पांच तार की चादर देखो किसके किसके नाम हुई,
गुदरी मे संन्यासी लगती चुनरी मैं गुलफाम हुई।
गुदरी मे संन्यासी लगती चुनरी मैं गुलफाम हुई।
नगर बधू की रंग बिरंगी रतन जडी पटरानी की,
सतवंती की सीधी साधी एक रंग दीवानी की।
वरसाने मे बनी राधिका नन्द गाँव मे श्याम हुई,
गुदरी मे संन्यासी लगती चुनर मे गुलफाम हुई।
वैरागी मे बनी चोलना अरिहंतों में नगन हुई,
पनघट-पनघट चोली लहंगा मरघट-मरघट मरण हुई।
मठ मे बनी पुजारी तो मैखाने मे खैयाम हुई,
गुदरी मे संन्यासी लगती चुनरी मे गुलफाम हुई।
लंगोटी मे गांधी तो चीवर पहने बुद्ध हुई,
वसन हुई निर्वसन देह तो आत्मा कितनी शुद्ध हुई।
वाघम्बर मे दिखी दिगंबर वल्कल पहने राम हुई
गुदरी मे संन्यासी लगती चुनरी मे गुलफाम हुई।
वसन हुई निर्वसन देह तो आत्मा कितनी शुद्ध हुई।
वाघम्बर मे दिखी दिगंबर वल्कल पहने राम हुई
गुदरी मे संन्यासी लगती चुनरी मे गुलफाम हुई।
बचपन बीता पहन झिगोला यौवन बीता चोली मे,
बैठ खाट पर जिए बुढापा मोटी कथरी कमरी मे।
सुवह हुई हो गयी दोपहरी धीरे-धीरे शाम हुई,
गुदरी में संन्यासी लगती चुनरी में गुलफाम हुई।
पांच तार की चादर देखो किसके किसके नाम हुई,
गुदरी मे संन्यासी लगती चुनरी मे गुलफाम हुई।
गीत हिंदी कवि सम्मेलनों के शिखर पुरुष आत्म प्रकाश शुक्ला जी से सूना हुआ स्मृति के आधार पर यहाँ दिया गया है. आत्म प्रकाश जी के गीतों मे रूमानियत और दर्शन का अद्भुत संगम है.