अहसासों के साये-साये साँझ ढली-सी आई
ख्वाबों ने कलियों को खोले पंखुरियां फैलाई |
नींदें अलसाई सी जागी,
सिहरन की गलियों में
ख़ुशबू पोर-पोर में भागी,
रेशम की साड़ी कुछ लरजी सिकुडन-सी बल खाई |
लब्ज ठिठक कर थमे रह गए
अधरों के भीतर में,
अंगों के अंतर में,
जिस्मों पर लबरेज़ घटाएँ व्याकुल हो मंडराई |
उन्मादित सांसो ने कितने
राज सुनहरे खोले,
लहकी-लहकी काया ने
संवाद अनकहे बोले,
मद्धम-मद्धम शहनाई की स्वर लहरी लहराई |
1 comment:
बहुत सुन्दर रचना है रजनी जी......और उससे भी सुन्दर विषय "एहसास"............. मन के तारों को झंकृत करती....
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