एक शाम
समेटकर
सोचने बैठी मैं
आज ...........
कि आखिर
यह ज़िंदगी है क्या ?
परिभाषाओं से परे
एक नाम है ?
या मंजिल के बिना
एक अंतहीन सफ़र |
या......फिर यह
एक समुन्दर है,
जिसमें
कहीं मोती हैं ,
तो कहीं ख़ाली
सीपों- सी बजती
एक आशा है |
आख़िरकार
यह ज़िंदगी है क्या ?
नंदनवन है ?
या फिर,
लदा एक उपवन ?
जिसमें .........
रंग-ही-रंग हैं
और
ख़ुशबू का
अहसास तक नहीं |
1 comment:
बहुत सुन्दर कविता शेयर की आपने ..उम्दा
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