अकेलापन
मौन कमरों के झरोखे
और खिड़की चुप हुई,
पीर आँखों से बरसती
चुभ रही दिल मैं सुई,
एक वीराना हमेशा पालता रहता मुझे |
भीड़ फैली हर तरफ है
मैं अकेली हूँ खड़ी,
ज्यों समुन्दर के किनारे
पर कोई कश्ती पड़ी,किन्तु गीलापन हमेशा टालता रहता मुझे |
प्रीति की क्यारी सहेजूँ
मन उलझकर रह गया है
विरह की इन झाड़ियों में
कौन सपनों में हमेशा ढालता रहता मुझे ?