ़रत से पत्थर 
सारा समाज तुझे सताए 
और तुझे उन्हीं पर प्यार आये 
तो समझना तू कालजयी है.

हर और हो अन्धेरा और 
तुझको हो तम ने घेरा 
तुझसे  मिलकर सब उमंग से भर जाये 
तो समझना तू कालजयी है 

ठिठुरती हुई ठण्ड में 
अलाब तापते लोगों को देखकर 
तेरे दिल में नहाने का ख़याल आये 
तो तू समझना तू कालजयी है.
यह रचना मेरे अभिन्न मित्र भाई कमलेश शर्मा की मुझे समर्पित कविता है. भाई कमलेश मनचा संचालन की अपनी शैली और विशिष्टता के लिए भरतपुर संभाग का एक जाना माना नाम है.    




  

Sunday, November 21, 2010

एक मुलाक़ात प्रसिद्ध गीतकार सोम ठाकुर से - हरि शर्मा


पिछली पोस्ट पर एक वादा किया था अपने आप से और आप सभी पाठकों से कि अगली पोस्ट पर सों ठाकुर से इस ब्लॉग के लिए की गयी बातचीत को ही प्रकाशित किया जाएगा. कार्य की व्यस्तता ने इतना समय तब से नही दिया कि बैठ कर इस काम को पूरा कर सकूं. आज दीपावली है और हमारे पास समय है उस बातचीत की यादों को ताज़ा करने का. 

आज के हमारे अतिथि, प्रसिद्ध गीतकार सोम ठाकुर के लिए मैं अकसर ये सोचता हू कि शरद पूर्णिमा की उज्जवल रात को ताजमहल पर पड़ने वाली किरणे अधिक शीतलता देती  हैं या सोम ठाकुर के स्वर से निकली कविता अधिक शीतला प्रदान करती है. ऐसे ही मेरे लिए ये भी कौतूहल का बिषय रहा है कि आगरे के प्रसिद्ध पैंठे को खाने से उनके गले की मिठास आज भी बरकरार है या पैंठे में मिठास इसलिए है क्युकी सोम ठाकुर जी वहां सोम वर्षा करते हैं. 

हरि शर्मा  - हिन्दी कवि सम्मेलनों के सबसे सम्मानित्र गीतकारो में से एक सोम जी मैं और मेरा परिवार  मेरे घर पधारने पर आपका हार्दिक स्वागत करते है. आपके पधारने से हमें बहुत प्रशन्नता हुई है. 
सोम ठाकुर - मुझे भी आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई है. कविता और गीतों के प्रति आपकी रूचि मुझे खुशी दे रही है.

हरि शर्मा    - सोम जी आपका जन्म कहाँ और कब हुआ ? 
सोम ठाकुर - मेरा जन्म आगरा में ५ मार्च १९३४ को हुआ

हरि शर्मा    - आपकी प्रारम्भिक शिक्षा कहाँ हुई ?
सोम ठाकुर - चौथी कक्षा तक मेरी पढ़ाई लिखाई घर पर ही हुई. घर पर ही एक अध्यापक पढ़ाने आते थे.  क्योकि मैं एक दुर्लभ   
इकलौती संतान था. मुझसे पहले 5 बच्चे ज़िंदा नही रहे, इसलिए मुझे कही बाहर नही जाने दिया गया. पांचवी कक्षा में मेरा प्रवेश राजकीय विद्यालय आगरा में हुआ. वहां से मैंने हाई स्कूल किया. पहले वो हाई स्कूल था अब वो इंटर कॉलेज हो गया है . 

हरि शर्मा    - इसके आगे की यात्रा आपकी कैसी रही ?
सोम ठाकुर - हाई स्कूल के बाद मैंने आगरा कॉलेज आगरा से जीव विज्ञानं बिषय के साथ  इंटर किया और फिर एक साल बी. एस. सी. में पढ़ा. लेकिन तब मेरी रूचि साहित्य और हिंदी कविता की तरफ हो गयी. फिर मैंने अंगरेजी साहित्य और हिंदी साहित्य के साथ बी.ए. किया और फिर हिंदी से एम ए किया और उसी कॉलेज में १९५९ से पढ़ाने लगा. १९५९ से १९६३ मैंने आगरा कॉलेज में पढ़ाया और फिर १९६३ से १९६९ तक सेन्ट जोन्स कॉलेज आगरा में पढ़ाया उसके बाद में इस्तीफा देकर मैनपुरी चला गया. 

हरि शर्मा    - मैनपुरी में आपने कहा पढ़ाया ?
सोम ठाकुर - मैनपुरी में नॅशनल कॉलेज भोगांव में मैंने बिभागाद्यक्ष के रूप में कार्य किया. 

हरि शर्मा   - आप भोगांव रहे हैं ?  मैंने भोगांव और  अलीपुर खेडा में नौकरी की है. इस कॉलेज का भोगांव में खाता था. अलीपुर खेडा में मैं शाखा प्रबंधक था तब ये कॉलेज रास्ते में पड़ता था.
सोम ठाकुर - अच्छा, वहा मैंने १९८४ तक नौकरी की फिर मैं अमेरिका चला गया. लेकिन अमेरिका जाने से पहले में कनाडा गया फिर केंद्र सरकार की तरफ से हिंदी के प्रसार के लिए मारीसस गया फिर अमेरिका चला गया. वहा मैं २००४  तक रहा फिर यहाँ वापिस आया तो मुझे मुलायम सिंह जी ने उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया और राज्य मंत्री का दर्जा दिया. वहा मैं साढ़े  तीन साल रहा. फिर मैं आगरा लौट आया. 

हरि शर्मा    - आपने अध्ययन, अध्यापन और हिन्दी सेवा की यात्रा के बारे  बताया. कविता से आपका जुडाब कैसे हुआ ?
सोम ठाकुर -   शुरूआत मैं तो हम जानते ही नहीं थे कि कविता क्या होती है, मेरे एक दोस्त और सहपाठी हैं शेर बहादुर ठाकुर थे जो आज बहुत बड़े भाषा विज्ञानी माने जाते हैं मेरा घर और उनकी कोठी पास पास थे और मेरे यहाँ बिजली नही थी उनके यहाँ थी. कविता से मेरा वास्ता नही था. गला अच्छा था सो फिल्मों के गाने चाव से गाता था. एक दिन उन्होंने कहा - som कविता सुनाने चलेंगे, सो हम उनके साथ चले गए. 

हरि शर्मा    - कैसा रहा ये पहला कवि सम्मेलन ?
सोम ठाकुर - वहा पहुचकर मैंने कहा कि खड़े होकर सुनेंगे. पसंद आये तो और रुकेंगे नही वापिस चले जायेंगे. उन दिनों हमारे पिताजी के सख्त आदेश थे कि दिए जलने से पहले घर जरूर आ जाना. कुछ कविता सुनी और हमें अच्छी लगी तो और सुनी. लोगों ने भी उनकी कविताओं को करतल ध्वनि दी और खूब शाबासी दी. हमें भी लगा कि ऐसी कविता हम भी कर सकते हैं. मैंने उन दोस्त से कही ये बात, तो वे बोले कि ये तो ईश्वर प्रदत्त गुण है. भावनाओं से मैं परिचित था और कंठ मेरा अच्छा था तो मैं पास के एक वाचनालय गया और वहा पता चला कि उन कवियों मैं से सर बलबीर सिंह रंग जी का कविता संग्रह प्रकाशित हुआ था. मैं जिस कवि का नाम लूं उसका कोई कविता संग्रह वहा नही था वो भी झुंझला गया थोड़ा. फिर उसने १०-१५ कविता संग्रह मेरे सामने रखे. उनमे दीक्षाना थी, जिसमे महादेवी जी की कविताएं और उनके बनाये चित्र थे.

इस ब्लॉग के पाठको से लंबा इंतज़ार कराने के लिए खेद प्रकट करता हूँ . पहले इरादा था कि एक ही पोस्ट में इसे पूरा कर लूंगा पर समयाभाव की कारण बाकी की बातें अगली पोस्ट में होंगी.
निरंतर ......
   
   
  




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Tuesday, October 26, 2010

एक मुलाक़ात सुप्रसिद्ध गीतकार सोम ठाकुर से


हिन्दी और बृज भाषा के सुप्रसिद्ध गीतकार श्रद्धेय सोम ठाकुर पिछले दिनों जयपुर आये. गीत चांदनी कवि सम्मलेन जो कि देश में अपनी तरह का अकेला आयोजन है और तरुण समाज प्रति वर्ष शरद पूर्णिमा के बाद के शानिवार की रात को आयोजित करता है.  उसमें अन्य गीतकारो के साथ .अपने संस्कार, माधुर्य और राष्ट्रीय चेतना से भरे गीतों को अपने मीठे कंठ से गाकर मुग्ध करने वाले सोम जी इस कवि सम्मलेन का  आकर्षण थे.

कवि सम्मलेन की समाप्ति पर जैसे कि मेरी आदत है अपने मनपसंद कवियों से मिलने की, तो मैं सोम जी से भी मिला और जब पता चला कि वो रविवार को जयपुर ही रुकेंगे तो मैंने उनसे एक ब्लॉग साक्षात्कार के लिए निवेदन किया जिसके लिए उन्होंने सहर्ष स्वीकृति दे दी.  

ये ब्लॉग साक्षात्कार रविवार २४.१०.२०१० को मेरे निवास पर हुआ और उससे पहले कवि सम्मलेन की एक घटना बताना चाहता हूँ. मेरी आदत है कि जो कवि मुझे पसंद हैं,  उनके गीत की पंक्तियाँ या गीत नही मैं पूरे कवि को याद कर लेता हूँ. यहाँ पूरे कवि से मतलब उनकी लोकप्रिय रचनाये. ये कहानी श्री आत्म प्रकाश शुक्ला जी  से शुरू हुई फिर बच्चन जी,  नीरज जी, सोम जी, डा. कुमार विश्वास, डा. विष्णु सक्सेना, कुंवर जावेद तक पहुँची है. तो सोम जी अपने जागरण गीत पर अटक गए. थोड़ी देर प्रयास किया याद करने का फिर मैंने जोर से बोलकर उन्हें आगे की पंक्तिया याद दिलाये और उन्होंने गीत पूरा किया. यही घटना २००० की गीत चांदनी में कुमार विश्वास के साथ भी हुई थी. तब डा. कुमार विश्वास अपनी अचर्चित रचना रूपा रानी बड़ी सयानी ........ को बीच में भूल गए तो थोड़ी देर बाद मेरे से बोले कि शर्मा जी बताइये ना आगे क्या है. ऐसी घटनाए जिन्दगी भर याद रहती हैं. अभी के लिए श्री सोम ठाकुर जी का ये नवगीत पढ़िए. अगली पोस्ट में सिर्फ उनसे मुलाक़ात पर बात होगी. 
  

   




Sunday, October 3, 2010

अब आलोचना छोडो और देखो राष्ट्रमंडल खेलों के तैयार मैदानों को


जगमग करती इमारत  
और सामने खड़े
पूरे देश के स्वाभिमान दद्दा ध्यान चंद

आहा कितना सुन्दर कितना प्यारा
तीन लोक में सबसे न्यारा

यहाँ पहलवान करेंगे जोर अजमाइश

तैराकों का यहाँ होगा मुकाबला

यहाँ होगी दौड़ भाग  की प्रतियोगिताएं.
एक और नज़र डालो इस सुन्दर मैदान पर

बड़ी मेहनत से सजाया गया है ऐसे मैदानों को

यह देखो वास्तु कला का अनुपम नमूना

यहाँ खेला जाएगा चिड़िया बल्ला
यहाँ होनी है टेनिस की जंग
वाह क्या सीन है

अति सुन्दर
यहाँ खेला जाएगा चिड़िया बल्ला


अभी तक इन खेलों की तैयारी को लेकर जितनी बहस, आलोचना हुई वो अलग बात है पर अब जो अच्छा हो गया है उसके लिएय आभार प्रकट करें. और सकारात्मक भाव से इस आयोजन की सफलता की कमाना करें.

Wednesday, September 29, 2010

मेरी ब्लॉग यात्रा - जोधपुर ब्लोगर मिलन की तैयारी

पूर्व में  मैंने अपनी ब्लॉग यात्रा के काव्य माय संस्मरण लिखे थे उस कड़ी को आगे बढ़ा रहा हूँ. जोधपुर ब्लोगर मिलन मेरी ब्लॉग यात्रा का एक महत्वपूर्ण पडाब था. यादो के सहारे इसे स्मरण की कोशिश की है. जिन साथियो ने इस क्रम के पिछले लेख नही पढ़े है उनके  लिंक नीचे दी जा रही है. 



अब तक मैंने जितना गीत सुनाया है
मेरे मन का भाव पोस्ट पर आया है



एक दिवस था मिला एक शुभ समाचार
अनवरत के लेखक श्री दिनेश के बारे  मे
वो आयेंगे निज काम जोधपुर नगरी मे
हमने उनको मिलने  का प्रस्ताव किया



थे अहोभाग्य इस छोटे  मोटे ब्लोगर के
वकील साहब ने दूरभाष सम्पर्क किया
खुद ही मिलने वो आये मेरे ओफ़िस में
ऐसे मेरा उनसे पहला सम्पर्क हुआ

जब मिले बड़े छोटे ब्लोगर तब ही
औरो से भी मिलाने हमने भी ठानी
तय हुआ दिवस तो  करी सूचना भी
यूँ  प्रथम जोधपुर ब्लोगर मिलन हुआ

पहले तो सक्रिय ब्लोगरो की खोज करी
फिर उनको दी इत्तला सबसे मिलने की
राकेश भाई से परिचय था पहले से ही
फिर मिली शोभना हुई बात इस मिलने की 

कुश से भी कीन्ही बात हुए वो भी राजी 
संजय व्यास को भी फिर ढूढ़ निकाला था 
छः लोगो का उस दिन मिलना पक्का था
सबने आकर इस अवसर को सम्मान दिया.  
http://hariprasadsharma.blogspot.com/2010/02/blog-post_15.html

http://hariprasadsharma.blogspot.com/2010/02/blog-post_16.html



http://hariprasadsharma.blogspot.com/2010/06/1.html
http://hariprasadsharma.blogspot.com/2010/06/blog-post.html





Friday, September 24, 2010

नरगिस के फूल


फिर रहा था बादल बन गिरिशिखर के उपर,
देखा था एक झुंड सा अचानक से नीचे,
बिछा हुआ था स्वर्णिम नरगिस पुष्पों का
नरगिस के फूल झील के किनारे, पेडों के बीच
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जैसे सदा जगमग चमकते आकाशगंगा के तारे
अनंत विस्तार तक प्रकाश बिखेर रहे थे
तब सजे थे करीने से थोड़े थोड़े अंतर पर
नयनो में बसा लिया उनका प्रमुदित नृत्य
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चल रहा था पास उनके लहरों का नर्तन
हर्ष से सराबोर हो मै ले रहा आनंद जिसका
रोशनी का जन्मदिन प्रकाश ही प्रकाश जैसे
आनंद की दौलत समेटता रहा निहार ये सब
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अब भी कभी खाली समय मन हो उदास तब
दृश्य वही नयनो में खिचे चले आते हैं
एकांत का साथी वो दृश्य कितना प्यारा है
नयनो़ मे़ नर्गिस की छवि अटक जाती है।
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( विलियम वर्डसवर्थ की कविता ’ डेफोडिल्स' के भाव लिए गए हैं )

Tuesday, September 21, 2010

प्रसाद कुलकर्णी के साथ २ दिन



तुम प्रसाद हो भाई मराठी हम प्रसाद राजस्थानी 
तुम हो कलाकार चौतरफा हम ठहरे भैया अज्ञानी
 १६ सितम्बर को कोटा से अपना कार्यक्रम समाप्त कर दिन में जयपुर पहुंचे मराठी कवि, लेखक, वक्ता और कार्यक्रम संचालक श्री प्रसाद कुलकर्णी के साथ ब्लॉग लेखक हरि शर्मा अपने निवास पर.





शब्दों के सौदागर हो तुम  ये तो था मालूम हमें 
यारो के भी यार बनोगे ये हमको मालूम ना था  


जीवन क्या है एक यात्रा आनंदों से भरी हुई
अपनी भाषा सर माथे  बस खुसबू से भरी हुई

प्रसाद कुलकर्णी जी ने अपनी इस यात्रा की समाप्ति पर जो तुरंत सन्देश भेजा वो नीचे चिपका दिया गया है. मैं उनके मराठी समुदाय के कार्यक्रम में शामिल हुआ. भाषा की समस्या थी और सिर्फ मेरे लिए उन्होंने अपने कुछ मराठी मुक्तको का हिन्दी अनुवाद करके सुनाया.

एक चुटकुले पर जब मैंने ताली बजाई तो उन्होंने चुटकी ली कि इस मराठी चुटकुले पर उस मित्र ने ताली बजायी है जिसे मराठी बिल्कुल नही आती. वैसे में उसका मतलब समझ गया था. चुटकुला हिन्दी में कुछ इस प्रकार था -

एक पुरुष बाजार जाएगा तो काम की ३० रुपये की वस्तु ५० रुपये में खरीद लाएगा लेकिन अगर महिला बाजार जायेगी तो ५० रुपये की उस वस्तु ३० रुपये में ले आयेगी जो उसे कभी काम ना आनी हो.

Hariji, namsakar.



My Jaipur tour became most memorable because of you.

Your passion towards poetry and a strong will to strengthen the bond of friendship made me to remeber you for a lifetime.

I am enclosing herewith our photo taken at your home.



Rest all ok.

phir milenge.  

Wednesday, September 15, 2010

मराठी शुभकामना संदेशो के प्रणेता प्रसाद कुलकर्णी आज जयपुर में


मराठी भाषा के जाने माने टी वी कार्यक्रम संचालक, उद्घोषक और प्रसिद्ध कवि श्री प्रसाद कुलकर्णी आज से २ दिन के जयपुर दौरे पर हें. मुंबई निवासी प्रसाद कुलकर्णी पेशे से अभियंता हें लेकिन अपनी प्रतिभा, लगन और मेहनत के बल पर आज मराठी भाषा का लोकप्रिय नाम है.  महाराष्ट्र के कोंकण इलाके में जन्मे श्री कुलकर्णी ने बहुत छोटी वे में कविताएं लिखना शुरू कर दिया था.  आपने अनेक बिषयों पर कविता लिखी है पर प्रेम के अनेक रूप उनकी कविता का सबसे लोकप्रिय सन्दर्भ रहा है. अभी तक उनके कविताओं की ४  पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हें और 12 कैसेट जारी हो जुकी हें. 

अभी तक ९ मराठी फिल्मो के गाने लिखने वाले श्री प्रसाद कुलकर्णी की असली पहचान मराठी में शुभकामना सन्देश के प्रणेता के रूप में है. उनके लिखे काव्यात्मक शुभकामना सन्देश अभी तक छाप चुके हें.  आपने ८ कोटेशन की किताबे और २ कंप्यूटर से सम्बंधित किताबे लिखी हैं. १०० से अधिक टी वी कार्यक्रम को होस्ट कर चुके प्रसाद  जी ने 400 से ऊपर  सार्वजनिक कार्यक्रमों में एकल प्रस्तुति दी है.  आप अनेक मराठी समाचार पत्र और पत्रिकाओं के नियमित कालम लेखक हैं.

Sunday, September 12, 2010

मैच फिक्सिंग, पाकिस्तान, क्रिकेट और जूतों से खलनायको का स्वागत



ओह ये तीन कुख्यात खिलाड़ी यहाँ क्या कर रहे हें ?
 इनका तो उचित सम्मान किया जाना चाहिए.


आओ रे पाकिस्तान के सभी खेल प्रेमियों
अपने खलनायको का मिलकर सत्कार करें.


कसम है एक एक पाकिस्तानी को
इनके घर तक इनका उचित सत्कार करना है




सब अपने अपने जूते अपने हाथ में लेंगे और फिर
जूतों  को अस्त्र और शस्त्र दोनों समझकर उचित सत्कार करेंगे.
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पर चचाजान इन लोगों ने ऐसा किया क्या है?
बेटा मत पूछ,  इन लोगों ने अपने परिवार, शहर, देश,  इस्लाम
और सबसे बढ़कर इंसानियत की ऐसी तैसी की है.    

चचाजान क्या अल्लाह इनको कभी माफ़ कर सकेगा ?
बेटा इन्हें अल्लाह कभी माफ़ नही करेगा और पता है दंड में इन्हें फिर से ही पाकिस्तान में जनम लेने की सजा देगा. 
बेटा नरक में रहने और पाकिस्तान में रहने में कोई फर्क नहीं है.



Friday, September 10, 2010

पहचानिए भारत के विभिन्न नागरिकों को


परिदृश्य - 1
दो लोग लड़ रहे हैं और एक तीसरा आदमी आता है उन्हें लड़ते देखता है और अपनी राह चला जाता है.

मुंबई वाला है.
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परिदृश्य - २
दो लोग लड़ रहे हैं. बाहर से दो लोग और आते है वो अपने दोस्तों को फ़ोन करते है और ५० लोग इकट्ठे हो जाते है और सब लड़ने लगते हैं.

आप निश्चित रूप से पंजाब में हैं.
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परिदृश्य - ३
दो लोग लड़ रहे हैं और एक तीसरा आदमी आता है और शांति बनाने की कोशिश करता है तो वो दोनों लोग लड़ना छोड़ उसे मारते हैं.

आप दिल्ली पहुँच गए हैं.
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परिदृश्य - ४
दो लोग लड़ रहे हैं. उन्हें लड़ते देखने के लिए भीड़ इकट्ठी हो जाती है. एक आदमी आता है और वहा एक चाय की थडी खोल लेता है.

ये पक्का है कि आप अहमदाबाद में हैं.
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परिदृश्य - 5
दो लोग लड़ रहे हैं और एक तीसरा आदमी आता है. वह लड़ाई को रोकने के लिए एक सॉफ्टवेयर   कार्यक्रम लिखता है.
लेकिन कार्यक्रम में एक वायरस की वजह से लड़ाई बंद नहीं कर पाता  है.

ये बंगलूर है.
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परिदृश्य - ६
दो लोग लड़ रहे हैं. एक भीड़ इकट्ठा हो गई है लड़ाई देखने के लिए एक आदमी के साथ आता है और दृढ़ता से कहता  है कि "यह सब बकवास है ..  ये अम्मा" को पसंद नहीं है. समस्या अम्मा सुलझाएंगी.

जनाब आप चेन्नई पहुँच गए हें.
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परिदृश्य - ७
दो लोग लड़ रहे हैं और एक तीसरा आदमी चौथे के साथ आता है और एक रूस  और एक चीन फोन कर पता करता  है कि कौन सही है.

आप कोलकाता में हैं.
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परिदृश्य - ८
दो लोग लड़ रहे हैं. तीसरा  आदमी घर से आता है और कहता है कि मेरे घर के सामने नहीं लड़ सकते,  कहीं और जाओ लड़ने के लिए.

ये तय है कि ये केरल है.
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 परिदृश्य - ९
दो लोग लड़ रहे हैं. तीसरा आदमी बियर की बोतलें लेके आता है.  सभी एक साथ बैठकर बीयर पीते हें  और एक दूसरे को गाली देते रहते हें और सभी दोस्त के रूप में घर जाते हें.

यार मौज करो आप गोआ पहुच गए हें.
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डिस्क्लेमर  - इसे शुद्ध हास्य के रूप में लिया जाये. ब्लॉग लेखक भारत की अनेकता में एकता में यकीन रखता है.

Wednesday, August 18, 2010

क्रिकेट के नियम बने खलनायक - सहवाग है असली नायक


वीरेंद्र सहवाग को दाम्बुला में श्रीलंकाई गेंदबाज सूरज रणदीव ने खेल भावनाओं के परे जाकर जानबूझकर नो बाल करके शतक पूरा नहीं करने दिया। सभी ने रणदीव की इस हरकत को बचकाना और अपरिपक्व कहा है और क्रिकेट प्रेमी उनकी इस हरकत पर उन्हें माफी के काबिल नहीं मानते. 
वीरेंद्र सहवाग ने खेल भावना के विपरीत नोबॉल फेंककर उन्हें शानदार शतक से वंचित करने वाले श्रीलंकाई स्पिनर सूरज रणदीव की इस हरकत की आलोचना करते हुए कहा कि इस तरह का व्यवहार अस्वीकार्य है.




सहवाग ने कहा कि अगर सामने खड़ा बल्लेबाज 99 रन पर खेल रहा हो तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप नो बॉल फेंक दें या फिर बाई के रूप में चार रन दे दें। अच्छी क्रिकेट इसकी इजाजत नहीं देती। महत्वपूर्ण मुकाबले में मैच जिताऊ 99 रन बनाने वाले सहवाग ने कहा कि वह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि उन्हें शतक से वंचित करने के लिए ही नोबॉल फेंकी गई थी.

सहवाग को अपना शतक पूरा करने के लिए १ रन की जरूरत थी और श्रीलंकाई गेंदबाज सूरज रणदीव ने वीरेंद्र सहवाग को इस श्रेया से वंचित करने के लिए गेंद के बल्ले तक पहुचने तक का इंतज़ार नही किया बल्कि जानबूझकर अपने कदम क्रीज से बहुत आगे ले जाकर साफ़ साफ़ नो बाल की जिससे अम्पायर को भी अधिक सोचना नही पड़े.

अब यह घटना तो घट चुकी है लेकिन क्रिकेट के जानकारों के दिमाग में ये प्रश्न घूम रहा है कि क्या ये नियम सही है? जैसा कि अम्पायरो ने तय किया कि नो बाल होते ही भारत को जरूरी रन मिल गया था और खेल ख़तम हो गया. पर क्या ये सब इतना आसान है? नो बाल तो हो चुकी थी. सोचिये,  सहवाग उसे हिट करने क्रीज से बाहर जाते और चूक जाते. क्या सिर्फ इसलिए कि आवश्यक रन बन चुका था और गेंद अपना महत्व खो चुकी थी खेल खाम हो जाता या विकेट कीपर उन्हें  स्टंप करते तो सहवाग आउट नही होते यदि उस समय तक गेंद खेल में है तो सहवाग की हिट की हुई गेंद छक्का लगाने के बाद गिराने के बाद ही डैड मानी जानी चाहिए.


इसी प्रश्न से जुडा एक प्रश्न और भी है जिस पर अब क्रिकेट के जानकार मगजमारी कर रहे है कि जीत के लिए एक रन चाहिए और बल्लेबाह ने हेंड सीमा रेखा से बाहर जाने तक १ रन बना लिया और उसके बाद गेंद सीमा रेखा के बाहर गयी अब बल्लेबाज के खाते में १ रन जुड़ेगा या ४ ?

 और भी ऐसी बहुत सी जटिलताये क्रिकेट के नियमो से जुडी हुई  है और जब कोई ऐसे घटना घटित होती है तब क्रिकेट की शीर्ष संस्था आई सी सी इन पर विचार भी करती है. इसके २ उदाहरण है डेनिस लिली एक बार स्टील का बल्ला लेकर खेलने आ गए और खेले भी उसके बाद ये नियम बना कि बल्ला किस तरह का होना चाहिए ऐसे ही अंडर आर्म गेंदवाजी पर भी रोक ट्रेवर चैपल द्वारा ऐसा किया जाने पर नियम बना कि अंडर आर्म गेंदवाजी नही की जा सकती. 

पहली बार बीनू मांकड़ ने नॉन स्ट्राइकर बल्लेवाज को गेंद फेंकने से पहले ही क्रीज के बाहर जाने पर आउट किया और इस तरह से बल्लेवाज को आउट किये जाने का इतिहास बनाया और इसे जानकार मांकड़ थेओरी कहते है.  तब भी मांकड़ की बहुत आलोचना हुई थी लेकिन वहा बल्लेवाज भी नाहक नाजायज फ़ायदा ले रहा था.   ये नियम कहलाया मांकडेड आउट होना। भारत के महान क्रिकेटर वीनू मांकड़ ने इस तरीके से रन आउट करने की शुरुआत की थी। दिसंबर 1947 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई टीम इंडिया का यह किस्सा बहुत मशहूर है।



हुआ यूं कि ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध सिडनी टेस्ट में भारतीय गेंदबाज वीनू मांकड़ ने विपक्षी बल्लेबाज को कुछ ऐसे आउट किया की सब दंग रह गए। मांकड़ ने गेंदबाजी करते हुए क्रीज तक पहुंचकर बिना गेंद फेंके नॉन स्ट्राइकिंग छोर की गिल्लियां बिखेर दीं। कंगारू बल्लेबाज बिल ब्राउन गेंद डाले जाने के पूर्व ही रन लेने की जल्दबाजी में क्रीज छोड़ चुके थे। मांकड़ ने गिल्ली उड़ाते ही रन आउट की अपील की और अंपायर ने उंगली उठा दी।

हालाकि मांकड़ की इस हरकत को ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ने खेल भावना के विरुद्ध बताते हुए भर्तसना की पर दिग्गज बल्लेबाज डॉन ब्रेडमेन समेत कुछ विपक्षी खिलाड़ियों ने मांकड़ का बचाव किया। बाद में आउट करने का यह तरीका क्रिकेट के नियमों में शामिल हो गया। और इसका नाम मांकडेड पड़ गया। क्रिकेट नियमों की धारा 42.15 के अंतर्गत मांकडेड को वैधानिक कर दिया गया।

कपिल ने दोहराया इतिहास
भारत के महान कप्तानों में से एक कपिल देव ने भी दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वनडे में मांकड़ का इतिहास दोहराया था। साल 1993 में हुए इस मुकाबले में कपिल देव ने पीटर कर्सटन को मांकडेड कर दिया था। अब इस मामले मे

रणदेव ने सहवाग से माफी मांग ली है श्री लंका बोर्ड ने भी माफी माँगी है तो ये मुद्दा ख़तम हो जाना चाहिए पर इसने जो सवाल खड़े किये है उनके जवाब अब ढूढे जाने चाहिए. रणदेव बाल करता तो सहवाग आउट भी हो सकते थे या शतक भी पूरा कर सकते थे क्रिकेट ऐसे अगर मगर के कारण ही दिलचस्पी का खेल है, एक शतक की भी उतनी अहमियत नहीं है लेकिन खेल भावना की जब जब हत्या होती है तब दिल को ठेस पहुचती है.

Sunday, August 15, 2010

हिंदी फिल्मों के निराले कवि प्रदीप

कल  है २६ जनवरी और २६ जनवरी  पर एक गीतकार के लिखे फ़िल्मी गीत पूरे भारत में गुंजायमान हो जाते है क्योकि देश भक्ति का अमर गीतकार कह लो या कवि प्रदीप कह लो बात एक ही  है. कवि प्रदीप के गीतों को गा गाकर भारत का लोक तंत्र ६३ साल का हो गया है लेकिन उनके लिखे गीतों का प्रभाव बिल्कुल कम नही हुआ है. एक फ़िल्मी गीतकार होते हुए भी उनके गीतों को जिस तरह आदर और लोकप्रियता दोनों मिली ऐसा संयोग और कही देखने को नही मिलता. बहुत से लोगो को उनके कार्य के लिए भारत रत्न की उपाधि मिली है.  काव्य प्रतिभा के उत्कृष्ट फनकार कवि प्रदीप ने शताब्दियों से गुलामी की बे़डयों में जक़डी एवं पी़डत शोषित हतप्रभ भारतीय जनमानस में छिपी आंतरिक शक्तिस्रोत से उन्हें अवगत करवाकर, उसे जगाने का कार्य अपने अविस्मरणीय गीत लेखन, संगीत एवं गायन के माध्यम से किया और ये कवि प्रदीप ही थे जिन्होंने फिल्मों की ताकत को पहचानकर उसकी क्षमता का स्वतंत्रता आंदोलन एवं अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध ल़डने वालों के समर्थन में किया।

कवि प्रदीप का वास्तविक नाम श्री रामचन्द्र द्विवेदी था। आपका जन्म मध्यप्रदेश के ब़डनगर में ६ फरवरी, १९१५ को  जन्मे कवि प्रदीप का वास्तविक नाम श्री रामचन्द्र द्विवेदी था.  उनकी प्राथमिक शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की एवं अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्‌यक्रम में प्रवेश लिया। विद्यार्थी जीवन में ही हिंदी काव्य लेखन एवं हिंदी काव्य वाचन में आपकी गहरी रुचि थी और अपनी प्रतिभावान शैली से कवि सम्मेलनों में जन समूह का मन मोह लिया और कवि सम्मेलन से मुंबई के फिल्म उद्योग में चले गए.

सन्‌ १९३९ में बाम्बे टॉकीज के मालिक स्व हिमांशु राय ने कवि प्रदीप की उत्कृष्ट काव्य शैली से प्रभावित होकर उनको ‘कंगन’ फिल्म के लिए अनुबंधित किया, इस फिल्म में अशोक कुमार एवं देविका रानी ने प्रमुख भूमिकाएं निभाई थी। कवि प्रदीप ने सन्‌ १९३९ में ‘कंगन’ फिल्म के लिए चार गाने लिखे, उनमे से तीन उन्होंने स्वयं गाये और सभी गाने अत्यंत लोकप्रिय हुये। इस प्रकार ‘कंगन’ फिल्म के द्वारा भारतीय हिंदी फिल्म उद्योग को गीतकार, संगीतकार एवं गायक के रूप में एक नयी प्रतिभा मिली।

इसके बाद सन्‌ १९४० में निर्माता एस मुखर्जी एवं दिग्दर्शक ज्ञान मुखर्जी की फिल् ‘बंधन’ आयी ‘चल चल रे नौजवान’ जैसे गाने के साथ आपके इस गाने को काफी लोकप्रियता मिली। उस समय स्वतंत्रता आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था और हर प्रभात फेरी में इस देश भक्ति के गीत को गाया जाता था। इस गीत ने भारतीय जनमानस पर जादू सा प्रभाव डाला था। सन्‌ १९४३ में मुंबई की बॉम्बे टॉकीज की पांच फिल्मों ‘अंजान’, ‘किस्मत’, ‘झूला’, ‘नया संसार’ और ‘पुनर्मिलन’ के लिये भी कवि प्रदीप ने गीत लिखे।

देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में शिथिलता आ गई थी। देश के सब ब़डे-ब़डे नेता जेल में बन्द थे। उस समय कवि प्रदीप की कलम से एक हुंकार जगा ‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है’ कवि प्रदीप का लिखा यह गीत अंग्रेजी सत्ता पर सीधा प्रहार था, जिसकी वजह से कवि प्रदीप गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत हो गये थे। कवि प्रदीप ने स्वतंत्रता से पूर्व एवं स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र निर्माण में जो योगदान दिया वह उनकी देशभक्ति का प्रमाण है।
सन्‌ १९५४ में बनी ‘जागृति’ फिल्म कवि प्रदीप के गानों के लिए आज भी स्मरणीय है वे हैं ः
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की, इस मिट्‌टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की.
हम लाये हैं तूफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्हाल के.
दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल

ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी. . . . . .    साठ के दशक में चीनी आक्रमण के समय लता जी का गाया यह गीत जो कवि प्रदीप द्वारा लिखा गया था कौनसा सच्चा हिन्दुस्तानी भूल सकता है? यह गीत आज इतने वषा] बाद भी उतना ही लोकप्रिय है। इस गीत के कारण भारत सरकार ने आपको ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया था।

कवि प्रदीप ने ‘नास्तिक’ एवं ‘जागृति’ के लिए जो गीत लिखा था स्वयं उन्होंने ही उसे गाया भी था उससे सामाजिक विघटन की एक झलक मिलती हैः ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इंसान। चांद न बदला सूरज न बदला,कितना बदल गया इंसान।।’ पैगाम’ फिल्म के लिए कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा’ यह गाना भी काफी लोकप्रिय हुआ था। अपने गीतों के बलबूते पर बॉक्स ऑफिस पर रिकार्ड त़ोड व्यवसाय करने वाली फिल्म थी ‘जय संतोषी मां’ जो कवि प्रदीप के जीवन में एक अविस्मरणीय यशस्वी फिल्म का उदाहरण बनी थी।

कवि प्रदीप को अनेक सम्मान प्राप्त हुए जिनमें ः संगीत नाटक अकादमी अवार्ड १९६१, फिल्म जर्नलिस्ट अवार्ड१९६३ एवं दादा साहब फालके अवार्ड १९९७-१९९८ प्रमुख हैं। खेद का विषय यह है कि ऐसे महान देश भक्त, गीतकार, एवं संगीतकार को भारत सरकार ने ‘भारत रत्न’ से सम्मानित नहीं किया, न ही आज तक उन पर स्मारक डाक टिकट निकला।

आपने अपने जीवन में १७०० गाने लिखे। कवि प्रदीप ८३ वर्ष की आयु में ११ दिसंबर, १९९८ को अपने पीछे अपनी पत्नी तथा दो पुत्रियों को छ़ोडकर इस नश्वर संसार से प्रस्थान कर गये। पर अपने अमर व बेहतरीन गीतों के साथ आज भी वे हम सबके बीच है और सदा रहेंगे।

गीत और अन्य जानकारी  अंतरजाल से ली गयी है. स्रोत की सही जानकारी  जल्दी दे दी जायेगी.

Sunday, June 27, 2010

जयपुर ब्‍लॉगर मिलन और मुलाकात अविनाश वाचस्पति परिवार से






टाटा की वो कार जिसने स्वर्णिम त्रिभुज दिल्ली आगरा जयपुर में अविनाश परिवार का खूब साथ दिया. 




इस तरह चलता रहा मिलने बात करने का सिलसिला 


ब्लॉग जगत के अपने अनुभव साझा करते हरि शर्मा और ध्यान से सुनते राजीव जैन, सुधाकर, अविनाश वाचस्पति और डॉ. गरिमा  









प्रेम का दरिया बहाते प्रेम चंद गांधी आये और साथ में बैठे हुए है इस मिलन को कवर करते चैनल के लोग श्री देशराज सिंह तंवर और अक्षय  

तीय
t : जिंदगी सिखाती है कुछ
बतियाते हुए कार्टूनिस्ट सुधाकर और अविनाश
देरी से आये लेकिन खूब प्यार से मिले एम डी सोनी जी के साथ हरि शर्मा, अविनाश और गरिमा 













लो जी जयपुर ब्‍लॉगर मिलन पर पहली किस्‍त पेश है जल्दी ही लेकर हाज़िर होंगे पूरी रिपोर्ट..................... 

Thursday, June 24, 2010

अविनाश वाचस्पति जयपुर में

अविनाश वाचस्पति

aidichoti khabarchi
माता-पिता
खामोशी... बहुत कुछ कहती है
पिताजी
हरि शर्मा - नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे
हँसते रहो हँसाते रहो
Ek sawaal tum करो
संजीवनी
बगीची
स्मृति-दीर्घा
तेताला
नुक्कड़
निर्भीक खबरी
पांचवा खम्बा
झकाझक टाइम्स
गड़बड़झाला
भारत-ब्रिगेड
माँ
भारतीय शिक्षा - Indian दुकतिओन
मीडिया मंत्र (मीडिया की खबर)
चौखट
पहला एहसास
सुधाकल्प
शब्द-लोक । The World of वोर्ड्स
ब्लॉग् मंत्रालय्
मैं आपसे मिलना चाहता हूं
ये कुछ ब्लॉग है जिनसे अविनाश वाचस्पति जी की पहचान है और ये हमारा सौभाग्य है कि आज कल और परसों वे जयपुर आये हुए हैं.  अभी यह तय हुआ है कि उनके आगमन पर एक ब्लोगर मीट रखी जाए. इस पोस्ट के माध्यम से जयपुर और आसपास के सभी ब्लोगरो और ब्लोगिंग में रूचि रखने वालो से आग्रह है कि प्रस्तावित ब्लोगर मीट को सफल बनाएं. 
हरि शर्मा 
९००१८९६०७९

Sunday, June 13, 2010

सबका सफर अलग है लेकिन अलग अलग रफ़्तार है - आत्म प्रकाश शुक्ला ( प्रसिद्द गीतकार )





सबका सफ़र एक है लेकिन अलग अलग रफ़्तार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।

ऐसा कौन नहीं जो जूझे मौजो से मझधार से,
तैराको की असल कसौटी परखी जाती धार से।
दुनिया अर्ध्य चढाती उनपर जिनका बेडा पार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।

सबकी अपनी तीर कमाने अपना सर संधान है,
किन्तु लक्ष्य घोषित करता है किसका कहाँ निशान है।
मत्स्य वेध जो करे सभा मे उसका जय जयकार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।

जिसकी जितनी लम्बी चादर उतना ही फैलाव  है,
जितना बोझ वजन गठरी मे उससे अधिक दबाव  है.
अपनी अपनी लाद गठरिया जाना सबको पार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।

दुःख की करुणा भरी कथा मे सुख तो सिर्फ प्रसंग है,
और जिन्दगी भी जीवन से उबी हुई उमंग है.
साँसों का धन संघर्षो से माँगा हुआ उधार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।

रैन वसेरा करके पंछी उड़ जाते है नीद से,
सब चुपचाप चले जाते है आंसू पीकर भीड़ से.
जाना सबको राम गाँव तक करकर राम जुहार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है.

Thursday, June 10, 2010

मेरी ब्लॉग यात्रा और नए नए रिश्ते - 2 कल तुमको मैंने एक गीत सुनाया था



कल तुमको मैंने एक गीत सुनाया था
ब्लॉग जगत को थोड़ा थोड़ा भाया था 
कुछ गीत लिखे मैंने फिर इसी ब्लॉग पर ही 
कुछ सुधी जानो ने  दी थी वहा टिप्पणिया भी
उड़न तश्तरी वाले मिले समीर लाल 
तो फुर्सत से  देते कमेन्ट फ़ुरसतिया जी 

अविनाश मिले  नुक्कड़ से जोड़ा हमको भी
थोड़ी चिक चिक के बाद जुड़े सुशील कुमार 
था जोश बड़ा उनको तो अच्छा लिखने का 
पर नयी पोस्टिंग ने उस क्रम को तोड़ दिया 
फिर सूर्यकान्त जी मिले सपत्नी ऑरकुट पर 
हौले हौले वो बढ़ने लगे ब्लॉग पर भी 

इन दिनों पूर्णिमा जी ने कुछ टोपिक देकर 
हमसे कुछ गंभीर  काव्य लिखवा डाला
ऐसे ही अनुराधा जी ने भी दीदी बनकर
दे देकर कुछ  आदेश गद्य लिखवा डाला 
फिर मिले हमें कुछ बड़े ३६ गढ़ी ब्लोगर 
मूछो वाले हैं ललित बने छोटे भैया 

एक पावला जो टाले हर तकनीक बला
मिले अजय झा, लिखें पोस्ट निरंतर ही
राजीव मिले जो बिना तने- जा-ते लिखते
ये दौर था ऐसा जब पढ़ते तो बहुत पोस्ट 
पर ना कमेन्ट ना चटके का था हमें जोश 
इसलिए हमें भी कम ही कमेन्ट मिला करते 

कविता अभी जारी है. अगले अंक मे जोधपुर ब्लोगर मिलन और उसके कारण जुड़े नये ब्लोगर साथियो पर कुछ लिखने की कोशिश होगी. जिनके भी नाम यहाँ आये है वो सभी मेरे लिए बहुत सम्मानित व्यक्ति हैं. मेरे और पोस्ट के खिलाफ कमेन्ट का स्वागत है अगर भाषा ठीक हो.  प्यार बनाए रखिये.           

  

Wednesday, June 9, 2010

मेरी ब्लॉग यात्रा और नए नए रिश्ते - 1

तोप ना बाबा बा - अब तोप का क्या काम, चलो ब्लॉग निकालते हैं  






ब्लॉग जगत में कुछ रिश्ते बन जाते है
वो  रिश्ते हमको याद बहुत ही आते हैं 

हम पहले चैटिंग ही करते थे 
चैटिंग से ही दोस्त बनाया करते थे 
तब चैटिंग में दिन में होली मनती थी
और रात को दीप जलाया करते थे
तभी एक दिन गूगल से होकर 
किसी ब्लॉग पर अपनी नज़र पडी

ब्लॉग  को पढ़कर मेरी आँख खुली
जैसे कि गंगा की हो धार मिली 
खेल खेल में थे कुछ ब्लॉग बने 
अलग अलग बिषयो पर अलग बने 
तभी एक ब्लोगर से बात हुई 
कुछ हम कहे है नाम ब्लॉग का तो 

लिखने वाली रहती  मुंबई में
नाम  अनीता प्रोफ़ेसर है जो
फिर हमने भी ध्यान दिया इस पर
कविता,  लेख लिखे कुछ ब्लोगर पर
शुरू  शुरू कोई पढ़ने नही आया 
जब तक ब्लॉग विवाद मे नही आया 


आगे पढ़िए अगली पोस्ट में जल्दी ही .........................