यही सोच दिमाग मे़ आती है -
औरत क्या नही है, औरत धरती है
औरत एक बच्चे का आसमान है
औरत एक समाज की धुरी है
औरत एक सभ्यता का जीवित स़स्कार है
औरत मा की ममता है, आन्चल का दूध है
बिना वाप के बच्चो़ का पिता भी है
औरत गुरु है, ग्यान है, गरिमा है
औरत बेटी है, रन्गोली है, आन्गन की तुलसी है
औरत से घर मे़ मनते सब त्योहार है
औरत गीत है कविता है गज़ल है
औरत मानवता की किताब के पन्नो पे
लिखा एक सुनहरा ललित निबन्ध है
औरत हा औरत ही वो अद्भुत शक्ति है
जो एक शरीर से कई शरीर बना सकती है
भगवान ने कुल एक औरत पैदा की
उसने भगवान् और भाग्यवान पैदा किये
औरत है तो ये दुनिया है उसके बिना
आदमी तो क्या आदमी का जीवास्म नही होता
औरत के जिस्म को देख के विमर्श करने बालो
औरत को देखना है तो दुर्गा के अवतारो को देखो
औरत है तो ये दुनिया है उसके बिना
आदमी तो क्या आदमी का जीवास्म नही होता
औरत के जिस्म को देख के विमर्श करने बालो
औरत को देखना है तो दुर्गा के अवतारो को देखो