Saturday, January 25, 2014

पहाडों पर दूर तक जमी बर्फ

पहाड़ो का 

सनसनाती हुई हवाऐ
हड्डियों को कंपकपाती हुई ठंड
पेंड़ो से गिरते पत्ते
 घाटियों में गूंजती आवाजें 
और कल -कल बहती नदी का शोर

तेरी याद दिलाने के लिए काफी था 
जब तेरी तस्वीर उठाकर देखी तो
ओंस की कुछ बूंदे पड़ी थी 
गिला -गिला अजीब -सा नज़ारा था
जैसे अभी रोकर उठी हो
मेरी उन खोई हुई आँखों में
एक पल को उदासी तैर गई




ऐसी वीरान ! ठहरी हुई जिन्दगी तो मैनें कभी नहीं चाही थी
फिर क्यों चला आया मैं यहाँ सबकुछ छोड़कर
पहाड़ों पर मेरा दम निकलता हैं, ऐसी तो बात नहीं
पर यहाँ का सन्नाटा
अकेलापन 
तीर की तरह चलती ठंडी हवाएं  !
मेरे कलेजे को चीरती हैं


मैं उदास अपने हाथो को जोड़े होटल की बालकनी में खड़ा हूँ
           दूर ~~क्षितिज में हिमालय की चोटियों पे बर्फ चमक रही हैं
मानो किसी के सर पर चांदी का ताज जड़ा हो

और मैं खोज रहा हूँ अपनी गुजरी हुई जिन्दगी
"जहाँ सब मेरे अपने थे "
जहाँ खुशियाँ थी,  खिलखिलाहटे थी,  दोस्त थे, 
-----और तुम थी.

क्यों आ गया मैं इस अजनबी शहर में,
इस पत्थरों के शहर में,
जहाँ चारों और पहाड़ ही पहाड़ हैं
आवाज देता हूँ तो पत्थरों का सीना चीर कर लौट आती हैं

हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा-हा
तेरी खनकती हुई हंसी !!!
जैसे मेरे कानों में शहद टपक रहा हो 
अभी बोल उठेगी ---"कहाँ हो, मेरी जान"
"यही हूँ, तुम्हारे पास " मैं कह उठूँगा !

अचानक मेरा चेहरा विदूषक हो उठा
लगा ही नहीं की वो यहाँ नहीं हैं


मैं सहज ही उसकी मुस्कान में बंधा हुआ
उसके बांहों के धेरे में सिमटा हुआ 
   उसके चेहरे की कशिश में लिपटा हुआ 
मदहोश -सा बहा जा रहा हूँ 
काश, तू होती 
इन हसीं वादियों में
हम हाथों में हाथ डाले घूमते- फिरते
तुम मुझ पर बर्फ के गोले मारती
मैं तुम्हें  पकड़ता ..भागता ..चूमता
तुम हंसती हुई भाग खड़ी होती और
मैं तुम्हें प्यार से निहारता रहता
इन ठंडी रातों में
हम मालरोड पर घूमते
ठंडी - ठंडी आइसक्रीम खाते
कभी ठंड से बचने के लिए
सड़कों पर जलते अलावो पर हाथ सकते  
 चर---र्र --र्र  ---र्र-- र्र---र --




अचानक ! किसी गाडी की जोरदार आवाज से तन्द्रा भंग हुई 
मैनें चौंककर देखा ---'तू नहीं थी' 
"अरे कहाँ गई अभी तो यहीं थी 
मैं पागलों की तरह चारों और ढूंढता रहा
"पर वो जा चुकी थी "

और मैं अकेला सुनसान सड़क पर खड़ा  था 
उसका इन्तजार करता हुआ 
मुझे पता हैं --"वो नहीं आएगी"