मुंबई मे कल तीसरा दिन था और आज सवेरे से तय हुआ कि कवि श्री कुलवंत सिंह से मिलना है और उसके लिए अंधेरी में होने बली चौपाल में ४ बजे शाम मुलाकात होगी. इसके बाद श्रीमती शिप्रा वर्मा जी का भी फ़ोन आया कि वो अभी ४ बजे चौपाल में जा रही है तो मैंने कहा कि मैं भी तो वही पहुच रहा हू. सो हमने अंधेरी में रहने बली तीसरी दोस्त को कहा कि में वहा जा रहा हू तुमसे मिलाना कहा होगा तो उन्होंने कार्यक्रम स्थल जानकर कहा कि कार्यक्रम ख़तम हो जाए तो बता देना मेरा घर पास ही है वही में जाउंगी.
सो कांदिवली पूर्व से चले अंधेरी पश्चिम के लिए और इसके लिए ली लोकल की शरण. आज रविवार होने के कारण कार्यालय आने जाने बाले लोगो की भीड़ नहीं थी सो अंधेरी थोडा आराम से पहुच गए और वहा से ऑटो किया और करीब करीब सही समय पर कार्यक्रम स्थल पहुच गए. वहा कार्यक्रम शुरू होने बाला ही था तो हमने हाल में नज़र घुमा कर कुलवंत जी और शिप्रा जी को ढूढना शुरू किया. लगा शायद वो व्यस्त हो सो जगह लेके बैठ गए. अज की थीम मूल रूप से श्याम बेनेगल जी पर थी और उन्हें इस कार्यक्रम में आना था लेकिन एन बक्त पर उनका आना न हो सका तो एकदम से थीम बदलनी पडी. आयोजको को एकदम से मेहनत करनी पडी एक नए कार्यक्रम के लिए और इसका जिम्मा लिया जाने मने व्यंगकार और सीरियल लेखक सुभाष काबरा जी ने और एक कवि सम्मलेन की रूप रेखा रच दी. और ऐसे शुरू हुआ चौपाल का मासिक कार्यक्रम.
सुभास काबरा जी ने अपने ताज़ा व्यंग रचना जो कि मीडिया के ऊपर थी से कार्यक्रम की शुरुआत की और फिर एक अनूठे गायन कार्यक्रम से बात आगे बढी. युवा गायक साईं राम अय्यर ने पहले महिला की आवाज़ में एकल गीत सुनाया और फिर अगला युगल गीत महिला पुरुष की बदलती आवाज़ में सुनाया और दोनों के गायन में गायन की मधुरता और सुर ताल का सही सामंजस्य. इसके बाद कुछ नए गीतकारों के गीत हुए फिर अनिल मिश्र जी, हस्ती मल हस्ती जी तह पहुचकर इस काव्य यात्रा में विराम आया और तब तक कवि श्री कुलवंत सिंह जी और श्रीमती शिप्रा वर्मा जी के सन्देश मिल गए थे कि वे रास्ते में अटक गए है और नहीं पहुच पाएंगे सो विराम के बाद हमने अन्य मित्र सुश्री अल्जीरा जी को फ़ोन किया कि आप में जाये अब हम बाहर आ गए है.
करीब ५ मिनट के इंतज़ार के बाद सुश्री अल्जीरा जी ऑटो से में पहुची और पहली बार मिलने की खुशी को दो गुना करते हुए अपने साथ अपने अज़ीज़ बेटी (जैसी) श्रीमती पिंकी जी को साथ ले आयी. उनसे मिलके जो खुशी मिली वो शब्दों में बयां करना मुश्किल है और साच में ऐसा लग रहा था कि उन्हें भी वैसी ही खुशी हो रही है. आते ही उन्होंने अपने कैमरे से फोटो लिए और फिर वृन्दावन जलपानगृह में जाके बैठ गए. बहुत सी बाते जानी अनजानी होती रही और हंसी मजाक भी. कब साँझ हो गयी पता ना चला. हर मुलाकात का एक अंत होता है जैसे हर दिन की एक साँझ होती है सो हमें भी अलग होना ही था फिर कभी ऐसे ही मिलने के लिए.