Tuesday, January 20, 2009

अंत भला तो सब भला

दोस्तों, बहुत समय बाद अब मुझे अब समय मिला है कि में अपने ब्लॉग लेखन के कार्य को आगे बाधा सकूं. २००८ मे मार्च के बाद का समय मेरे लिए अवसाद और झुझलाहट का रहा और ऐसा समय आया जब मुझे अपनी क्षमता और लगन पर खुद संदेह होने लगा. ऐसा इसलिए नहीं कि मैंने मेहनत करने मे कोई कसार छोडी बल्कि इसलिए कि उस दिनों आये औडिटर महोदय ने बहुत घटिया टिप्पणीयाँ मेरी कार्य शैली और प्रवंधन के उपर की. खैर बाद के समय मे मैंने उन सबको सकारात्मक रूप से लेकर और बेहतर कार्य किया लेकिन उनका व्यवहार और अनर्गल टिप्पणीयाँ मेरे दिमाग से निकल नहीं सकी. बाद मे मुझे संस्था ने मेरे काम के लिए ग्रीन चैनल अवार्ड फॉर परफॉर्मेंस के लिए नामित किया तो मैं खुद आश्चर्यचकित हो गया. बैंक ने ऐसे ही सम्मानित अन्य २९ लोगो के साथ मुझे भी १० दिन के लिए त्रिची - कोइम्बतूर - ऊटी - मैसूर - बंगलोर के दौरे पर भेजा. अब इस दौरे के २ माह बाद केंद्रीय कार्यालय के मैं शाखा को अ+ ( पूर्ण दक्षता के साथ ) रेटिंग मिली है. हालंकि मैं अब वहां नहीं हूँ लेकिन जिस समय के लिए निरीक्षण हुआ है वो लगभग पूरा मेरा ही कार्यकाल था. तो ये मेरे लिए आत्म विश्लेषण का कारण तो था ही.मेरे लिए ऐसे मैं ये ज़रूरी हो जता है कि मैं उन सबको धन्यबाद दू जिन्होंने अवसाद के क्षणों मे मेरा साथ दिया। आभार। साथियो बच्चन जी के शब्दों में -
और अंत मे दुनिया हारी और हमी तुम जीते.