Friday, October 2, 2009

ग्रीन चैनल अवार्ड फ़ोर ए़क्सीलेन्स-२००८




जब जीवन मे़ लगता था
निराशा के घने मेघ
बहा दे़गे सब मेरा
लाख करो कोशिश पर
लगता था हुआ तबाह
निरर्थक हुए सब प्रयास
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खन्जर से छलनी सीना
हो गया लहूलुहान
खुद से विश्वास उठा
होती पीडा महान
लगता था जैसे कि
भूल गया सब अभ्यास
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लेकिन कोई तो है
देख रहा दूर खडा
कौरवी कुचालो़ को
चौसर मे़ हार रहे
पान्डव कुमारो को
शकुनी की चालो़ को
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दुख की काल्री राते
बीत गयी बात गयी
नियति ने पर्दा उठा
कर दिया जयघोश
जीते तुम आर्यपुत्र
ये सब तो माया थी
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आन्खो़ मे़ विस्मय था
मन मे़ अविश्वास सा
लेकिन हम जीते थे
ये ट्राफी जीती तो
ये सबने माना था
सच कितना अपना था