Monday, December 28, 2009

मुंबई में मुलाक़ात शिप्रा-प्रवीर से 21.12.2009




मुंबई यात्रा में दोस्तों से मिलने का सिलसिला आगे बढ़ा और जिन शिप्रा वेरमा जी से रविवार मिलना नहीं हो सका उनसे सोमवार को मिलना तय हुआ. उनका घर मेरे ससुराल से बहुत दूर नहीं था  और सोमवार को सवेरे  घर से ऑटो किया और ठीक ९ बजे उनसे मिलने जा पहुचे. घंटी बजते ही प्रवीर जी ने स्वागत किया और हम दोनों ( मैं और मेरी पत्नी ) उनके फ्लैट में दाखिल हुए   और नमस्कार और परिचय हुआ. 

अंतरजाल पर तो हम लोग घंटो बात करते थे सो बहुत कुछ एक दूसरे के बारे में पता था और एक अपनेपन का रिश्ता भी है लेकिन वो सब अब वास्तविक और मूर्त रूप में शुरू हुआ.  शिप्रा   जी और प्रवीर जी को जिज्ञासा थी कि जब मैं देर रात तक अंतरजाल की सैर करता हू उस पर मेरी पत्नि की क्या प्रतिक्रया होती है. तो पत्नि ने बताया कि अब अंतरजाल है पहले किताबे होती थी तो ये या वो जी का जंजाल हमेशा रहा है. घर परिवार की बहुत सी बाते हुई. शिप्रा जी ने मुंबई मई नए सिरे से अपनी पहचान बनाने मई आई मुश्किलों के बारे मे बताया. शिप्रा जी ने अपने १ भजन और एक गीत को संगीत के साथ प्रस्तुत किया और मैंने अपने प्रिय गीतकार आत्म प्रकाश शुक्ल जी के कुछ गीत सुनाये. चाय नाश्ता हुआ जो कि पूरी तरह प्रवीर जी के द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम था और अंत में प्रवीर जी ने टैरो कार्ड की मदद से हमें भविष्य बताये. 

वर्मा दंपत्ति से ये छोटी लेकिन बहुत प्यारी मुलाक़ात रही. हम बिछुड़ गए फिर कभी मिलने के लिए.
     

Monday, December 21, 2009

बसेरे से दूर - मुंबई की यात्रा 20.12.2009




मुंबई मे कल तीसरा दिन था और आज सवेरे से तय हुआ कि कवि श्री कुलवंत सिंह से मिलना है और उसके लिए अंधेरी में होने बली चौपाल में ४ बजे शाम मुलाकात होगी. इसके बाद श्रीमती शिप्रा वर्मा जी का भी फ़ोन आया कि वो अभी ४ बजे चौपाल में जा रही है तो मैंने कहा कि मैं भी तो वही पहुच रहा हू. सो हमने अंधेरी में रहने बली तीसरी दोस्त को कहा कि में वहा जा रहा हू तुमसे मिलाना कहा होगा तो उन्होंने कार्यक्रम स्थल जानकर कहा कि कार्यक्रम ख़तम हो जाए तो बता देना मेरा घर पास ही है वही में जाउंगी.

सो कांदिवली पूर्व से चले अंधेरी पश्चिम के लिए और इसके लिए ली लोकल की शरण. आज रविवार होने के कारण कार्यालय आने जाने बाले लोगो की भीड़ नहीं थी सो अंधेरी थोडा आराम से पहुच गए और वहा से ऑटो किया और करीब करीब सही समय पर कार्यक्रम स्थल पहुच गए. वहा कार्यक्रम शुरू होने बाला ही था तो हमने हाल में नज़र घुमा कर कुलवंत जी और शिप्रा जी को ढूढना शुरू किया. लगा शायद वो  व्यस्त हो सो जगह लेके बैठ गए. अज की थीम मूल रूप से श्याम बेनेगल जी पर थी और उन्हें इस कार्यक्रम में आना था लेकिन एन बक्त पर उनका आना न हो सका तो एकदम से थीम बदलनी पडी. आयोजको को एकदम से मेहनत करनी पडी एक नए कार्यक्रम के लिए और इसका जिम्मा लिया जाने मने व्यंगकार और सीरियल लेखक सुभाष काबरा जी ने और एक कवि सम्मलेन की रूप रेखा रच दी. और ऐसे शुरू हुआ चौपाल का मासिक कार्यक्रम.

सुभास काबरा जी ने अपने ताज़ा व्यंग रचना जो कि मीडिया के ऊपर थी से कार्यक्रम की शुरुआत की और फिर एक अनूठे गायन कार्यक्रम से बात आगे बढी. युवा गायक साईं राम अय्यर ने पहले महिला की आवाज़ में एकल गीत सुनाया और फिर अगला युगल गीत महिला पुरुष की बदलती आवाज़ में सुनाया और दोनों के गायन में गायन की मधुरता और सुर ताल का सही सामंजस्य. इसके बाद कुछ नए गीतकारों के गीत हुए फिर अनिल मिश्र जी, हस्ती मल हस्ती जी तह पहुचकर इस काव्य यात्रा में विराम आया और तब तक कवि श्री कुलवंत सिंह जी और श्रीमती शिप्रा वर्मा जी के सन्देश मिल गए थे कि वे रास्ते    में अटक गए है और नहीं पहुच पाएंगे सो विराम के बाद हमने अन्य मित्र सुश्री अल्जीरा जी को फ़ोन किया कि आप में जाये अब हम बाहर आ गए है.

करीब ५ मिनट के इंतज़ार के बाद सुश्री अल्जीरा जी ऑटो से में पहुची और पहली बार मिलने की खुशी को दो गुना करते हुए अपने साथ अपने अज़ीज़ बेटी (जैसी) श्रीमती पिंकी जी को साथ ले आयी. उनसे मिलके जो खुशी मिली वो शब्दों में बयां करना मुश्किल है और साच में ऐसा लग रहा था कि उन्हें भी वैसी ही खुशी हो रही है. आते ही उन्होंने अपने कैमरे से फोटो लिए और फिर वृन्दावन जलपानगृह   में जाके बैठ गए. बहुत सी बाते जानी अनजानी होती रही और हंसी मजाक भी. कब साँझ हो गयी पता ना चला. हर मुलाकात का एक अंत होता है जैसे हर दिन की एक साँझ होती है सो हमें भी अलग होना ही था फिर कभी ऐसे ही मिलने के लिए.

Saturday, December 19, 2009

मुंबई मे मुलाक़ात मित्रो से - 19.12.09

कल मुंबई की इस यात्रा का दूसरा दिन था और दिन भर आराम और नेट पर कुछ घंटे गुजारे और इंतज़ार किया अपने बहुत ही प्यारे दोस्त और बड़े भाई चन्द्रभान शर्मा जी के काल का क्योंकि कल बात हो गयी थी शनिवार को मिलने की. सो ४ बजे उनका फ़ोन आया कि वो ५ बजे घर पहुच जायेंगे और घर का रास्ता समझाया उससे पहले उन्हें कहा कि घर का पता एसेमेस कर दो तो वोले कि ये आता तो बैंक की अफसर ही करता क्या. खैर उन्होंने कहा था कि लोकल से वोरीवली स्टेशन आना और वहा से ऑटो से घर जो कि प्रगति स्कूल और स्टेट बैंक की गोराई शाखा के बीच है तो वो शाखा के सामने मिल जायेंगे. हमने सोचा कि कौन लोकल के चक्कर मे पड़े  सो  सीधा   ऑटो किया और गौराई पहुच गए.

हम शाखा से सामने उतरे तो वो वहा नहीं थे तो फ़ोन मिलाया वोले मुझे तुम दिख  रहे हो तुम मुझे देखो और चले आओ तो देखा तो अपने अजीज दोस्त को गली के कोने मे खड़े पाया. हमें देखकर उनके प्रशन्नता उनके चेहरे पर साफ़ चमक रही थी और खूब गले मिलते मिलते उनके घर तक पहुचे. घर पहचानना नहीं पडा क्योकि सुंदर सी भाभी घर के बाहर खडी अपने प्यारे देवर देवरानी का इंतज़ार कर रही थी. मिलते ही जीवन के पुराने चित्र आँखों के आगे घूम गए कि कैसे कभी उन्होंने अपनी उन्होंने अपनी अतिरूपवान साली की शादी मेरे साथ कराने के लिए अथक प्रयास किया हालांकि किसी कारण से वो संबंध नहीं हुआ लेकिन तभी से हमारे बीच भाइयो जैसा संबंध बना सो आज तक चल रहा है. ये भी याद आया कि कैसे उनकी एक गलती के लिए मैंने जाके शिकायतकर्ता से माफी माँगी और उससे भी बढ़कर कैसे मेरे जीवन की अति कटु घटना पर मेरे पक्ष में खड़े होकर उन्होंने अपने पूरी शहर की आलोचना झेली.

मुंबई जैसे शहर में उनको आती ही जो मकान १०००० रूपये में किराए पर मिल गया उसे देखकर विश्वास नहीं होता. उनको खुद भी बहुत अचरज हुआ लेकिन यही भाग्य है. बातचीत के बीच ही उनका अति होनहार बेटा जो आई आई टी दिल्ली से बी टेक कर रहा है वो आ गया उसे बहुत छोटी उम्र में देखा था और उसे भी बस हल्की सी याद थी. यहाँ आते ही वो एक दम से बीमार हो गए थे करीब करीब परेलैसिस लेकिन ये सब तब हुआ जब केंद्रीय कार्यालय में वो काम कर रहे थे सो जो कुछ अच्छा इन्तेजाम मुंबई में हो सकता था वो बैंक ने किया और उनकी जान भी बची और धीरे धीरे वो अब काफी ठीक हो गए है.

बाते तो कभी ख़त्म नहीं होनी है लेकिन प्रियजनों से मिलना हमेशा एक सुखद अवसर होता है वहा से जाने का हमारा बिलकुल मन नहीं था लेकिन हर अच्छी फिल्म का भी दी एंड होता ही है. सो वही से ऑटो किया और हम वापिस आ गए.
हरि  शर्मा
०९००१८९६०७९
      

Friday, December 18, 2009

मुंबई में पहला दिन - 18.12.2009


दोस्तों, कल यानी की १८.१२.२००९ को करीब ५-६ साल बाद मुंबई आना हुआ और पहली बार इतनी दूर बिना किसी खास काम के आया हू. कम ये था कि हमारी ससुराल इस माया नगरी मे है और पिछले साल से स्वसुर जी बहुत बीमार थे. इस बीच श्रीमती जी २ बार आकर चली गयी. बहुत दिन से कार्यक्रम बन रहे थे पर बच्चो की पढाई और जरूरते भी देखनी होती है और नौकरी भी. १७.१२.२००९ को सूर्यनगरी एक्सप्रेस से शाम को चले तो मुंबई आया १८.१२.२००९ को दोपहर ११.३० पर. मुंबई के बोरीवली स्टेशन पर उतारते ही जेहन में पहली बार मुंबई यात्रा का सीन दिमाग में घूम गया. .

ये बात है १९८९ की. शादी करके गोआ घूमने का कार्यक्रम था तब. और मुंबई बचपन से एक तिलिस्म था और निकलने से पहले सब लोगो ने नाना प्रकार से साबधान करके भेजा था और अपुन ने भी वो सब दिमाग में बैठा लिया था. उस समय अपने बैंक बालो पर बहुत भरोसा था सो ये तय कर लिया था कि अगर किसी तरह से एक दूसरे से अलग हो जाये और ३० मिनट तक ना मिले तो जैसे भी हो अस पास की स्टेट बैंक की ब्रांच में पहुच जाये और वहा से मुख्य शाखा फ़ोन करादे. खैर फिल्मो में मुंबई सेंट्रल स्टेशन का नाम सुना  हुआ था सो वही उतरे. अमानती सामान घर में सामान जमा कराया और लोकल ट्रेन का पता किया. लोगो ने बताया हुआ था कि किसी का भरोसा ना करना सो १-१ बात को ३-३ लोगो से पक्का करने के बाद आगे बढ़ते थे १-२ ट्रेन हमने जाने दी भीड़ बहुत होती थी और रेल से रेला सा उतरता था. एक ट्रेन आयी वो लेडीज डिब्बा था एक पुलिस बाला श्रीमती जी से बोला बेटा तुम इधर चढ़  जाओ. अंब बेटी चढ़ गयी और दामाद प्लेटफार्म पर किसी तरह एक डिब्बे में खुद को ठुसेरा और चिंता कि पता नहीं उसे यद् है कि नहीं कि विले पार्ले उतरना है. हर स्टेशन पर ध्यान पिछले डिब्बे पर कि कही वो उतर तो नहीं गयी. किसे तरग विल्ले परले से पहले वो दिखी तो इशारा किया और वो उतर गयी. अब बाहर आते ही समस्या कि जिस ऑटो से बात करो वो इस्ट  या वेस्ट पूछे. हमने जितनी भूगोल पढी थी उसमे भारत में मुंबई को वेस्ट कहा जाता है और संसार में भारत को इस्ट. हमने सोचा मारो गोली इसे सामान तो है नहीं ऐसे ही निकलते है. निकले होटल की खोज में और  विल्ले पार्ले मे तब ५०० रूपये रोज का कमरा लिया.

 तो ये था हमारी पहले मुंबई यात्रा की शुरुआत का विवरण. तो कल हम जैसे हे उतरे हमारी पत्नि का भाई जो कि हमारा कानूनी भाई है हालांकि क़ानून उसे हमारा भाई नहीं मानता वो मिल गया और ऑटो करके घर आ गए. दिन में थोड़ा आराम किया थोडा मैच देखा और शाम को जुहू बीच जाने को घर से निकल गए. जाते समय तो लोकल में इतनी भीड़ नहीं थी आराम से गए.  जुहू बीच, जो मुझे मुंबई में सबसे पसंद है वहा इतनी गंदगी देखी कि सर चकरा गया. वापसी मे लोकल मे भारी भीड़ से और हैरान. जोधपुर से मुंबई आने में जो महसूस नहीं हुआ वो शांताक्रुंज से कांदिवली पहुचने मे महसूस कर लिया. आके थक गया था सो खाना खाया और सो गया. कल साइबर कैफे नहीं मिल पाया था सो  सबेरे आके बैठा हू. कोशिश करूंगा कि कुछ लोगो से मुलाकात हो सके और उसका विवरण यहाँ दू.
हरि प्रसाद शर्मा
09001896079             

Sunday, December 13, 2009

मुंबई आ रहा हू १८ दिसंबर को २४ दिसंबर को वापसी



दोस्तो, १८ दिसंबर को  मुंबई आ रहा हू.
करीब ६-७ दिन वहा रहकर २४ दिसंबर को वापसी का मन है,
 इस बीच कुछ अंतरजाल के दोस्तों से बात हो रही है,
कुछ मिलेंगे कुछ शायद नहीं मिल पाए.
लेकिन मेरा प्रयास होगा कि अधिक लोगो से मिल सकू.
जो  ब्लोगर साथी मिलने का मन रखते है उनका स्वागत है.
मुझे ०९००१८९६०७९ पर सन्देश दे या बात कर सकते है.
 . 

Saturday, October 31, 2009

राष्ट्रमंडल खेल और कुछ सुझाब राष्ट्र हित मे




जैसे जैसे राष्ट्र मंडल खेल नज़दीक आते जा रहे है दिलरुबा दिल्ली की तस्वीर को निखारने की खूब कोशिश हो रही है. दुनिया में और कही खेल आयोजित होते है तो वो देश पूरा जोर लगा देता है अधिक से अधिक पदक जीतने पर लेकिन अतिथि देवो भव: की उज्जवल परम्परा हमारे यहाँ पुरातन काल से चली आ रही है इसलिए सुरेश कलमाडी और उनके साथी खिलाडियों के प्रदर्शन से ज्यादा जोर दिल्ली को चमकाने मे लगा रहे है.

खिलाडियों की इस देश के खेल प्रशासकों को कितनी चिंता है ये तो मध्य प्रदेश में पी टी उषा के स्वागत से हम सबको पता चल ही गया है बाकी पता करने का मन हो तो खेल छात्रावासों की व्यबस्था देखने से पता चल जाएगा. जिन लोगो की ये जिम्मेदारी है कि वे देश मे खेलो का माहौल बनाए वो लोग खेलो का मखौल बनाने मे जुटे हुए हैं.

ऐसे में मुझे चिंता हो रही है कि कैसे भारत को  मिलने बाले पदक अधिक से अधिक हो सकें. और क्यों नहीं हो? सबको अपने अपने तरीके से देश भक्त होने का हक है. ये तो हमें भी पता है कि पारंपरिक खेलो में तो पदक किसी भारतीय को तकदीर से मिलेगा क्यों नहीं हम कुछ नवोन्मेष करके ऐसे खेलों को भी इन खेलों में शामिल करे जिन्हें और देश नहीं खेलते.

मेरे बड़े ब्लोगर भाई  श्री अविनाश वाचस्पति जी ( http://avinashvachaspati.blogspot.com/ )  आजकल दिल्ली की सड़को पे क्या हो कार या गाय ( http://hamkalam1.blogspot.com/2009/10/blog-post_24.html ) इस पर उनकी कलम खूब दौड़ रही है और क्यों ना दौडे अविनाश भाई तो ब्लॉग जगत की वो वला  हैं जो शीशे से पत्थर को तोड़ दे. जिसपे वो लिख दे वो खुद अपने आप ही लिखने योग्य बिषय बन जाता है बाद में भाई लोग सर पकड़ के सोचते है कि हमें ये क्यों नहीं सूझा और तब तक अविबाश भाई कोई दूसरा नया बिषय पकड़ लेते है. खैर उनके लेखन को प्रणाम करने से ही हमारा काम तो चल ही जाएगा बात क्या शुरू की और कहा पहुच गए चलो इसी बहाने बात कहने की थोड़ी कला हाथ आ जायेगी. तो पदको की संख्या बढाने के लिए मैंने अपने यार दोस्तों से चर्चा की और कुछ ऐसे नए खेल राष्ट्रमंडल खेलो मे जोड़ने का सुझाब आया है कि कमसेकम १० पदको का जुगाड़ हो जायेगा.

बैलगाडी दौड़ - इसमे बैलगाडी पर भूसा भरा होगा और उसके उपर चालाक समेत १० लोग बैठेंगे
( इस टीम के प्रबंधक और प्रशिक्षक ताऊ रामपुरिया जी होंगे वो ही किसे कहा बैठना है इसके बारे मे जानकारी देंगे और इसकी तैयारी पूरी तरह गुप्त रूप से होगी. और देशो की टीम जब तक ये जान पायेगी कि बैलगाडी उलार क्यों होती है और उसे उलार होने से बचाने के लिए बैठक व्यबस्था और बजन संतुलन कैसे कैसे बनाया जाता है तब तक हम पदक जीत चुके होंगे.

२. तांगा दौड़ - इसे भारत के किसी कसबे मे जैसे मेरा कस्बा हिंडौन सिटी है वहा आयोजित किया जाएगा और तांगे मे तीन सवारी पीछे तीन आगे २ बच्चे पीछे गोदी मे, आगे डंडे पे चालक के अलावा एक एक सवारी दोनों तरफ. कसबे की टूटी फूटी सड़को पे और देशो के तांगे पूरी दूरी तय कर लें यही गनीमत है इस दौड़ का विचार इसलिए भी कि नया दौर मे दिलीप कुमार इसमे जीत का परचम पहले ही फहरा चुके हैं. दिलीप कुमार कि इस टीम का नॉन प्लेयिंग कप्तान बना दिया जाएगा. इसमे भी भारत का पदक पक्का ही है.

३. रिक्सा दौड़ - इसकी शर्त ये होगी कि रिक्से का चालक पीछे सीट पर पति-पत्नि उनके दो छोटे बच्चे और पीछे से उल्टे बैठे हुए किशोर साला और साली या भाई बहिन बैठे हो. यहाँ मज़े की बात ये है कि यातायात सिपाही नज़दीक दिखने पर उल्टी सवारी पहले ही उतर जायेंगी और अन्य देशों की टीम को ये पता भी नहीं होगा कि रेफरी से तो निबट लेंगे पर यातायात सिपाही से या तो चालाकी से या ५ का नोट दिखा के ही आगे बढा जा सकता है. अपने अनुभव और चालाकी से ये पदक भी हमारी टीम को ही मिलेगा.

४. गाय पैदल चाल - इसमे राजधानी की व्यस्त सड़क से १० गायो के समूह को हांक के ले जाना है और सभी गाय एक साथ निर्धारित दूरी तक पहुचे

इसी तरह ऊंट गाडी, भैसा गाडी, गधा गाडी की दौड़ राखी जा सकती है और एक एक खेल मे एकल युगल और टीम के पदक रखे जा सकते है. प्रुश और महिलाओ के अलग अलग पदक ऐर मिश्रित युगल के अलग.  अगर प्रविष्टिया कम हो तो भरात की ही तीन टीम रखी जा सकती है जिससे स्वर्ण ही नहीं रजत और कास्य पदक भी हमारा ही हो.

पुनश्च: - ये सारे खेलो का सुझाब मेरी तरफ से है ब्लॉग के पाठक जिन खेलो का सुझाब देंगे उन्हें भी आगे जोड़ दिया जायेगा. वैसे एक पूरी लिस्ट तो खिलाडियों के खिलाड़ी अक्षय कुमार के पास होगी लेकिन उनमे जीत की पक्की गारंटी सिर्फ अक्षय की ही है और वो बिना अग्रिम पैसा लिए कोई खेल नहीं खेलता.

Saturday, October 17, 2009

सबको शुभ दीपावली और बैंक अधिकारियों के प्रस्तावित वेतन पैकेज का सच






सभी ब्लोगर भाई बहिनो को दीपावली की अनगिन शुभकामना.
बुद्धू बक्से पर सच का सामना करते आपने बहुतो को देखा होगा आओ मै आपको एक ऐसे सच का सामना कराता हू जिसके बारे मे़ आपकी जानकारी कम ही होगी.



समाज मे बहुत लम्बे समय से एक मिथक प्रचारित है कि बैंक  अधिकारी बहुत मोटे वेतन पाते है इसके बाबजूद इन्हे जब देखो ये हडताल करते रहते है. इस सच का दूसर भाग ये है कि सिर्फ़ बैको मे़ ही काम नही तो वेतन नही का कडाई से पालन होता है अन्य बिभागो मे उन दिनो का समायोजन अबकाश के रूप मे हो जाता है.


एक सिद्धान्त है पहले योग्य बनो फिर चाहो. बैको का पिछ्ला वेतन समझौता ०१.११.२००२ से लागू हुआ था और इसे ०१.११.२००७ से सन्शोधित होना था जिसके लिये वार्ताओ के दौर पे दौर चल रहे है. पहले हम २००२ से २००९ तक इन सार्वजनिक  क्षेत्र के बैको के प्रदर्शन पर एक निगाह डाले जिससे पता चले कि वो कैसा काम कर रहे है.


                  २००२     २००७   % बढोतरी  २००९  % बढोतरी 
( राशि करोड रुपये मे़ )
कुल जमा           ९६८७४९  १९९४१९९    १०६   ३११२७४८  २२१                             
कुल अग्रिम          ४८०६८०  १४४०१४६    २००  २२६०१५५  ३७०           
शुद्ध आय             ८३०२    १६३९८    १४६    ३४३१९   ३१३         
प्रति कर्मचारी व्यबसाय    १.९२    ७.५५    २९०    ११.३७  ४९२


ये कुछ चुने हुए मानक लिये है वैसे जिस मानक पर भी देखे पिछले ५-७ साल मे सभी सर्वजनिक क्षेत्र  के बैको ने शानदार प्रदर्शन किया है जिसे सरकार ने भी समय समय पर खुले दिल से माना है. समय समय पर विश्व मन्चो पर भी सराहना पायी है और खुद भी अपनी पीठ थपथपाने मे कोई कोताही नही बरती है लेकिन जब उन्ही बैक कर्मियो के वेतन बढोतरी का सवाल आया तो सरकार और सरकार के पैरोकार दीवाल पर लिखे हुए सच को पढने से इन्कार करते है. आर्थिक मन्दी का सामना जिस क्षेत्र ने सीना तान कर दिया और देश के आर्थिक बाज़ार को मजबूती से थामे रखा उसे सरकार इस लायक भी नही मानती कि बाकी सब उद्योगो के बराबर खडा होने दे.


आओ एक नज़र दालते है इतिहास पर और इतिहास के उस बिन्दु पर जहा से हालात बिगडने लगे.  इसे एक टेबल से समझे  - 




                १९७९ से  १९७९  १९८६  १९९६  २००६      
                पूर्व                 
( राशि रुपये मे )
नया बैक अधिकारी   ५००     ७००   २१००  ७१००  १०००० 


भारत सरकार का    ४५०     ७००   २२००  ८०००  २१०००
क्लास १ अधिकारी                      (१५६००+५४००)                                                            







वर्तमान मे जो वार्ता चल रही है और जो सहमति लगभग बन गयी है उसके अनुसार १७.५ % की कुल बढोतरी होना तय माना जा रहा है जो कि ऊट के मुह मे जीरे के समान है इसके हिसाब से एक बडा हिस्सा बहुत सी बैको मे पेंशन का विकल्प देने के लिये रखा गया है उसके बाद जो गणना हो रही है उसके हिसाब से बैक अधिकारी का मूल वेतन १४००० से अधिक नही होगा. इसका अर्थ हुआ ७००० रुपये का मूल वेतन मे अन्तर इसके बाद सरकारी अधिकारियो को महानगरो मे ३०% मकान किराया मिलता है जबकि बैक अधिकारी को ९%.



आइये कुछ और बातो पर गौर करे - 


१. बैक अधिकारी सप्ताह मे ७ दिन देर शाम तक काम करता है जबकि सरकारी अधिकारी सप्ताह मे ५ दिन निश्चित समय तक ही काम करता है.
२. बैक अधिकारी से निजी क्षेत्र से व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा मे खरा उतरने की उम्मीद है और उसे वो पूरा भी करते है लेकिन वेतन नगर पालिका के कर्मचारियो से कम मिलता है.
३. एक  परिवीक्षाधीन बैंक अधिकारी को सरकार के एक क्लर्क से कम वेतन मिलता है.
४. एक बैंक क्लर्क सरकार में एक चपरासी से भी कम वेतन पाता है.
५. आज बैंक का  एक  जनरल  मैनेजर भारत सरकार के एक अनुभाग अधिकारी से कम वेतन पाता है.


ये लेख एक व्यन्ग भी है और एक सचाई भी. आप सब जिन्होने इसे पढा एक सच का सामना किया.
  
१९७९ - एक वो भी दिवाली थी - तब मै १०वी मे था अधिक से अधिक पटाखे खरीदता था  
२००९ - एक ये भी दिवाली है  - आज मेरा बेटा १० वी मे है वो कम से कम पटाखे खरीदना चाह्ता है




Tuesday, October 13, 2009

आप और हम क्यों नहीं कोई बड़ी खोज कर पाते



अगर कोलंबस शादीशुदा होता तो ये बहुत ही मुश्किल है कि उसने अमेरिका की खोज की होती
कारण बही हैं  जिनके कारण आप और हम ऐसा नहीं कर पाते. पत्नि उनसे ऐसे प्रश्न करती जब भी बो घर से निकलते   -












१. आप कहा जा रहे हैं ?
२. किसके साथ जा रहे है ?
३. क्यों जा रहे है ?
४. कैसे जाओगे ?
५. क्या खोजोगे  ?
६. तुम ही क्यों जा रहे हो ?
७. जब तुम यहाँ नहीं होगे, मे क्या करू ?
८. क्यों जी मे भी साथ चलू ?
९. आप वापिस कब तक आओगे ?
१०.शाम को खाने पे इंतज़ार करू ना ?
११. आप मेरे लिए क्या लाओगे जी ?
१२. ऐसा लगता है कि तुमने जानबूझकर ये कार्यक्रम बनाया है.
१३. झूठ मत बोलो मुझसे.
१४. तुम ऐसे कार्यक्रम कयू बनाते हो ?
१५. ऐसा लगता है तुम ऐसे बहुत से कार्यक्रम बनाते हो.
१६. क्यों ?
१७. मैं अपने माता-पिता के घर जाना चाहती हू.
१८. मैं चाहती हू तुम मुझे वहा छोडके आओ.
१९. मैं वापिस आना नहीं चाहती.
२०. मैं कभी वापिस नहीं आउंगी.
२१. तुम मुझे जाने से रोक क्यों नहीं रहे ?
२२. तुम हैना हमेशा ऐसे ही करते हो.
२३. मुझे समझ नहीं आता ये आविष्कार का चक्कर है क्या.
२३. पिछली बार भी तुमने ऐसा ही किया था.
२३. आजकल तो तुम हमेशा ऐसे ही करते हो.
२४. मुझे समझ नहीं आता अब खोजने के लिए रह क्या गया है ?

Monday, October 12, 2009

गरबा की रात में





गरबा की रात में
थिरकते हैं बदन
और नाचती है गोरियां
दमकते रूप की
भभकती आंच में
हुस्न बिखरा पड़ा है

बच्चों का झुंड
और उनकी चिल्ल-पों में
डूबा मेरा मन
उनकी इस मासूमियत में
मुझे लगे जैसे मेरा
बचपन बिखरा पड़ा है

छलकते जाम खनकती बोतलें
मदिरा के उस नशे में
साकी के महकते इतर में
हलके गहरे धुंए में
टूटे कांच के टुकडों में
मेरा वजूद बिखरा पड़ा है

बारिश नहीं, एक और अकाल
प्यासी धरती की दरारों में
बूढी धंसी आँखों में
दमे की खुल्ल-खुल्ल में
बिवाई से रिश्ते मवाद में
मेरा भारत बिखरा पड़ा है

--शैलेष मंगल


Saturday, October 3, 2009

विजयी भव!!!!

न अबला बन न ह्त्या कर
नारी जन जो जना हैं नर
न घात से डरप्रतिघात कर
मर्म पर आघात कर
स्व लघु कर आत्मा विराट कर
वार कर प्रहार कर
व्यक्तित्व कर प्रखर
ना प्यार कर ना दुलार कर
ना बन करुनाकर
जगत में व्याप्त अनाचार
चढा निज पर तीक्ष्ण धार
संचित कर मनोबल अपार
विजयी भव भवसागर कर पार

Friday, October 2, 2009

ग्रीन चैनल अवार्ड फ़ोर ए़क्सीलेन्स-२००८




जब जीवन मे़ लगता था
निराशा के घने मेघ
बहा दे़गे सब मेरा
लाख करो कोशिश पर
लगता था हुआ तबाह
निरर्थक हुए सब प्रयास
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खन्जर से छलनी सीना
हो गया लहूलुहान
खुद से विश्वास उठा
होती पीडा महान
लगता था जैसे कि
भूल गया सब अभ्यास
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लेकिन कोई तो है
देख रहा दूर खडा
कौरवी कुचालो़ को
चौसर मे़ हार रहे
पान्डव कुमारो को
शकुनी की चालो़ को
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दुख की काल्री राते
बीत गयी बात गयी
नियति ने पर्दा उठा
कर दिया जयघोश
जीते तुम आर्यपुत्र
ये सब तो माया थी
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आन्खो़ मे़ विस्मय था
मन मे़ अविश्वास सा
लेकिन हम जीते थे
ये ट्राफी जीती तो
ये सबने माना था
सच कितना अपना था

Friday, September 4, 2009

सब जगह बिखरा पडा है




लोग तो परेशान हैं कि
जब घर में घुसो देखो
शयनकक्ष से लेकर के
बाहर की बैठक तक
यहाँ वहां सब जगह
सामान बिखरा पडा है
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रातों में नभ निहारो
निशा की रियासत में
सैनिक बन दमक रहे
तारे हैं टिमटिमा रहे
राजा से चन्द्रमा का
प्रकाश बिखरा पडा है
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दुनिया में घृणा देख
व्याकुल हुआ कवि मन
युद्ध की तो कौन कहे
घरेलू मसलों पर ही
इंसानियत मर रही है
खून बिखरा पडा है
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जीवन भी देखो ना
माटी के पुतले में
साँसों का डेरा है
आस का पखेरू है
उसमें भी सपन मेरा
टूटा बिखरा पडा है
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हरि शर्मा

Sunday, August 30, 2009

मंदी

कुछ और रोजगार छूटे
कुछ और घरों की नीलामी हुई
बस इतनी सी बात हुई और
मेरे देश में दिन की शुरुआत हुई


मंदी का ये दुर्योधन मानो
द्रौपदी सी अर्थव्यवस्था की
इज्ज़त हरने को आतुर है
और ओबामा बने कृष्ण
संकट में हैं कहाँ से लायेंगे
इतना बेल-आउट का चीर
आर्थिक मंदी ने झकझोरा सबको
किसी को ज्यादा किसी को कम
कुछ तो झटका झेल गए
तो कुछ ने लगाया अपने
मंदी से घबराकर अपने
जीवन पर पूर्ण विराम


आशा भी डूबती जाती है
आख़िर कब लेगी
यह तंगी थोड़ा विश्राम
किस दिन उगेगा वो सूरज
जिसकी किरणे करेंगी
इस दानव का काम तमाम

कहतें है समय बड़ा बलवान
और है हर मर्ज की दवा
दो गोली संतुष्टि की
सुबह शाम खाओ और
सुनो हमारा भी नुस्खा
बुरा वक्त तो निकल जाएगा
पर तुम धीरज न खोना
नौकरी जाए या फिर
व्यापर क्यो ना डूबे पर
आस का साथ न छोडना
कभी तो होगा ही भइया
इस काली रात का अवसान

( शैलेश मंगल )

Tuesday, July 7, 2009

कदम्ब का पेड़


कालंदी नदी तट पर पेड़ है कदम्ब का
श्याम की बन्शी से झुक गयी थी डाली
श्याम फूल चुन करके
राधा का जूडा सजा मन्द मन्द मुस्काते थे
*****
रसखान बोले कि मानव जनम मिले
कदम्ब के पेड हो, कालिन्दी बह्ती हो
ऐसी जगह जन्मू
यशोदा के लाल जहा राधिका को नचाते है
*****
महिमा भी जान लो कदम्ब के पेडन की
फूलो से इत्र बने पत्ती को कूटने पर
दवाओं के सेवन से
डाईबिटीज जैसे भी रोग नष्ट हो जाते है
*****
लम्बे और फ़ैले से, अति सुन्दर पेड हॊतॆ
मनभावन फूल जिसके, जड से पत्ती तक
फूल से टहनी तक
ऐसा ना कुछ भी जो काम ना आते है
*****
भादों के महीने में पूजा होती कदम्ब की
धार्मिक लोग भारत के सबके कल्याण हेतु
कदम्ब की टहनी को
आंगन मे लगवा के इसकी पूजा कराते हैं

Saturday, May 30, 2009

garmee ke din


पत्तो से पेड़ों के
आती छनकर किरणें
आग सी बरसती है.
मानव की बात दूर
पौधे कुम्हलाते हैं.

चलती है गरम हवा
लू लगने के डर से
घर में छिप जाते हैं.
धूप से पराजित हो
तड़प तड़प जाते हैं.

रुकने की आस लिए
बढते जाते पथिक
छाँव कहीं आगे है
जलते हैं पैर भले
चलते ही जाते हैं.

नीम तले खटिया पर
सोने सी दोपहरी
लेटकर बिताते हैं
चांदी सी रातों में
थककर सो जाते हैं

Friday, April 24, 2009

क्रिकेट धर्मं है तो सचिन भगवान है


क्रिकेट धर्मं है तो सचिन भगवान है - सचिन के जन्मदिवस पर विशेष



आज २४ अप्रैल को जब क्रिकेट प्रेमी सचिन का ३७ वा जन्मदिवस मना रहे हैं तो एक शीर्षक पढ़ा कि अगर क्रिकेट धर्म है तो सचिन भगवान है। इंसान को भगवान बनाना क्यों जरूरी है? क्या लाखो भगवानो से हमारा मन नही भरा ? कभी हम अमिताभ को भगवान बनाते है कभी रजनी कान्त को और एक दिन किसी बात पे हमारा मोह भंग हो जाए तो हम अपने भगवान से इतने खफा हो जाते हैं कि उसके पुतले जलाएंगे उसका घर से वाहर निकलना मुश्किल कर देंगे। आओ हम सचिन को एक वेहतरीन इंसान और खिलाड़ी के रूप में देखें.

महानतम भारतीय क्रिकेटर माने जाने बाले सचिन रमेश तेंडुलकर का जन्म २४ अप्रैल , १९७३ को मुंबई में हुआ। विजडन ने उन्हें टेस्ट क्रिकेट का दूसरा सबसे अच्छा बल्लेवाज माना। वे एक दिवसीय क्रिकेट के सबसे सफल बल्लेवाज हैं। सचिन तेंदुलकर को लिटिल मास्टर भी कहा जता है।



सचिन एक दिवसीय और टेस्ट मैच दोनों में सबसे ज्यादा रन और शतक बनाने बाले खिलाड़ी हैं। विश्व कप में सचिन सबसे ज्यादा रन बनाने बाले खिलाड़ी हैं। सचिन तेंदुलकर को उनकी खेल प्रतिभा के लिए पद्म भूषन और राजीव गाँधी खेल रत्न पुरूस्कार से भी जिताभारत सरकार ने विभूषित किया। लेकिन उनका सबसे बड़ा पुरूस्कार क्रिकेट प्रेमियों का अनवरत प्यार है।



सचिन को क्रिकेट के मैदान में और मैदान के वाहर शानदार व्यबहार के लिए जाना जाता है। यह उन्हें अपने समकालीन क्रिकेट खिलाड़ियों से अलग पहचान दिलाती है।



आओ हम उन्हें उनके जन्म की ३६ वी वर्षगाँठ पर शुभकामना देते हैं और उनके और भी उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

Monday, March 9, 2009

जिसका कोई ना पूछे हाल - उसके साथ गिरधारी लाल


स्वर्गीय गिरधारी लाल भार्गव
जन्म ११.११.१९३६ - देहावसान - ०८.०३.२००९
बार के पार्षद, ३ बार के विधायक और ६ बार सांसद
अगर कोई शहर स्वप्न देखे कि उसका जन प्रतिनिधि कैसा हो तो एक छवि उभरकर आती है और उसे नाम दिया जाता है गिरधारी लाल भार्गव। सच्चे जनसेवक, सामजिक कार्यकर्ता, सक्रिय पार्षद, जनप्रिय विधायक और बेहद लोकप्रिय सांसद गिरधारी लाल भार्गव अब स्मृति शेष हो गए हैं लेकिन अपने पीछे एक ऐसा जीवन इतिहास छोड़ गए हैं जो जयपुर शहर, राजस्थान और पूरे भारतवर्ष में एक अनूठी मिसाल बन गया है।
एक ऐसा व्यक्ति जो निरंतर राजनीतिक सफलताए पाता चला गया लेकिन उसकी मिलनसारिता और विनम्रता ज्यो कि त्यों बरकरार रही। चुनावों में जब उनके विरोधियो को उनके ख़िलाफ़ कहने को कुछ नही मिलता तो उनकी जो अप्रतिम विशेषता थी ( तीये की बैठको में भाग लेना, गरीबों की अस्थियों को स्वयं गंगाजी ले जाना, अधिक से अधिक सामाजिक कामो मैं भाग लेना और बिना जाती पाती की चिंता किए सबके साथ साम करना ) उसी का मखौल उडाया जता था।
मैंने ख़ुद देखा है उनका संस्कार जब वो कवि सम्मलेन सुनने जाते तो कभी मंच पर नही बैठे और अंत तक अग्रिम पंक्ति में बैठकर कवि सम्मलेन का आनंद उठाते। कितने राजनेता इतने सरल और सहज होते हैं। ६ बार सांसद चुने जाना उतना बड़ा कमल नही है जितना इस सरलता को सहेज कर रखना मुश्किल है।
अहमदाबाद में दिल का दौरा पड़ने से कल उनका निधन हो गया। भगवान से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे और परिवार को इस दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे।



Monday, February 2, 2009

राजेंद्र यादव के कटुवचन - हिन्दी प्रेमी गुस्से में




हिंद युग्म के वार्षिक कार्यक्रम में ख्यातनाम साहित्यकार श्री राजेंद्र यादव के संवोधन से पैदा हुआ विवाद और उसमें वेहद गुस्से के तेवर से एक बात साफ़ हो जाती है कि हिंदी की ये नयी सेना हिंदी भाषा को समृद्ध करने के लिए कटिबद्ध है। आओ दोस्तों हम इसका जस्न मनाये. जो कुछ राजेंद्र यादव ने कहा उसे कहने के तरीके से मैं बिल्कुल सहमत नहीं हूँ लेकिन मेरा सहमत या असहमत होना राजेंद्र यादव के लिए इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना अपने चिर विवादस्पद लहजे में अपनी बात कहना. ये ठीक है अब हिंदी के साहित्यकारों को नए जमाने के हिसाब से नए सृजन मूल्य तलाशने होंगे. और अपने अतीत से वाहर निकलना होगा. ये उनकी सोच है जिससे आप सहमत हो सकते हैं और असहमत भी. भाषा ने अपनी यात्रा में बहुत विकास किया है और ये ही भाषा की समृद्धी है. लेकिन उनकी इस बात से सहमत होने का कोई कारण नहीं नज़र आता कि उन्हें कूडेदान मे फेंक दो. वो बेकार है. तो ये जो हिकारत का भाव है अपनी भाषा के प्रति ये सठियाने या अपार दंभ का परिचायक है. आप अपनी बात कहें. लेकिन अपनी विरासत को लात मत मारिये. ये भी कि इस सारी आलोचना से राजेंद्र यादव पर कोई फर्क नहीं पड़ने बाला. वो आदमी नए नए विवादों की खोज करता है और इसी से उसकी दूकान चलती है. शोभा जी का आक्रोश बिल्कुल उचित है लेकिन हम एक बात और समझें कि किसी विद्वान् को हम आमंत्रण दें तो उसके विचार पर मनन करें. अच्छा लगे उसे काम में लें, अच्छा ना लगे भुला दें लेकिन ये उम्मीद करना कि उसका भाषण वैसा होगा जो हमारे विचार हैं ये संभव नहीं है और ऐसा होना भी नहीं चाहिए.जहां तक प्रश्न सबके सामने सिगार पीने का है इसका साफ़ मतलब है कि वो समाज के नियमो को नहीं मानता, अब ऐसे असामाजिक व्यक्ति को मुख्या अथिती बनाना चाहिए या नहीं हमें सोचना है.

Saturday, January 31, 2009

सुभिक्षा - दिवालियापन के कगार पर

भारतीय शहरों मे खुदरा खरीद का एक प्रतिष्ठित खिलाड़ी सुभिक्षा नकदी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। ११ साल मे सुभिक्षा ने देश भर मे १६०० स्टोर खोले। अब हालत ये है की प्रवंधन के पास ना तो वेतन चुकाने को पैसा है न ही बिल चुकाने को। ऐसी हालत मे ३०० करोड़ की नगदी की ज़रूरत बताकर प्रवंधन अपनी बेबकूफीयों के लिए पुरूस्कार मांग रहा है। निदेशक सुब्रह्मण्यम जी का ये कहना - हम व्यंसाय के लिए प्रतिबद्ध हैं और भागेंगे नही कोई मतलब नही रखता है। मेरे पिछले लेख http://nukkadh.blogspot.com/2009/01/blog-post_28.html का आशय यही था की अभी पता नही कितने राजू हमें बेबकूफ बना रहे हैं।




Saturday, January 24, 2009

सत्यम शिवम् सुन्दरम - राजू गंदा अच्छे हैं हम

राजू का ताश के पत्तो का साम्राज्य ढह रहा है और बाकी सभी खिलाड़ी अपने मन में खुश हो रहे हैं कि माना तो उसी ने है - सो चोर भी केवल बही सावित हुआ. हम उन आँख के अंधे निदेशक बोर्ड के सदस्यों को क्या कहेंगी जिन्होंने कभी बैलेंस शीट पढने की जेहमत नहीं की. कौन मानेगा इस बात को. पब्लिक लिमिटेड कंपनी हर ३ माह मे अपनी बैलेंस शीट अखवार मे छपती है. और उस पर चर्चा होती है. लेकिन उन सबको लगा जैसे कि राजू भैया के पास कोई जादू है जो वो लाभ तेजी से बढा रहे है और शेयर की कीमत भी उस जादू से उपर जा रही है. तो उस लोभी निदेशक मंडल को राजू ने क्यों अपने बयान मे तमाम जिम्मेदारी से मुक्त किया इसकी जांच होनी चाहिए. कंपनी के औडिटर तो शक के घेरे मे नहीं पूरी तरह दोषी है ही उन बैंको के बारे मे क्या जिन्होंने गलत प्रमाण-पत्र दिए. म्यूचुअल फंड के रिसर्च विभाग मे क्या हो रहा था? क्या उन्हें उद्योग की प्रगति पर शक नहीं करना चाहिए था ? और अब क्या अकेली सत्यम मे गड़बड़ है शायद समंदर के पाने मे ही कुछ गड़बड़ है. समूचे वाणिज्य जगत को इस पर पारदर्शक मंथन करना पडेगा.

Thursday, January 22, 2009

'Slumdog Millionaire'

स्लम डॉग मिलियोनर - झुग्गी का कुत्ता - १० लाख बाला
क्या भावना है साहब और क्या अंदाज़ है बात को कहने का और हम खुश है, इस बदतमीजी को पुरूस्कार मिलने की संभावना है। मेरा कुत्तो से कोई झगडा नही है और हाँ इस बात मलाल है कि हम कुत्तों की तरह अपने होने के चरित्र से दूर क्यों जा रहे है। मेरा प्रश्न ये है कि कैसे कोई इंसान दूसरे इंसान को कुत्ता कह देता है। और ये अंडर-डॉग की तरह एक मोहावरा नहीं है गाली है हिकारत है संवेदना रहित शाब्दिक दिवालियापन है ।

ऐसी बातो पर नस्ल भेद का हल्ला करने बाला सभ्य समाज क्यों नहीं इसे नस्ल भेदी टाइटल नही मानता ? हरभजन पर मंकी कहने का आरोप लगाया गया था जो सच नही था लेकिन जो सच ही उसने कहा था वो बहुत शर्मनाक था। गरीबों को इससे पहले कभी कुत्ता नही कहा गया। दोष इसमे दूसरो का नही हमारे अपनों का है जो नामी पुरुस्कारों के लिए इंसानियत की आत्मा का सौदा करते हैं।

मुझे अच्छा लगेगा यदि इसे सही भाषा समझने बाले लोग ख़ुद को फ्लैट-डॉग, कोठी-डॉग, क्वार्टर-डॉग, सिने-डॉग, पॉलिटिकल-डॉग, राईटर-डॉग, बाबू-डॉग, ऑफिसर-डॉगऔर इस जैसेविशेषणों से विभूषित करें।
वैसे कल को जीवोक्रेसी की अदालत में कुत्ते आपत्ति कर सकते हैं कि क्यूँ इन तमाम निकम्मे लोगो के नाम के साथ हमारा नाम लगाकर हमारा अपमान किया जा रहा है?
आपका अपना
हरी-डॉग

Tuesday, January 20, 2009

अंत भला तो सब भला

दोस्तों, बहुत समय बाद अब मुझे अब समय मिला है कि में अपने ब्लॉग लेखन के कार्य को आगे बाधा सकूं. २००८ मे मार्च के बाद का समय मेरे लिए अवसाद और झुझलाहट का रहा और ऐसा समय आया जब मुझे अपनी क्षमता और लगन पर खुद संदेह होने लगा. ऐसा इसलिए नहीं कि मैंने मेहनत करने मे कोई कसार छोडी बल्कि इसलिए कि उस दिनों आये औडिटर महोदय ने बहुत घटिया टिप्पणीयाँ मेरी कार्य शैली और प्रवंधन के उपर की. खैर बाद के समय मे मैंने उन सबको सकारात्मक रूप से लेकर और बेहतर कार्य किया लेकिन उनका व्यवहार और अनर्गल टिप्पणीयाँ मेरे दिमाग से निकल नहीं सकी. बाद मे मुझे संस्था ने मेरे काम के लिए ग्रीन चैनल अवार्ड फॉर परफॉर्मेंस के लिए नामित किया तो मैं खुद आश्चर्यचकित हो गया. बैंक ने ऐसे ही सम्मानित अन्य २९ लोगो के साथ मुझे भी १० दिन के लिए त्रिची - कोइम्बतूर - ऊटी - मैसूर - बंगलोर के दौरे पर भेजा. अब इस दौरे के २ माह बाद केंद्रीय कार्यालय के मैं शाखा को अ+ ( पूर्ण दक्षता के साथ ) रेटिंग मिली है. हालंकि मैं अब वहां नहीं हूँ लेकिन जिस समय के लिए निरीक्षण हुआ है वो लगभग पूरा मेरा ही कार्यकाल था. तो ये मेरे लिए आत्म विश्लेषण का कारण तो था ही.मेरे लिए ऐसे मैं ये ज़रूरी हो जता है कि मैं उन सबको धन्यबाद दू जिन्होंने अवसाद के क्षणों मे मेरा साथ दिया। आभार। साथियो बच्चन जी के शब्दों में -
और अंत मे दुनिया हारी और हमी तुम जीते.