Monday, March 28, 2011

आधी हकीकत - आधा फ़साना

चैटिंग के टाइम पर आना गोरी नेट पर
वाट जोह रहा है बैठा बैठा तेरा दीवाना

ना कभी इनकार करके दिल को तोड़ना
प्यार भरे स्क्रैप करके ये रिश्ता निभाना

जबसे तुम्हें जोड़ा है दिल ने ये सोचा है
तुम भी हमको चाहती ये मिलके बताना

प्रशंसापत्र में लिखे वो भाव सारे सच्चे है
मिलके अपने मनभावो को हमको बताना

आँखों से दूरी भले लगती तुम पास सदा
रिश्ता पर लगता ये खूब जाना पहचाना

दुनिया ये ऑरकुट की हमको लगे सच्ची
या फिर आधी हकीकत है आधा फ़साना

दो दिलो की बात


ना कोई आह ना सिसकना
आँसू की कोई बूँद भी नही
न ही तूफान कोई मन में
नहीं सबसे प्रभावी शब्द हैं
वस ह्रदय से निकली गूँज
यही है एक साधारण सच
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हक़ीक़त को एक नज़र
देखकर हम कर रहे हैं
एक करें कतरा- कतरा शुरुआत
टूटे जहाज के मलबे यहाँ
रहता है आश्वासन यही
करलो दो दिलों का परिणय

क्या मुक्त हो पाओगे? - श्रीमती रजनी मोरवाल





तुम पुरुष हो,
तुम्हे बंधन  नहीं स्वीकार्य ?
चाहते हो मुक्त होना
मेरी इच्छाओं से ,
भावनाओं से,
और
अपेक्षाओं से |
मैनें तो तुम्हें मुक्त ही किया है ,
अपनी
अभिलाषाओं से
आकांक्षाओं से
और
कामनाओं से ,
परन्तु..........
तुम ही सदैव
आश्रित रहे
मुझ पर............
लिपटे रहे  मेरे
नारीत्व से 
ममत्व से 
और
आस्तित्व से |
क्या तुम मुक्त कर पाओगे
स्वयं को 
मेरी आत्मा से
देह से 
और
नेह से ?
क्या मुक्त  हो पाओगे....................?