Friday, December 18, 2009

मुंबई में पहला दिन - 18.12.2009


दोस्तों, कल यानी की १८.१२.२००९ को करीब ५-६ साल बाद मुंबई आना हुआ और पहली बार इतनी दूर बिना किसी खास काम के आया हू. कम ये था कि हमारी ससुराल इस माया नगरी मे है और पिछले साल से स्वसुर जी बहुत बीमार थे. इस बीच श्रीमती जी २ बार आकर चली गयी. बहुत दिन से कार्यक्रम बन रहे थे पर बच्चो की पढाई और जरूरते भी देखनी होती है और नौकरी भी. १७.१२.२००९ को सूर्यनगरी एक्सप्रेस से शाम को चले तो मुंबई आया १८.१२.२००९ को दोपहर ११.३० पर. मुंबई के बोरीवली स्टेशन पर उतारते ही जेहन में पहली बार मुंबई यात्रा का सीन दिमाग में घूम गया. .

ये बात है १९८९ की. शादी करके गोआ घूमने का कार्यक्रम था तब. और मुंबई बचपन से एक तिलिस्म था और निकलने से पहले सब लोगो ने नाना प्रकार से साबधान करके भेजा था और अपुन ने भी वो सब दिमाग में बैठा लिया था. उस समय अपने बैंक बालो पर बहुत भरोसा था सो ये तय कर लिया था कि अगर किसी तरह से एक दूसरे से अलग हो जाये और ३० मिनट तक ना मिले तो जैसे भी हो अस पास की स्टेट बैंक की ब्रांच में पहुच जाये और वहा से मुख्य शाखा फ़ोन करादे. खैर फिल्मो में मुंबई सेंट्रल स्टेशन का नाम सुना  हुआ था सो वही उतरे. अमानती सामान घर में सामान जमा कराया और लोकल ट्रेन का पता किया. लोगो ने बताया हुआ था कि किसी का भरोसा ना करना सो १-१ बात को ३-३ लोगो से पक्का करने के बाद आगे बढ़ते थे १-२ ट्रेन हमने जाने दी भीड़ बहुत होती थी और रेल से रेला सा उतरता था. एक ट्रेन आयी वो लेडीज डिब्बा था एक पुलिस बाला श्रीमती जी से बोला बेटा तुम इधर चढ़  जाओ. अंब बेटी चढ़ गयी और दामाद प्लेटफार्म पर किसी तरह एक डिब्बे में खुद को ठुसेरा और चिंता कि पता नहीं उसे यद् है कि नहीं कि विले पार्ले उतरना है. हर स्टेशन पर ध्यान पिछले डिब्बे पर कि कही वो उतर तो नहीं गयी. किसे तरग विल्ले परले से पहले वो दिखी तो इशारा किया और वो उतर गयी. अब बाहर आते ही समस्या कि जिस ऑटो से बात करो वो इस्ट  या वेस्ट पूछे. हमने जितनी भूगोल पढी थी उसमे भारत में मुंबई को वेस्ट कहा जाता है और संसार में भारत को इस्ट. हमने सोचा मारो गोली इसे सामान तो है नहीं ऐसे ही निकलते है. निकले होटल की खोज में और  विल्ले पार्ले मे तब ५०० रूपये रोज का कमरा लिया.

 तो ये था हमारी पहले मुंबई यात्रा की शुरुआत का विवरण. तो कल हम जैसे हे उतरे हमारी पत्नि का भाई जो कि हमारा कानूनी भाई है हालांकि क़ानून उसे हमारा भाई नहीं मानता वो मिल गया और ऑटो करके घर आ गए. दिन में थोड़ा आराम किया थोडा मैच देखा और शाम को जुहू बीच जाने को घर से निकल गए. जाते समय तो लोकल में इतनी भीड़ नहीं थी आराम से गए.  जुहू बीच, जो मुझे मुंबई में सबसे पसंद है वहा इतनी गंदगी देखी कि सर चकरा गया. वापसी मे लोकल मे भारी भीड़ से और हैरान. जोधपुर से मुंबई आने में जो महसूस नहीं हुआ वो शांताक्रुंज से कांदिवली पहुचने मे महसूस कर लिया. आके थक गया था सो खाना खाया और सो गया. कल साइबर कैफे नहीं मिल पाया था सो  सबेरे आके बैठा हू. कोशिश करूंगा कि कुछ लोगो से मुलाकात हो सके और उसका विवरण यहाँ दू.
हरि प्रसाद शर्मा
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