Friday, September 30, 2011

आओ ना मितवा अभी मन है प्यासा


आओ ना मितवा अभी मन है प्यासा
रुको जब तक हलचल है जीवित है आशा

यमुना का तट था औ कदम्बो की डाली
बिन राधा थे बैठे जहा श्याम खाली
बरनिया के कुंजो मे झूल्र थे हम तुम
उन सखियों से छिपकर मिले भी थे आली

तब पूनम की रातो में संग-संग विचरना
वो फूलो की सेजों पे खुद में सिमटना
वो कंपते से अधरों पे चुम्बन की वर्षा
याद है वो दोनों का एक होकर मिलना

याद है वो स्वप्निल सी भीगी-भीगी राते
तुमने लिखे ख़त और मीठी-मीठी सी बाते
जाओ ना मितवा अभी मौसम है प्यारा
अकेले खेल में झेलूँगा रोज शह और माते

आओ ना मितवा अभी मन है प्यासा
रुको जब तक हलचल है जीवित है आशा