Thursday, March 10, 2011

ये लोग - श्रीमती रजनी मोरवाल




शहर की रफ़्तार के मारे हुए हैं लोग |
है ललाटो पर लकीरें 
मुर्दनी मुंह को लगी है,
मंजिलों की चाहतों मैं
खवाहिशें खूंटी टँगी है,

रात-दिन की दौड़ से हारे हुए हैं लोग | 

तंगकूंचों में बसे ये
सीखचों में साँस लेते,
गुर्बतों का दोष सारा
किस्मतों पर लाद देते,

बेबसी से मौन को धारे हुए हैं लोग |

हादसे होते रहे पर
भीड़ तो रूकती नहीं है,
मौत के आगोश में भी
जिंदगी थकती नहीं,

मूक दर्शक से यहाँ सारे हुए हैं लोग | 




http://www.rajanimorwal.blogspot.com

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर प्रस्तुति !!

Anupama Tripathi said...

हादसे होते रहे परभीड़ तो रूकती नहीं है,मौत के आगोश में भीजिंदगी थकती नहीं,
मूक दर्शक से यहाँ सारे हुए हैं लोग |

असीम वेदना दर्शाती हुई लाजवाब प्रस्तुति -
बधाई |