Monday, June 6, 2011

कैसे लौटे मोहब्बत


जिसके होने से घर रोशनी से नहा जाता
जिसके कहने से कोई बात घर मे होती है
वो मेरा प्यार चुपचाप है दम तोड़ रहा
कैसे लौटे मोहब्बत बस यही सोच रहा

प्यार घुटता है घर मे तो फिर ऐसा करे
आकाश से करे प्यार जिए सबके लिए
लकड़ी की छत तले दम घुटता है मेरा
ले कुल्हाडी अब तोड़ दू सभी दीवारें 

इस जेल से निकल बाहर खुले मे आ
नए प्यार के रंगों से सजा दू तुमको
जैसे धरती को मिलाया है बदलिया से
ऐसे हम तुम करे प्यार खामोशी से

होंगी मजबूरिया सनम तेरी और मेरी भी
होंगे गम तंगी के भूख और बेकारी के
मत मांगो तुम हिसाब जमाने भर के
प्यार कर, हमें क्या लेना है जमाने से