पत्तो से पेड़ों के
आती छनकर किरणें
आग सी बरसती है.
मानव की बात दूर
पौधे कुम्हलाते हैं.
चलती है गरम हवा
लू लगने के डर से
घर में छिप जाते हैं.
धूप से पराजित हो
तड़प तड़प जाते हैं.
रुकने की आस लिए
बढते जाते पथिक
छाँव कहीं आगे है
जलते हैं पैर भले
चलते ही जाते हैं.
नीम तले खटिया पर
सोने सी दोपहरी
लेटकर बिताते हैं
चांदी सी रातों में
थककर सो जाते हैं
7 comments:
भावपूर्ण प्रवाहमय!!
नीम तले खटिया पर
सोने सी दोपहरी
लेटकर बिताते हैं
चांदी सी रातों में
थककर सो जाते हैं
बहुत अच्छी है....
very nic poetry
क्या बात है,बहुत खूब
गर्मी का विवरण इतने
भावपूर्ण अंदाज मे,
अत्यंत सुंदर रचना,धन्यवाद
भावपूर्ण सुंदर रचना,धन्यवाद...
दिन देते गर्मी
रातें छीनती नींद
छनती हैं बातें
बीत जाती हैं
चंद मुलाकातों में
मन भर की बातें
बनती हैं सौगातें।
bahut khoob...garmi ke mausam mein aapki kavita padh kar sahi ahsaas ho raha hai...bahut achhi abhivyakti....
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