पल भर हो भले प्रहर भर हो
चाहे संबंध उमर भर हो
केवल इतनी सी शर्त मीत
हम मिलकर बेईमान ना हो़
जग जो चाहे सो कहे बिम्ब
आईने मे़ बदनाम ना हों।
गत क्या था क्या होगा आगत
मत अन्धकार का कर स्वागत
क्या पता कौन दिन दस्तक दे
सांकल खटकाये अभ्यागत
हम अपनी धरती पर जिये़
यक्ष गन्दर्बों के मेहमान ना हो।
कोई मिल जाता अनायास
लगता प्राणो़ के बहुत पास
फिर वही एक दिन खो जाता
सुधियो़ को दे अज्ञातवास
हम वर्तमान मे़ जिये भूत
या भावी के अनुमान ना हो़।
जगती की कैसी बिडम्वना
इतिहास नही होती घटना
छाया प्रतीत हो जाती है
विश्वास बदल होता सपना
स्वीकारे़ क्षण की अवधि
अनागत सपनो़ के अनुमान ना हो।
पल भर हो भले प्रहर भर हो -----