Monday, December 28, 2009

मुंबई में मुलाक़ात शिप्रा-प्रवीर से 21.12.2009




मुंबई यात्रा में दोस्तों से मिलने का सिलसिला आगे बढ़ा और जिन शिप्रा वेरमा जी से रविवार मिलना नहीं हो सका उनसे सोमवार को मिलना तय हुआ. उनका घर मेरे ससुराल से बहुत दूर नहीं था  और सोमवार को सवेरे  घर से ऑटो किया और ठीक ९ बजे उनसे मिलने जा पहुचे. घंटी बजते ही प्रवीर जी ने स्वागत किया और हम दोनों ( मैं और मेरी पत्नी ) उनके फ्लैट में दाखिल हुए   और नमस्कार और परिचय हुआ. 

अंतरजाल पर तो हम लोग घंटो बात करते थे सो बहुत कुछ एक दूसरे के बारे में पता था और एक अपनेपन का रिश्ता भी है लेकिन वो सब अब वास्तविक और मूर्त रूप में शुरू हुआ.  शिप्रा   जी और प्रवीर जी को जिज्ञासा थी कि जब मैं देर रात तक अंतरजाल की सैर करता हू उस पर मेरी पत्नि की क्या प्रतिक्रया होती है. तो पत्नि ने बताया कि अब अंतरजाल है पहले किताबे होती थी तो ये या वो जी का जंजाल हमेशा रहा है. घर परिवार की बहुत सी बाते हुई. शिप्रा जी ने मुंबई मई नए सिरे से अपनी पहचान बनाने मई आई मुश्किलों के बारे मे बताया. शिप्रा जी ने अपने १ भजन और एक गीत को संगीत के साथ प्रस्तुत किया और मैंने अपने प्रिय गीतकार आत्म प्रकाश शुक्ल जी के कुछ गीत सुनाये. चाय नाश्ता हुआ जो कि पूरी तरह प्रवीर जी के द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम था और अंत में प्रवीर जी ने टैरो कार्ड की मदद से हमें भविष्य बताये. 

वर्मा दंपत्ति से ये छोटी लेकिन बहुत प्यारी मुलाक़ात रही. हम बिछुड़ गए फिर कभी मिलने के लिए.
     

Monday, December 21, 2009

बसेरे से दूर - मुंबई की यात्रा 20.12.2009




मुंबई मे कल तीसरा दिन था और आज सवेरे से तय हुआ कि कवि श्री कुलवंत सिंह से मिलना है और उसके लिए अंधेरी में होने बली चौपाल में ४ बजे शाम मुलाकात होगी. इसके बाद श्रीमती शिप्रा वर्मा जी का भी फ़ोन आया कि वो अभी ४ बजे चौपाल में जा रही है तो मैंने कहा कि मैं भी तो वही पहुच रहा हू. सो हमने अंधेरी में रहने बली तीसरी दोस्त को कहा कि में वहा जा रहा हू तुमसे मिलाना कहा होगा तो उन्होंने कार्यक्रम स्थल जानकर कहा कि कार्यक्रम ख़तम हो जाए तो बता देना मेरा घर पास ही है वही में जाउंगी.

सो कांदिवली पूर्व से चले अंधेरी पश्चिम के लिए और इसके लिए ली लोकल की शरण. आज रविवार होने के कारण कार्यालय आने जाने बाले लोगो की भीड़ नहीं थी सो अंधेरी थोडा आराम से पहुच गए और वहा से ऑटो किया और करीब करीब सही समय पर कार्यक्रम स्थल पहुच गए. वहा कार्यक्रम शुरू होने बाला ही था तो हमने हाल में नज़र घुमा कर कुलवंत जी और शिप्रा जी को ढूढना शुरू किया. लगा शायद वो  व्यस्त हो सो जगह लेके बैठ गए. अज की थीम मूल रूप से श्याम बेनेगल जी पर थी और उन्हें इस कार्यक्रम में आना था लेकिन एन बक्त पर उनका आना न हो सका तो एकदम से थीम बदलनी पडी. आयोजको को एकदम से मेहनत करनी पडी एक नए कार्यक्रम के लिए और इसका जिम्मा लिया जाने मने व्यंगकार और सीरियल लेखक सुभाष काबरा जी ने और एक कवि सम्मलेन की रूप रेखा रच दी. और ऐसे शुरू हुआ चौपाल का मासिक कार्यक्रम.

सुभास काबरा जी ने अपने ताज़ा व्यंग रचना जो कि मीडिया के ऊपर थी से कार्यक्रम की शुरुआत की और फिर एक अनूठे गायन कार्यक्रम से बात आगे बढी. युवा गायक साईं राम अय्यर ने पहले महिला की आवाज़ में एकल गीत सुनाया और फिर अगला युगल गीत महिला पुरुष की बदलती आवाज़ में सुनाया और दोनों के गायन में गायन की मधुरता और सुर ताल का सही सामंजस्य. इसके बाद कुछ नए गीतकारों के गीत हुए फिर अनिल मिश्र जी, हस्ती मल हस्ती जी तह पहुचकर इस काव्य यात्रा में विराम आया और तब तक कवि श्री कुलवंत सिंह जी और श्रीमती शिप्रा वर्मा जी के सन्देश मिल गए थे कि वे रास्ते    में अटक गए है और नहीं पहुच पाएंगे सो विराम के बाद हमने अन्य मित्र सुश्री अल्जीरा जी को फ़ोन किया कि आप में जाये अब हम बाहर आ गए है.

करीब ५ मिनट के इंतज़ार के बाद सुश्री अल्जीरा जी ऑटो से में पहुची और पहली बार मिलने की खुशी को दो गुना करते हुए अपने साथ अपने अज़ीज़ बेटी (जैसी) श्रीमती पिंकी जी को साथ ले आयी. उनसे मिलके जो खुशी मिली वो शब्दों में बयां करना मुश्किल है और साच में ऐसा लग रहा था कि उन्हें भी वैसी ही खुशी हो रही है. आते ही उन्होंने अपने कैमरे से फोटो लिए और फिर वृन्दावन जलपानगृह   में जाके बैठ गए. बहुत सी बाते जानी अनजानी होती रही और हंसी मजाक भी. कब साँझ हो गयी पता ना चला. हर मुलाकात का एक अंत होता है जैसे हर दिन की एक साँझ होती है सो हमें भी अलग होना ही था फिर कभी ऐसे ही मिलने के लिए.

Saturday, December 19, 2009

मुंबई मे मुलाक़ात मित्रो से - 19.12.09

कल मुंबई की इस यात्रा का दूसरा दिन था और दिन भर आराम और नेट पर कुछ घंटे गुजारे और इंतज़ार किया अपने बहुत ही प्यारे दोस्त और बड़े भाई चन्द्रभान शर्मा जी के काल का क्योंकि कल बात हो गयी थी शनिवार को मिलने की. सो ४ बजे उनका फ़ोन आया कि वो ५ बजे घर पहुच जायेंगे और घर का रास्ता समझाया उससे पहले उन्हें कहा कि घर का पता एसेमेस कर दो तो वोले कि ये आता तो बैंक की अफसर ही करता क्या. खैर उन्होंने कहा था कि लोकल से वोरीवली स्टेशन आना और वहा से ऑटो से घर जो कि प्रगति स्कूल और स्टेट बैंक की गोराई शाखा के बीच है तो वो शाखा के सामने मिल जायेंगे. हमने सोचा कि कौन लोकल के चक्कर मे पड़े  सो  सीधा   ऑटो किया और गौराई पहुच गए.

हम शाखा से सामने उतरे तो वो वहा नहीं थे तो फ़ोन मिलाया वोले मुझे तुम दिख  रहे हो तुम मुझे देखो और चले आओ तो देखा तो अपने अजीज दोस्त को गली के कोने मे खड़े पाया. हमें देखकर उनके प्रशन्नता उनके चेहरे पर साफ़ चमक रही थी और खूब गले मिलते मिलते उनके घर तक पहुचे. घर पहचानना नहीं पडा क्योकि सुंदर सी भाभी घर के बाहर खडी अपने प्यारे देवर देवरानी का इंतज़ार कर रही थी. मिलते ही जीवन के पुराने चित्र आँखों के आगे घूम गए कि कैसे कभी उन्होंने अपनी उन्होंने अपनी अतिरूपवान साली की शादी मेरे साथ कराने के लिए अथक प्रयास किया हालांकि किसी कारण से वो संबंध नहीं हुआ लेकिन तभी से हमारे बीच भाइयो जैसा संबंध बना सो आज तक चल रहा है. ये भी याद आया कि कैसे उनकी एक गलती के लिए मैंने जाके शिकायतकर्ता से माफी माँगी और उससे भी बढ़कर कैसे मेरे जीवन की अति कटु घटना पर मेरे पक्ष में खड़े होकर उन्होंने अपने पूरी शहर की आलोचना झेली.

मुंबई जैसे शहर में उनको आती ही जो मकान १०००० रूपये में किराए पर मिल गया उसे देखकर विश्वास नहीं होता. उनको खुद भी बहुत अचरज हुआ लेकिन यही भाग्य है. बातचीत के बीच ही उनका अति होनहार बेटा जो आई आई टी दिल्ली से बी टेक कर रहा है वो आ गया उसे बहुत छोटी उम्र में देखा था और उसे भी बस हल्की सी याद थी. यहाँ आते ही वो एक दम से बीमार हो गए थे करीब करीब परेलैसिस लेकिन ये सब तब हुआ जब केंद्रीय कार्यालय में वो काम कर रहे थे सो जो कुछ अच्छा इन्तेजाम मुंबई में हो सकता था वो बैंक ने किया और उनकी जान भी बची और धीरे धीरे वो अब काफी ठीक हो गए है.

बाते तो कभी ख़त्म नहीं होनी है लेकिन प्रियजनों से मिलना हमेशा एक सुखद अवसर होता है वहा से जाने का हमारा बिलकुल मन नहीं था लेकिन हर अच्छी फिल्म का भी दी एंड होता ही है. सो वही से ऑटो किया और हम वापिस आ गए.
हरि  शर्मा
०९००१८९६०७९
      

Friday, December 18, 2009

मुंबई में पहला दिन - 18.12.2009


दोस्तों, कल यानी की १८.१२.२००९ को करीब ५-६ साल बाद मुंबई आना हुआ और पहली बार इतनी दूर बिना किसी खास काम के आया हू. कम ये था कि हमारी ससुराल इस माया नगरी मे है और पिछले साल से स्वसुर जी बहुत बीमार थे. इस बीच श्रीमती जी २ बार आकर चली गयी. बहुत दिन से कार्यक्रम बन रहे थे पर बच्चो की पढाई और जरूरते भी देखनी होती है और नौकरी भी. १७.१२.२००९ को सूर्यनगरी एक्सप्रेस से शाम को चले तो मुंबई आया १८.१२.२००९ को दोपहर ११.३० पर. मुंबई के बोरीवली स्टेशन पर उतारते ही जेहन में पहली बार मुंबई यात्रा का सीन दिमाग में घूम गया. .

ये बात है १९८९ की. शादी करके गोआ घूमने का कार्यक्रम था तब. और मुंबई बचपन से एक तिलिस्म था और निकलने से पहले सब लोगो ने नाना प्रकार से साबधान करके भेजा था और अपुन ने भी वो सब दिमाग में बैठा लिया था. उस समय अपने बैंक बालो पर बहुत भरोसा था सो ये तय कर लिया था कि अगर किसी तरह से एक दूसरे से अलग हो जाये और ३० मिनट तक ना मिले तो जैसे भी हो अस पास की स्टेट बैंक की ब्रांच में पहुच जाये और वहा से मुख्य शाखा फ़ोन करादे. खैर फिल्मो में मुंबई सेंट्रल स्टेशन का नाम सुना  हुआ था सो वही उतरे. अमानती सामान घर में सामान जमा कराया और लोकल ट्रेन का पता किया. लोगो ने बताया हुआ था कि किसी का भरोसा ना करना सो १-१ बात को ३-३ लोगो से पक्का करने के बाद आगे बढ़ते थे १-२ ट्रेन हमने जाने दी भीड़ बहुत होती थी और रेल से रेला सा उतरता था. एक ट्रेन आयी वो लेडीज डिब्बा था एक पुलिस बाला श्रीमती जी से बोला बेटा तुम इधर चढ़  जाओ. अंब बेटी चढ़ गयी और दामाद प्लेटफार्म पर किसी तरह एक डिब्बे में खुद को ठुसेरा और चिंता कि पता नहीं उसे यद् है कि नहीं कि विले पार्ले उतरना है. हर स्टेशन पर ध्यान पिछले डिब्बे पर कि कही वो उतर तो नहीं गयी. किसे तरग विल्ले परले से पहले वो दिखी तो इशारा किया और वो उतर गयी. अब बाहर आते ही समस्या कि जिस ऑटो से बात करो वो इस्ट  या वेस्ट पूछे. हमने जितनी भूगोल पढी थी उसमे भारत में मुंबई को वेस्ट कहा जाता है और संसार में भारत को इस्ट. हमने सोचा मारो गोली इसे सामान तो है नहीं ऐसे ही निकलते है. निकले होटल की खोज में और  विल्ले पार्ले मे तब ५०० रूपये रोज का कमरा लिया.

 तो ये था हमारी पहले मुंबई यात्रा की शुरुआत का विवरण. तो कल हम जैसे हे उतरे हमारी पत्नि का भाई जो कि हमारा कानूनी भाई है हालांकि क़ानून उसे हमारा भाई नहीं मानता वो मिल गया और ऑटो करके घर आ गए. दिन में थोड़ा आराम किया थोडा मैच देखा और शाम को जुहू बीच जाने को घर से निकल गए. जाते समय तो लोकल में इतनी भीड़ नहीं थी आराम से गए.  जुहू बीच, जो मुझे मुंबई में सबसे पसंद है वहा इतनी गंदगी देखी कि सर चकरा गया. वापसी मे लोकल मे भारी भीड़ से और हैरान. जोधपुर से मुंबई आने में जो महसूस नहीं हुआ वो शांताक्रुंज से कांदिवली पहुचने मे महसूस कर लिया. आके थक गया था सो खाना खाया और सो गया. कल साइबर कैफे नहीं मिल पाया था सो  सबेरे आके बैठा हू. कोशिश करूंगा कि कुछ लोगो से मुलाकात हो सके और उसका विवरण यहाँ दू.
हरि प्रसाद शर्मा
09001896079             

Sunday, December 13, 2009

मुंबई आ रहा हू १८ दिसंबर को २४ दिसंबर को वापसी



दोस्तो, १८ दिसंबर को  मुंबई आ रहा हू.
करीब ६-७ दिन वहा रहकर २४ दिसंबर को वापसी का मन है,
 इस बीच कुछ अंतरजाल के दोस्तों से बात हो रही है,
कुछ मिलेंगे कुछ शायद नहीं मिल पाए.
लेकिन मेरा प्रयास होगा कि अधिक लोगो से मिल सकू.
जो  ब्लोगर साथी मिलने का मन रखते है उनका स्वागत है.
मुझे ०९००१८९६०७९ पर सन्देश दे या बात कर सकते है.
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