Tuesday, December 6, 2011

भोली लडकी

आज के दिन किसी सूने से पडे आंगन मै
रोती हंसती सी आई थी एक भोली लडकी

घर के लोग खिलौना सा समझते जिसको
मुख पे रौनक सी छाई थी वो भोली लडकी

गुडियो से खेलती हुई मन मै उमंगे भरके
खेलती,पढती, लुभाती थी वो भोली लडकी

मा की ममता, पिता के कडे अनुशासन मै
पल के बढती है पढाकू सी वो भोली लडकी

दीन दुनिया की सभी फिकरों  को धुंए   उडा
आईने देख के सवरती रही  वो भोली लड़की

होले होले से जवानी ने तभी  दस्तक दे दी
दादी अम्मा की भई फिक्र अब भोली लड़की

ढूढा एक राजकुमर शादी की तयारी कर ली
मूक रहकर के बनी  दुल्हन वो भोले लड़की

Monday, October 10, 2011

प्यार नहीं दे पाऊँगा - डा कुमार विश्वास ( pyaar nahee de paaungaa )






ओ कल्पवृक्ष की सोनजुही!
ओ अमलताश की अमलकली
धरती के आतप से जलते
मन पर छाई निर्मल बदली.
मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा
तुम कल्पव्रक्ष का फूल और
मैं धरती का अदना गायक
तुम जीवन के उपभोग योग्य
मैं नहीं स्वयं अपने लायक
तुम नहीं अधूरी गजल शुभे
तुम शाम गान सी पावन हो
हिम शिखरों पर सहसा कौंधी
बिजुरी सी तुम मनभावन हो.
इसलिये व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा.

तुम जिस शय्या पर शयन करो
वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो
जिस आँगन की हो मौलश्री
वह आँगन क्या व्रन्दावन हो
जिन अधरों का चुम्बन पाओ
वे अधर नहीं गंगातट हों
जिसकी छाया बन साथ रहो
वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो
पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा.

मै तुमको चाँद सितारों का
सौंपू उपहार भला कैसे
मैं यायावर बंजारा साँधू
सुर श्रंगार भला कैसे
मै जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ शुभे
बारूद बिछी धरती पर कर लूँ
दो पल प्यार भला कैसे
इसलिये विवष हर आँसू को सत्कार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा.


गीत डा. कुमार विश्वास जी के कविता संकलन कोई दीवाना कहता है, जिसका प्रकाशन नये औरवेहतरीन रूप मे फ़्यूजन बुक्स ने किया है से लिया गया है. कुमार विश्वास आज के हिन्दी कवि सम्मेलनो के सबसे ज्यादा पसन्द किये जाने वाले कवि है और अन्तर्जाल पर उनकी लोकप्रियता नये कीर्तिमान कायम कर रही है. उनके बारे मे और जानकारी उनके अन्तर्जाल पते (www.kumarvishwas.com) पर ली जा सकती है .

Friday, September 30, 2011

आओ ना मितवा अभी मन है प्यासा


आओ ना मितवा अभी मन है प्यासा
रुको जब तक हलचल है जीवित है आशा

यमुना का तट था औ कदम्बो की डाली
बिन राधा थे बैठे जहा श्याम खाली
बरनिया के कुंजो मे झूल्र थे हम तुम
उन सखियों से छिपकर मिले भी थे आली

तब पूनम की रातो में संग-संग विचरना
वो फूलो की सेजों पे खुद में सिमटना
वो कंपते से अधरों पे चुम्बन की वर्षा
याद है वो दोनों का एक होकर मिलना

याद है वो स्वप्निल सी भीगी-भीगी राते
तुमने लिखे ख़त और मीठी-मीठी सी बाते
जाओ ना मितवा अभी मौसम है प्यारा
अकेले खेल में झेलूँगा रोज शह और माते

आओ ना मितवा अभी मन है प्यासा
रुको जब तक हलचल है जीवित है आशा

Tuesday, September 27, 2011

अमर शहीद भगत सिह - यादो के चित्र


माटी का पलंग मिला काठ का विछौना - आत्म प्रकाश शुक्ला ( प्रसिद्ध गीतकार )

माटी का पलन्ग  मिला काठ का विछौना
जिन्दगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना



एक ही दुकान मे सजे हैं सब खिलौने
खोटे खरे भले बुरे सावरे सलौने
कुछ दिन दिखे पारदर्शी चमकीले
उडे रंग तेरे अंग हो गए घिनौने
जैसे जैसे बड़ा हुआ होता गया बौना
जिन्दगी मिली के जैसे कांच का खिलौना


मौन को अधर मिले अधरों को वाणी
प्राणों को पीर मिली पीर को कहानी
मौत आये आये चाले ले खुली हथेली
पाव को डगर मिली वो भी आनी जानी
मन को मिला है यायावर मृगछौना
जिन्दगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना।


धरा नभ पवन अगिन और पानी
पांच लेखको ने लिखी एक ही कहानी
एक दृष्टि है जो सारी सृष्टि मे समाई
एक शक्ल की ही सारी दुनिया दीवानी
एक मूठ माटी गयी तौल सारा सोना
जिन्दगी मिली की जैसे कांच का खिलौना

शोर भरी भोर मिली बाबरी दोपहरी
सांझ थी सयानी किंतु गूंगी और वाहरी
एक रात लाई बड़ी दूर का संदेशा
फैसला सुनाके ख़त्म हो गयी कचहरी
ओढ़ने को मिला वो ही दूधिया उढौना 
जिन्दगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना

Monday, September 26, 2011

आज की रात वाहो़ मे़ सो जाइये - प्रसिद्ध गीतकार श्री आत्म प्रकाश शुक्ल






आज की रात वाहो़ मे़ सो जाइये
क्या पता ये मिलन फिर गवारा ना हो
या गवारा भी हो तो भरोसा नही
मन हमारा भी हो मन तुम्हारा भी हो

इस अजाने उबाऊ सफ़र मे़ घडी
दो घडी साथ जी ले़ बडी बात है
भीड से बच अकेले मे़ बैठे़ जरा
हम फटे घाव सी ले़ बडी बात है

गोद मे़ शीश धर चूम जलते अधर
इस घने कुन्तलो मे़ छिपा लीजिये
आचरण के सभी आवरण तोडकर
प्राण पर्दा दुइ का मिटा दीजिये

हाथ धोके पडा मेरे पीछे शहर
लेके कोलाहलो़ का कसैला ज़हर
इसलिये भागकर आ गया हू़ इधर
मेरे मह्बूब मुझको बचा लीजिये

आज की रात तन-मन भिगो जाइये
क्या पता कल किसी का इशारा ना हो
या इशारा भी हो तो भरोसा नही़
मन हमारा भी हो मन तुम्हारा भी हो

इससे पहले मुअज्जन की आये अजान
या शिवालय में गूंजे प्रभाती के स्वर
या अजनबी शहर में उठे चौंककर
दूर से सुन बटोही सुवह का सफ़र

या नवेली दुल्हन से ननद मनचली
हंसके पूछे रही थी कहाँ रात भर
सांस की सीढियों से फिसलती हुई
निर्वसन रात पूछे कहा कंचुकी

आज की रात सपनो में खो जाइए
क्या पता कल नज़र हो नज़ारा ना हो
या नजारा भी हो तो भरोसा नहीं
मन हमारा भी हो मन तुम्हारा भी हो

Friday, September 2, 2011

गृहदाह - शरत का चर्चित उपन्यास और इसकी नायिकाये





शरत चन्द के इस चर्चित उपन्यास मे २०वे सदी के शुरूआत के बंगाल  के सामाजिक परिवेश और  सांस्कृतिक परिदृश्य का परिचय मिलता है. उपन्यास के माध्यम से शरत परम्परागत हिन्दू समाज और ब्रह्म समाज के बीच संघर्ष से परिचय कराते  है. , ग्रामीण रूढीवादी  समाज और सभ्य कहे जाने वाले शहरी जीवन के विश्वास और  मूल्यो के बीच के फ़र्क पर भी उन्लेहोने प्रकाश डाला है. इस उपन्यास मे शरत मानवीय प्रेम, विश्वास और विवाह संस्था की तथाकथित मजबूती पर प्रश्न खडे करते है.

एक कुशल समाज सुधारक के रूप मे शरत इस उपन्यास के माध्यम से ब्रह्म समाज के उदय के वाद बंगाली   समाज मे हो रही सामाजिक-धार्मिक समस्याओ की पहचान करते है. मानवीय सम्बन्धो के यथास्थिति चित्रण के साथ साथ इस उपन्यास मे नाटकीय घटनाक्रम है और बाल सखा महिम और सुरेश के आचरण के आलोक मे इस नाटकीयता की यात्रा आगे बढती है. एक तरफ़ गरीब और मेधाबी महिम है जिसे अपना आत्म सम्मान दुनिया की किसी भी उपलब्धि से अधिक प्यारा है तो दूसरी ओर उसका वालसखा सुरेश है जो कि धनवान और उदार है.

महिम और सुरेश की इस घनिष्ठ मित्रता के बीच अचला आती है जो कि ब्रह्म समाज को मानने बाले परिवार से है. लालन पालन और पढाई लिखाई से आधुनिक है. महिम की बौद्धिक आभा अचला को उसकी ओर खीचती है और उसे महिन की वित्तीय और सामाजिक हालत की कोई परवाह नहीं है. महिम से शादी के बाद अचला शहर के आराम त्यागकर उसके साथ पैतृक गाँव जाती है जहाँ अभाव का साम्राज्य है. गरीबी और रूढियो से परेशान होने पर अचला के लिये अपने प्रियतम पति के साथ रहना बहुत कष्टकारी लगता है. पारिवारिक कलह और मृणाल के साथ महिम के रिश्ते के प्रति शन्का और फिर मनमुटाव के बीच सुरेश का उनके बीच आना, इस सबकी परिणिति  "गृहदाह" के रूप मे होती है.

महिम आग मे जल जाता है और गम्भीर बीमार हो जाता है, सुरेश अपने परोपकारी स्वभाव और महिम  से दोस्ती के कारंण महिम की देखभाल करता है और अचला उसकी सेवा करती है. लेकिन इसी बीच अचला सुरेश की तरफ़ आकर्षित होती है और उसे ये महसूस होना शुरू होता है कि बुद्धिमान होने से कुछ नही होता जब तक कि आदमी सामाजिक और आर्थिक र्रूप से मजबूत नही हो. इस बीच सुरेश के धूर्त दिमाग मे कुछ और ही था और वह योजना बनाकर और धोखा देकर अचला को भगा ले जाता है. अन्त मे अचला अपने पति के पास लौट आती है और हिन्दू मान्यताओ के अनुरूप पति के प्रति समर्पित हो जाती है. उपन्यास का शीर्षक सिर्फ़ उनके जले हुए घर की कहानी नही कहता बल्कि अचला और महिम के बीच जलते हुए रिश्ते की ओर इशारा करता है. .

गृहदाह मे शरत ने २ स्त्री पात्रो का चित्रण किया है. अचला और मृणाल 
अचला
अचला के चरित्र को ठीक से समझने का दावा मै नही कर रहा. लेकिन शरत ने उसे कुलटा नही कहा अभागी कहा है. अभागी इसलिये कि जैसे देवदास अभागा था जो समय पर ये नही समझ पाया कि पारो के बिना उसके लियी जीवन क्या है और बह पारो को कितना प्यार करता है ऐसे ही महिम के सदगुणो से प्रभावित होने पर भी बह ठीक से यह नही जान पायी कि बह महिम से कितना प्यार करती है. अपनी सोच और अपने जीवन के प्रति उसके विचार निश्चयात्मक नही है. वह एक विचारबान महिला है लेकिन लेकिन अपने विचार पर टिकी नही रह पाती.  महिम से विवाह वो अपने पिता की अनिच्छा के वाबजूद करती है लेकिन बाद मे अपने निर्णय से खुश नही रहती. प्यार करते समय गरीबी और अभाव की बातो को नज़रन्दाज़ करने वाली अचला उनका सामना करने पर महिम के वास्तविक गुणो को भी भूल जाती है. शरत इसके लिये दोष अचला को नही बल्कि उस समय के बन्गाली समाज के शहरी और ग्राम्य जीवन के मूल्यो के टकरव को और सामजिक-धार्मिक मत भिन्नता की खाई को इसके लिये जिम्मेदार मानते है.
 . .  
मृणाल 
अचला के चरित्र के विपरीत मृणाल एक कम पढी लिखी ग्राम्य महिला है स्वभाव से चुलबुली है. जबरदस्त हास्य बोध है, वेमेल विवाह की अपनी नियति पर कुढती भी है लेकिन अपने धर्म और जिम्मेदारियो के प्रति पूर्णत: सजग है. महिम को कभी पसन्द करती थी और अपने वेमेल विवाह के लिये भी उसे ही जिम्मेदार मानती है. वो एक आस्थावान हिन्दू महिला है और विधवा होने के बाद अपनी नियति से समझौता कर लेती है.  

Wednesday, August 24, 2011

कुछ टूटे फूटे शब्द



मोहब्बत एक पूजा है अगर आँखों मे  पानी है
मोहब्बत दो दिलो के तीर पे गंगा का पानी है
सच्चे लोग पीते हैं मोहब्बत रस के प्याले को
झूठे प्रेमियों के लिए तो ये बोत्तल का पानी है
______________________________________
रसीले होठ तेरे थे सुखद अहसास मेरे थे
सुनहरे केश तेरे थे लिपटते गाल मेरे थे
मगर जब स्वप्न टूटा तो यही सच सामने आया
न तू मेरी न मैं तेरा सुखद वो स्वपन मेरे थे
______________________________________
भोर की पहली किरण कहती सुवह से,
मैं प्रथम उस सूर्य की अभिसारिका हूँ
तुम भले नित की करो जलपान उसके साथ पर
मैं प्रथम उस सूर्य की परिचारिका हूँ।

Saturday, August 20, 2011

अफसाना हो गया










मैं यूँ ही गुनगुनाता हूँ उसे ये लोग गाते हैं                                                                             

उसीको कहते हो की ये एक तराना बन गया


हीर तो हर गली में ही एक से एक सुंदर हैं.


तुझे जबसे ज़रा देखा दिल दीवाना हो गया


कोई जानता भी तो ना था कहा पड़े हुए हैं


हुए मशहूर हम तो हमारा भी घराना हो गया


कोई मूड भी न था ना कोई स्वप्न देखा हैं

आशा ने कहा 
 तो लो देखो फसाना हो गया









Thursday, August 4, 2011

पांच तार की चादर - आत्म प्रकाश शुक्ला ( प्रसिद्ध गीतकार )

पांच तार की चादर देखो किसके किसके नाम हुई,
गुदरी मे संन्यासी लगती चुनरी मैं गुलफाम
हुई।

नगर बधू की रंग बिरंगी रतन जडी पटरानी की,
सतवंती की सीधी साधी एक रंग दीवानी की।
वरसाने मे बनी राधिका नन्द गाँव मे श्याम हुई,
गुदरी मे संन्यासी लगती चुनर मे गुलफाम हुई।

वैरागी मे बनी चोलना अरिहंतों में नगन हुई,
पनघट-पनघट चोली लहंगा मरघट-मरघट मरण हुई।
मठ मे बनी पुजारी तो मैखाने मे खैयाम हुई,
गुदरी मे संन्यासी लगती चुनरी मे गुलफाम हुई।


लंगोटी मे गांधी तो चीवर पहने बुद्ध हुई,
वसन हुई निर्वसन देह तो आत्मा कितनी शुद्ध हुई।
वाघम्बर मे दिखी दिगंबर वल्कल पहने राम हुई
गुदरी मे संन्यासी लगती चुनरी मे गुलफाम हुई।

बचपन बीता पहन झिगोला यौवन बीता चोली मे,

बैठ खाट पर जिए बुढापा मोटी कथरी कमरी मे।
सुवह हुई हो गयी दोपहरी धीरे-धीरे शाम हुई,
गुदरी में संन्यासी लगती चुनरी में गुलफाम हुई।

पांच तार की चादर देखो किसके किसके नाम हुई,
गुदरी मे संन्यासी लगती चुनरी मे गुलफाम हुई।



गीत हिंदी कवि सम्मेलनों के शिखर पुरुष आत्म प्रकाश शुक्ला जी से सूना हुआ स्मृति के आधार पर यहाँ दिया गया है. आत्म प्रकाश जी के गीतों मे रूमानियत और दर्शन का अद्भुत संगम है. 

Monday, August 1, 2011

क्या समर्पित करू - डा. कुमार विश्वास (kya samarpit karoon)



बाँध दूँ चाँद, आँचल के इक छोर में
माँग भर दूँ तुम्हारी सितारों से मैं
क्या समर्पित करूँ  जन्मदिन पर तुम्हें
पूछता फिर रहा हूँ बहारों से मैं


गूँथ दूँ वेणी में पुष्प मधुमास के 
और उनको ह्रदय की अमर गंध दूं,
स्याह भादों भरी, रात जैसी सजल
आँख को मैं अमावस का अनुबंध दूं 
पतली भू-रेख की फिर करूँ अर्चना 
प्रीति के मद भरे कुछ इशारों से मैं 
बाँध दूं चाँद, आँचल के इक छोर में
मांग भर दूं तुम्हारी सितारों से मैं



पंखुरी-से अधर-द्वय तनिक चूमकर
रंग दे दूं उन्हें सांध्य आकाश का
फिर सजा दूं अधर के निकट एक तिल 
माह ज्यों बर्ष के माश्या मधुमास का
चुम्बनों की प्रवाहित करूँ फिर नदी
करके विद्रोह मन के किनारों से मैं
बाँध दूं चाँद, आँचल के इक छोर में
मांग भर दूं तुम्हारी सितारों से मैं

चित्र गूगल से साभार लिया गया है और गीत डा. कुमार विश्वास जी के कविता संकलन कोई दीवाना कहता है, जिसका प्रकाशन नये औरवेहतरीन रूप मे फ़्यूजन बुक्स ने किया है से लिया गया है. कुमार विश्वास आज के हिन्दी कवि सम्मेलनो के सबसे ज्यादा पसन्द किये जाने वाले कवि है और अन्तर्जाल पर उनकी लोकप्रियता नये कीर्तिमान कायम कर रही है. उनके बारे मे और जानकारी उनके अन्तर्जाल पते         (www.kumarvishwas.com) पर ली जा सकती है.

Sunday, July 31, 2011

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख क्रान्तिकारी उधम सिंह


भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के प्रमुख क्रान्तिकारी सरदार उधम सिंहका नाम अमर है। आम धारणा है कि उन्होने जालियाँवाला बाग हत्याकांड के उत्तरदायी जनरल डायर को लन्दन में जाकर गोली मारी और निर्दोष लोगों की हत्या का बदला लिया, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उन्होंने माइकल ओडवायर को मारा था, जो जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब के गर्वनर थे।[1] ओडवायर जहां उधम सिंह की गोली से मरा, वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर मरा।

उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद आजाद सिंह रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है।

अनाथालय में उधमसिंह की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे।

उधम सिंह १३ अप्रैल, १९१९ को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग  में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीकानैरोबीब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा।

उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।

बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधमसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। अदालत में जब उनसे पूछा गया कि वह डायर के अन्य साथियों को भी मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया। उधम सिंह ने जवाब दिया कि वहां पर कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।

4 जून, 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। इस तरह यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अमर हो 
 गया। 1974 में ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए। 

यह आलेख और जानकारी बिकीपिदिया से साभार  लिया गया है और फोटो गूगल से साभार . 

Monday, July 18, 2011

लड़कियां पतंग उडाती हैं


लडकियां उडाती हैं पतंगे
लेकिन चरखी कोई और पकड़ता है
वो डोर पकड़ती है
पतंग को छुट्टी कोई और देता है


वो पतंग तो उडाती हैं
तंग कोई और ही बांधता है
या वो उडाती हैं
पतंगे जो कटके छत पे आती हैं


उनकी पतंग उडती भी है
आकाश में लेकिन
घरवालेआगाह करते हैं
पेच ना लड़ाने की सीख देते हैं


जो लडकियां पतंग उडाती हैं
तो उनसे ये भी कहा जता है कि
भले कोई ढील दे
तुम्हें अपनी डोर खीचके ही रखनी है


हाँ लड़किया पतंग उडाती है
पर क्या पता उसे आसमान निगलता
या धरती खाती है
शाम होते गगन में आवारा पतंगे रहती हैं

Saturday, July 9, 2011

उसके होने से मैं हूँ,

उसके होने से मैं हूँ,
वो नहीं तो अपना वजूद ढूँढता हूँ!
उसके होने से आबाद हूँ,
आज उसके जाने से जर्जर पड़ा हूँ!
तपती रेत से पड़े छालों में इतनी तासीर न थी,
जितने गहरे ज़ख्म उसके जाने ने दिए!
आज जब वो नहीं तो मेरा अस्तित्व नहीं,
बांसुरी बिन कान्हा, कान्हा नहीं!
मैं रेत, वो पानी,
मेरे ऊपर गिरती और विलुप्त हो जाती!
सोचता था ठंडक देगी मुझको,
चली गयी और झुलसा मुझको!
आज वो नहीं,
तो कुछ नहीं!
जानता था रेत और पानी का मिलन न होगा कभी,
पर दिल कहता था थोड़ी देर देख ले अभी!
अब मैं हूँ और मेरी तन्हाई,
और जिससे कभी मेरी याद न आई,
आज उसे याद कर रोता हूँ अकेले में!!!
NEERU KUMAR

Thursday, June 30, 2011

ओबामा एक और भारतीय रूप अनेक

शीला की जवानी' गीत का भावार्थ


I know you want it
But you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Maane na maane koi duniya
Yeh saari, mere ishq ki hai deewani

Hey hey,
I know you want it but you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Maane na maane koi duniya yeh saari
Mere ishq ki hai deewani
Ab dil karta hai haule haule se
Main toh khud ko gale lagaun
Kisi aur ki mujhko zaroorat kya
Main toh khud se pyaar jataun

what's my name
what's my name
what's my name
My name is Sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Na na na sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani

Take it on
Take it on
Take it on
Take it on

Silly silly silly silly boys
O o o you're so silly
Mujhe bolo bolo karte hain
O o o
Haan jab unki taraf dekhun, baatein haule haule karte hain
Hai magar, beasar mujh par har paintra

Haye re aise tarse humko
Ho gaye sober se re
Sookhey dil pe megapan ke teri nazariya barse re
I know you want it but you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Na na na sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani

Paisa gaadi mehnga ghar
?ani na mainu ki gimme your that
Jaibein khaali bhadti chal
No no I don't lie like that

Chal yahan se nikal tujhe sab laa dunga
Kadmon mein tere laake jag rakh dunga
Khwaab main kar dunga poore
Na rahenge adhoore
You know I'm going to love you like that, whatever

Haye re aise tarse humko
Ho gaye sober se re
Sookhey dil pe begapan ke teri nazariya barse re
I know you want it but you never gonna get it
You never gonna get my body
I know you want it but you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Maane na maane koi duniya yeh saari
Tere ishq ki main deewani

Ab dil karta hai haule haule se
Main toh khud ko gale lagaun
Kisi aur ki mujhko zaroorat kya
Main toh khud se pyaar jataun

What's my name
What's my name
What's my name

My name is Sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
O no no sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani

Ain't nobody got body like sheela
Everybody want body like sheela
Drive me crazy coz my name is sheela
Ain't nobody got body like sheela
Everybody want body like sheela
Drive me crazy coz my name is sheela
Ain't nobody got body like sheela






प्रस्तुत उत्तेजक गीत हिन्दी फिल्म जगत के नवीनतम रत्न 'तीस मार खान' से लिया गया है. यह गाना नायिका के संगमरमर जैसे शरीर से आकर्षित होने वाले लंगोट के ढीले पुरुषों पर नायिका की अपमानजनक प्रतिक्रया को व्यक्त करता है. नायिका उन्हें सीधे और कटु शब्दों में बताना चाहती है कि शीशे के पीछे रसगुल्ले की ख्वाहिश करना एक बात है और उसे चखना दूसरी बात!

I know you want it
 But you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Maane na maane koi duniya
Yeh saari, mere ishq ki hai deewani

गाने की शुरुआत नायिका के ईमानदारीपूर्ण वक्तव्य से होती है. वो जानती है कि इन मर्दों को उसकी भावनाओं, दिल और प्रेम से कोई सरोकार नहीं. वो तो बस एक ही चीज चाहते हैं. पर वो उन्हें मिलने वाली नहीं. उन्हें मुंह में भर आये पानी से ही अपनी प्यास बुझानी होगी. दुर्भाग्यपूर्ण, परन्तु सत्य.


Hey hey, I know you want it
but you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
Maane na maane koi duniya
yeh saari Mere ishq ki hai deewani
Ab dil karta hai haule haule se
Main toh khud ko gale lagaun
Kisi aur ki mujhko zaroorat kya
Main toh khud se pyaar jataun

नायिका पुनः दर्जनों पुरुषों में उसके प्रति जगी वासना पर प्रकाश डालती है. वो अपने आस-पास मंडराते छिछोरों को बताती है कि उनकी दाल नहीं गलने वाली. पर साथ ही यहाँ नायिका के व्यक्तित्व का एक और पक्ष उजागर होता है. सौंदर्य से जागृत अहंकार का पक्ष. वो अपनी सुन्दरता से इतनी प्रभावित है कि उसे किसी पुरुष की ज़रुरत नहीं. वो अपने अन्दर की स्त्री के लिए खुद ही पुरुष बन जाना चाहती है. अब इसे अहंकार की पराकाष्ठा कहें या आत्म-प्रेम की मादकता!


what's my name
what's my name
what's my name
My name is Sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Na na na sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani

अब नायिका अपना परिचय देती है. अपना नाम बताती है. और नाम भी ऐसा जो बूढ़ी नसों के लिए वायाग्रा का काम करे. उनमें यौवन का झंझावात ला दे. नाम बताने के साथ वो यह भी बताती है कि वो बहुत ही ज़्यादा सेक्सी है. अपने मुंह मियाँ मिट्ठू. पर इस आत्म-प्रशंसा में भी अहंकार की  सुगंध है. वो खुद को इतना ज़्यादा सेक्सी  बताती है कि वो सबकी  पहुँच से बाहर है. एक ऐसे चन्द्रमा की तरह जिसकी चांदनी तो सबको उपलब्ध है, पर उस चाँद को छूकर उसे महसूस करना किसी के बस की नहीं. यहाँ यह सिद्ध होता है है कि नायिका सौंदर्य की साधक ही नहीं, बल्कि अहंकार से भरी चुड़ैल भी  है.


Take it on
Take it on
Take it on
Take it on

 अब नायिका सीधे शब्दों में चुनौती देती है. एक ऐसी चुनौती जो शायद मर्दों में शराब के बिना भी साहस ला दे.


Silly silly silly silly boys
O o o you're so silly
Mujhe bolo bolo karte hain
O o oHaan jab unki taraf dekhun,
baatein haule haule karte hain
Hai magar, beasar mujh par har paintra

अब नायिका उनका उपहास करती है. उन्हें मूर्ख कहकर पुकारती है. उन्हें ज़लील करती है. वो मर्द नायिका के बारे में गुप-चुप बातें कर सकते हैं, पर उसके सामने जुबां नहीं खोल पाते. वासना और कायरता का ये अद्भुत संगम है.


Haye re aise tarse humko
Ho gaye sober se re
Sookhey dil pe megapan ke
teri nazariya barse re
I know you want it
but you never gonna get it
Tere haath kabhi na aani
SheelaSheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani
Na na na sheela
Sheela ki jawani
I'm just sexy for you
Main tere haath na aani

यहाँ आखिरकार वासना से मदहोश मर्द कुछ बोलने की  हिम्मत जुटाते हैं. वो धीमे स्वर में अपनी इच्छा ज़ाहिर करते हैं. वो बोलते हैं कि नायिका का फिसलता बदन उनके बंजर दिलों में प्रेम का अंकुर ला रहा है. मानो  नायिका  को उनकी असली इच्छा का पता ही नहीं. इसलिए वह उन्हें फिर से याद दिलाती है कि दिन में सपने देखना छोड़ दें.

यह ख़ूबसूरत गीत आज ही नहीं, सदियों से चला आ रही नर और नारी की मानसिकता को उजागर करता है. नारी हज़ारों घंटे श्रृंगार और व्यायाम में बिताकर इस लायक दिखती है कि मर्द उस पर गिद्ध जैसी नज़रें डालें. पर जब वो नज़रें डालते हैं तो नायिका उन्हें चूजा सिद्ध कर देती है. नर भी कम नहीं. वो नारी के शारीरिक आकर्षण के सामने आपा खो बैठते हैं. जब वासना शिखर पर होती है तो साहस लुकाछिपी खेल रहा होता है. अब ऐसे में मिलन हो तो कैसे हो? इसी सवाल  के साथ यह गीत श्रोताओं और दर्शकों के मन में एक कसक छोड़ जाता है.

कार्पल ट्यूनल सिंड्रोम - माउस और की बोर्ड


हमारे जो दोस्त प्रतिदिन कम्प्यूटर पर काम करते हैं उनके हित में यह पोस्ट लिखी गयी है. हम सभी प्रतिदिन माउस और की बोर्ड काम में लेते समय जो गल्तियाँ करते है वो  कार्पल ट्यूनल सिंड्रोम का कारण बन सकती हैं.


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