लोग तो परेशान हैं कि जब घर में घुसो देखो शयनकक्ष से लेकर के बाहर की बैठक तक यहाँ वहां सब जगह सामान बिखरा पडा है _______________ रातों में नभ निहारो निशा की रियासत में सैनिक बन दमक रहे तारे हैं टिमटिमा रहे राजा से चन्द्रमा का प्रकाश बिखरा पडा है _______________ दुनिया में घृणा देख व्याकुल हुआ कवि मन युद्ध की तो कौन कहे घरेलू मसलों पर ही इंसानियत मर रही है खून बिखरा पडा है _______________ जीवन भी देखो ना माटी के पुतले में साँसों का डेरा है आस का पखेरू है उसमें भी सपन मेरा टूटा बिखरा पडा है _______________ हरि शर्मा |
Friday, September 4, 2009
सब जगह बिखरा पडा है
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