Thursday, March 10, 2011

ये लोग - श्रीमती रजनी मोरवाल




शहर की रफ़्तार के मारे हुए हैं लोग |
है ललाटो पर लकीरें 
मुर्दनी मुंह को लगी है,
मंजिलों की चाहतों मैं
खवाहिशें खूंटी टँगी है,

रात-दिन की दौड़ से हारे हुए हैं लोग | 

तंगकूंचों में बसे ये
सीखचों में साँस लेते,
गुर्बतों का दोष सारा
किस्मतों पर लाद देते,

बेबसी से मौन को धारे हुए हैं लोग |

हादसे होते रहे पर
भीड़ तो रूकती नहीं है,
मौत के आगोश में भी
जिंदगी थकती नहीं,

मूक दर्शक से यहाँ सारे हुए हैं लोग | 




http://www.rajanimorwal.blogspot.com

यह ज़िंदगी है क्या ? - श्रीमती रजनी मोरवाल




ज़िंदगी से
एक शाम 
समेटकर 
सोचने बैठी मैं
आज ...........
कि आखिर
यह ज़िंदगी है क्या ?
परिभाषाओं से परे
एक नाम है ?
या मंजिल के बिना
एक अंतहीन सफ़र |
या......फिर यह
एक समुन्दर है,
जिसमें
कहीं मोती हैं ,
तो कहीं ख़ाली
सीपों- सी बजती
एक आशा है |
आख़िरकार
यह ज़िंदगी है क्या ?
नंदनवन है ?
या फिर,
सेमल के फूलों से
लदा एक उपवन ?
जिसमें .........
रंग-ही-रंग हैं
और
ख़ुशबू का
अहसास तक नहीं |


अहसास - श्रीमती रजनी मोरवाल



अहसासों के साये-साये साँझ ढली-सी आई
ख्वाबों ने कलियों को खोले पंखुरियां फैलाई |

शानों पर सर रखकर 
नींदें अलसाई सी जागी,
सिहरन की गलियों में
ख़ुशबू पोर-पोर में भागी,

रेशम की साड़ी कुछ लरजी सिकुडन-सी बल खाई |

लब्ज ठिठक कर थमे रह गए
अधरों के भीतर में,
किन्तु संवेदन मुस्काए
अंगों के अंतर में,

जिस्मों पर लबरेज़ घटाएँ व्याकुल हो मंडराई |

उन्मादित सांसो ने कितने
राज सुनहरे खोले,
लहकी-लहकी काया ने
संवाद अनकहे बोले,

मद्धम-मद्धम शहनाई की स्वर लहरी लहराई | 

लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए - श्रीमती रजनी मोरवाल




लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए
टूटकर बिखरी हुई पहचान होकर रह गए |

बर्फ़ की -सी सिल्लियों के आवरण में सर्द हैं
ठण्ड की चुप्पी लपेटे दायरों में ज़र्द हैं
बस मुल्लमा तानकर अहसान होकर रह गए
लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए |

आइने से झांकते प्रतिबिम्ब कोई और हैं
झूठ की परतें चढ़ाये क्या फ़रेबी दौर है
इस हुज़ुमी वक़्त में हैवान होकर रह गए
लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए |

बस्तियों के बीच कितनी ख्वाहिशें है लुट रही
दंभ की दीवार सबके आंगनों में जुट रही
जिंदगी की दौड़ में अपमान होकर रह गए
लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए |

मेरे ब्लोग पर आज लेखिका के रूप मे रजनी मोरवाल जुड रही हैं. आप एक अध्यापिका के साथ साथ सुलझी हुई सोच की लेखिका है. मैं अपने ब्लोग पर उनका स्वागत करता हूँ. उनका अपना ब्लोग है -     http://www.rajanimorwal.blogspot.com