Thursday, March 10, 2011

लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए - श्रीमती रजनी मोरवाल




लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए
टूटकर बिखरी हुई पहचान होकर रह गए |

बर्फ़ की -सी सिल्लियों के आवरण में सर्द हैं
ठण्ड की चुप्पी लपेटे दायरों में ज़र्द हैं
बस मुल्लमा तानकर अहसान होकर रह गए
लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए |

आइने से झांकते प्रतिबिम्ब कोई और हैं
झूठ की परतें चढ़ाये क्या फ़रेबी दौर है
इस हुज़ुमी वक़्त में हैवान होकर रह गए
लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए |

बस्तियों के बीच कितनी ख्वाहिशें है लुट रही
दंभ की दीवार सबके आंगनों में जुट रही
जिंदगी की दौड़ में अपमान होकर रह गए
लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए |

मेरे ब्लोग पर आज लेखिका के रूप मे रजनी मोरवाल जुड रही हैं. आप एक अध्यापिका के साथ साथ सुलझी हुई सोच की लेखिका है. मैं अपने ब्लोग पर उनका स्वागत करता हूँ. उनका अपना ब्लोग है -     http://www.rajanimorwal.blogspot.com


3 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhtrion bhtrin alfazon ki bhtrin adaakari he mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan

Satish Saxena said...

लगता है एक बेहतरीन रचनाकार मिली है ब्लॉग जगत को ! आपका आभार हरि भाई !

Unknown said...

आभार अकेला भाई,शुक्रिया सतीश जी,
स्नेह बनाये रखिये