फगुआ के मौसम में मस्ती-सी छाई है |
मतवारी बोली है
सतरंगी चोली है,
यौवन की चुनर भी
रंगों में घोली है,
गालों पर है गुलाल ऑंखें शरमाई है |
अंगों में अंगराग
मन मेरा फाग-फाग,
जंगल में बिखरी है
टेसू की आग-आग,
ऋतुएँ भी भर-भर के पिचकारी लाई है |
होली के आंगन में
रंगों के छाजन में,
सुध अपनी भूल गई
डूब गई साजन में,
चुप-चुप के अंखियों में प्रीति उतर आई है |