एक ब्लोग कहानी में एक टिप्पी होती है , एक टिप्पा होता है
मेरे ब्लोग पर टिप्पणी देने बाले
बेनामी ना देना नाम से देने बाले
तुम यहा टिपियाओ या ना टिपियाओ ये हक है तुमको
मेरी बात और है मुझे तो टिपियाना है
भूले से टिप्प्णी कर बैठा
नादान है बेचारा ब्लोगर ही तो है
हर ब्लोगर से टिप्पणी हो जाती है
भेजो ना लीगल नोटिस टिप्पणी ही तो है
तेरी प्यारी प्यारी टिपणी पे
किसी की नज़र ना लगे
टिपियाबद्दूर
बसन्ती, गब्बर की पोस्ट पे टिप्पणी मत करना
ये तो हुई टिप्पणी के साथ मसखरी. अब बात अजय की बात की तो भैया हमारी टिप्प्णी उतनी ही गम्भीर होती है जितना गम्भीर होने का हम नाटक कर रहे होते है. और हरि भाई उर्फ़ सन्जीव भैया को तो पैसे मिलते थे गम्भीरता ओढने के हम तो मुफ़त मे अपनी शकल बिगाडे घूम रहे है.
हमने टिप्पणी मे कहा कि लडकी अगर बेरुखी दिखाये तो ये नही समझना चाहिये कि उसे आप पसन्द नही है. हम अपनी इस बात पे कायम है. अगर आपकी प्रीति सच्ची है और बेरुखी दिखती है तो प्रेमी को उसके अनुकूल होने के लिये और प्रयास करने चाहिये.
शिशु पाल सिह निर्धन ने कहा -
जब तक प्रतिबिम्ब लगे मैला
दर्पन को रख अपने आगे
पूजा का दीपक बनकर जल
जब तक ना मौन प्रतिमा त्यागे
इसी बात को कुवर बेचैन कहते है -
दीवारो पे दस्तक देते रहना है
दीवारो मे दरवाजे बन जायेन्गे
बात ग्लोबल वार्मिन्ग की उसके लिये तो दुनिया भर के लोग चिन्तित है. लेकिन हम ग्लोबल ब्लोगिन्ग के लिये निकले थे लेकिन ब्लोग जगत मे ब्लोगर वार्मिन्ग तक पहुच गये है. कुछ इसकी भी तो चिन्ता करो मेरे भाई.