Sunday, August 30, 2009

मंदी

कुछ और रोजगार छूटे
कुछ और घरों की नीलामी हुई
बस इतनी सी बात हुई और
मेरे देश में दिन की शुरुआत हुई


मंदी का ये दुर्योधन मानो
द्रौपदी सी अर्थव्यवस्था की
इज्ज़त हरने को आतुर है
और ओबामा बने कृष्ण
संकट में हैं कहाँ से लायेंगे
इतना बेल-आउट का चीर
आर्थिक मंदी ने झकझोरा सबको
किसी को ज्यादा किसी को कम
कुछ तो झटका झेल गए
तो कुछ ने लगाया अपने
मंदी से घबराकर अपने
जीवन पर पूर्ण विराम


आशा भी डूबती जाती है
आख़िर कब लेगी
यह तंगी थोड़ा विश्राम
किस दिन उगेगा वो सूरज
जिसकी किरणे करेंगी
इस दानव का काम तमाम

कहतें है समय बड़ा बलवान
और है हर मर्ज की दवा
दो गोली संतुष्टि की
सुबह शाम खाओ और
सुनो हमारा भी नुस्खा
बुरा वक्त तो निकल जाएगा
पर तुम धीरज न खोना
नौकरी जाए या फिर
व्यापर क्यो ना डूबे पर
आस का साथ न छोडना
कभी तो होगा ही भइया
इस काली रात का अवसान

( शैलेश मंगल )