Sunday, January 17, 2010

स्मृति शेष रांगेय राघव - जन्म तिथि १७ जनवरी




जन्म तिथि १७.०१.१९२३

निधन १२.०९.१९६२
 आज जिनका जन्म दिवस है
प्रतिभाशाली लोगो का जीवन बहुत छोटा होता है लेकिन वो इस अल्प समय मे इतना कुछ कर जाते है कि उन्हे सदियो तक याद किया जाता है.  ऐसी ही एक प्रतिभा का नाम रांगेय राघव है. १७ जनबरी,  १९२३ को आगरा मे जन्मे रांगेय राघव ने सेन्ट जोन्स कालेज आगरा से परा- स्नातक हिन्दी मे करने के बाद गुरु गोरखनाथ पर शोध किया और अपने लिये साहित्य के डाक्टर की उपाधि हासिल की. उनका पूरा नाम तिरूमल्ली नम्बकम वीर राघव आचार्य था. उन्हे अंग्रेज़ी, हिन्दी, संस्कृत और उस बृज भाषा पर पूर्ण अधिकार था. हम जब छोटे थे तब पढे लिखे लोग उनकी चर्चा एक किवदन्ती पुरुष की तरह करते थे. मेरे पिता और उनके  साथी इस बात पर बहुत फ़क्र करते थे कि उन्होने अपनी जिन्दगी मे एक महान लेखक को देखा है और मुझे ये सौभाग्य मिला कि उनकी अर्धान्गिनी श्रीमती सुलोचना राघव और उनकी पुत्री से बाद मे मिला.   


सिर्फ़ १३ साल की उमर मे उन्होने लेखन शुरु कर दिया था और सबसे पहले साहित्य जगत मे उनकी चर्चा बन्गाल के अकाल पर उनकी रिपोर्ट से हुई  तब उनके उमर १९ साल थी. उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी जिसमे चित्रकला, सन्गीत, कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, सन्स्मरण लेखन, आलोचना  और अनुवाद शामिल है. और इस विविधता ने लेखक के रूप मे उनकी प्रतिभा को नये आयाम और विशिष्टता प्रदान की. लम्बी बीमारी से झूझते हुए ३९ बर्ष की बहुत ही अल्प आयु मे १२ सितम्बर १९६२ को निधन से पहले उन्होने करीब १५० किताबे लिखी.


अपनी सृजन-यात्रा के बारे में रांगेय राघव ने स्वयं कोई खास ब्योरा नहीं छोड़ा है—खास कर अपने प्रारंभिक रचनाकाल के बारे में। लेकिन एक जगह उन्होंने लिखा है, ‘‘...चित्रकला का अभ्यास कुछ छूट गया था। 1938 ई॰ की बात है, तब ही मैंने कविता लिखना शुरू किया। सांध्या-भ्रमण का व्यसन था। एक दिन रंगीन आकाश को देखकर कुछ लिखा था-वह सब खो गया है—और तब से संकोच से मन ने स्वीकार किया कि मैं कविता कर सकता हूँ। ‘प्रेरणा कैसे हुई’ पृष्ठ लिखना अत्यंत दुरुह है। इतना ही कह सकता हूं कि चित्रों से ही कविता प्रारंभ हुई थी और एक प्रकार की बेचैनी उसके मूल में थी’’ (साहित्य संदेश, जनवरी-फरवरी, 1954)।

कहानी लिखना वे इससे पहले शुरू कर चुके थे—1936 से, जब वे सिर्फ तेरह वर्ष के थे। हालाँकि उनकी उस उम्र की कहानियों और दूसरी रचनाओं के संबंध में निश्चयपूर्वक कुछ भी कहना मुश्किल है। मुमकिन है, उनमें से कुछ बाद के वर्षों में नष्ट कर दी गई हों, क्योंकि उनके मित्र परिजनों के मुताबिक न जँचने पर वे अपनी रचनाओं के साथ यही सलूक करते थे। फिर भी इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ रचनाएँ बाद में दोबारा लिखी या दुरुस्त न की गईं या बतौर लेखक स्थापित होने के बाद दस्तावेजीकरण की दृष्टि से छपाई न गई होगीं। मसलन अंधेरे की भूख और बोलते खँडहर जो क्रमशः 1954-55 में प्रकाश में आई, जिन पर लेखक ने किशोरावस्था में पढ़े रोमांचक विदेशी उपन्यासों का स्पष्ट प्रभाव स्वीकार किया है।



रांगेय राघव को जो पुरुस्कार मिले उनमे प्रमुख रहे - १. हिन्दुस्तान अकेदेमी अवार्ड ( १९४७ ), २. डाल्मिया अवार्ड ( १९५४ ), ३. उत्तर प्रदेश सरकार अवार्ड {१९५७, १९५९), ४. राजस्थान साहित्या अकादमी अवार्ड ( १९६१ ), ५. महात्मा गान्धी अवार्ड ( १९६६ ) - निधन के बाद.

अपनी प्रसिद्ध पुस्तक पुस्तक प्राचीन ब्राह्मन कहानिया की प्रस्तावना मे वो लिखते है कि "आर्य परम्पराए अनेक अनार्य परम्परओ से मिलन हुआ है. भारत की पुरातन कहानियो मे हमे अनेक परम्परओ के प्रभाव  मिलते है. महाभारत के युद्ध के बाद हिन्दू धर्म मे वैष्नव और शिब चिन्तन की धारा वही और इन दोनो सम्प्रदयो ने पुरातन ब्राहमन परम्पराओ को अपनी अपनी तरह स्वीकार किया..इसी कारण से वेद और उपनिषद मे वर्णित पौराणिक चरित्रो के बर्णन मे वदलाव देखने को मिलता है. और बद के लेखन मे हमे अधिक मानवीय भावो की छाया देखने को मिलती है. मै ये महसूस करता हू कि मेरे से पहले के लेखको ने अपने विश्वास और धारणाओ के आलोक मे मुख्य पात्रो का बर्णन  किया है और ऊन्चे मानवीय आदर्श खडे किये है और अपने पात्रो को साम्प्रदायिकता से बचाये रखा है इसलिये मैने पुरतान भारतीय चिन्तन को पाठको तक पहुचाने का प्रयास किया है."


उनकी लिखी प्रमुख पुस्तको के नाम है. - 
घरौन्दा 
कब तक पुकारू
रत्ना की बात 
भारती का सपूत 
देवकी का बेटा
लूई का ताना
यशोधरा जीत गई 
आखरी आवाज़
पथ का पाप
लखिमा की आखे 
उनके बारे मे कहा जाता था कि वो दोनो हाथो से रात दिन लिखते थे और उनके लिखे ढेर को देखकर समकालीन ये भी कयास लगाते थे कि शयद वो तन्त्र सिद्ध है नही तो इतने कम समय मै कोइ भी इतना ज्यदा और इतना बढिया कैसे लिख  सकता है. उन्हे हिन्दी  का पहला मसिजीवी कलमकार भी कहा जाता है जिनकी जीबिका का साधन सिर्फ़ लेखन था.