कल मुंबई की इस यात्रा का दूसरा दिन था और दिन भर आराम और नेट पर कुछ घंटे गुजारे और इंतज़ार किया अपने बहुत ही प्यारे दोस्त और बड़े भाई चन्द्रभान शर्मा जी के काल का क्योंकि कल बात हो गयी थी शनिवार को मिलने की. सो ४ बजे उनका फ़ोन आया कि वो ५ बजे घर पहुच जायेंगे और घर का रास्ता समझाया उससे पहले उन्हें कहा कि घर का पता एसेमेस कर दो तो वोले कि ये आता तो बैंक की अफसर ही करता क्या. खैर उन्होंने कहा था कि लोकल से वोरीवली स्टेशन आना और वहा से ऑटो से घर जो कि प्रगति स्कूल और स्टेट बैंक की गोराई शाखा के बीच है तो वो शाखा के सामने मिल जायेंगे. हमने सोचा कि कौन लोकल के चक्कर मे पड़े सो सीधा ऑटो किया और गौराई पहुच गए.
हम शाखा से सामने उतरे तो वो वहा नहीं थे तो फ़ोन मिलाया वोले मुझे तुम दिख रहे हो तुम मुझे देखो और चले आओ तो देखा तो अपने अजीज दोस्त को गली के कोने मे खड़े पाया. हमें देखकर उनके प्रशन्नता उनके चेहरे पर साफ़ चमक रही थी और खूब गले मिलते मिलते उनके घर तक पहुचे. घर पहचानना नहीं पडा क्योकि सुंदर सी भाभी घर के बाहर खडी अपने प्यारे देवर देवरानी का इंतज़ार कर रही थी. मिलते ही जीवन के पुराने चित्र आँखों के आगे घूम गए कि कैसे कभी उन्होंने अपनी उन्होंने अपनी अतिरूपवान साली की शादी मेरे साथ कराने के लिए अथक प्रयास किया हालांकि किसी कारण से वो संबंध नहीं हुआ लेकिन तभी से हमारे बीच भाइयो जैसा संबंध बना सो आज तक चल रहा है. ये भी याद आया कि कैसे उनकी एक गलती के लिए मैंने जाके शिकायतकर्ता से माफी माँगी और उससे भी बढ़कर कैसे मेरे जीवन की अति कटु घटना पर मेरे पक्ष में खड़े होकर उन्होंने अपने पूरी शहर की आलोचना झेली.
मुंबई जैसे शहर में उनको आती ही जो मकान १०००० रूपये में किराए पर मिल गया उसे देखकर विश्वास नहीं होता. उनको खुद भी बहुत अचरज हुआ लेकिन यही भाग्य है. बातचीत के बीच ही उनका अति होनहार बेटा जो आई आई टी दिल्ली से बी टेक कर रहा है वो आ गया उसे बहुत छोटी उम्र में देखा था और उसे भी बस हल्की सी याद थी. यहाँ आते ही वो एक दम से बीमार हो गए थे करीब करीब परेलैसिस लेकिन ये सब तब हुआ जब केंद्रीय कार्यालय में वो काम कर रहे थे सो जो कुछ अच्छा इन्तेजाम मुंबई में हो सकता था वो बैंक ने किया और उनकी जान भी बची और धीरे धीरे वो अब काफी ठीक हो गए है.
बाते तो कभी ख़त्म नहीं होनी है लेकिन प्रियजनों से मिलना हमेशा एक सुखद अवसर होता है वहा से जाने का हमारा बिलकुल मन नहीं था लेकिन हर अच्छी फिल्म का भी दी एंड होता ही है. सो वही से ऑटो किया और हम वापिस आ गए.
हरि शर्मा०९००१८९६०७९