लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए
टूटकर बिखरी हुई पहचान होकर रह गए |
बर्फ़ की -सी सिल्लियों के आवरण में सर्द हैं
ठण्ड की चुप्पी लपेटे दायरों में ज़र्द हैं
बस मुल्लमा तानकर अहसान होकर रह गए
लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए |
आइने से झांकते प्रतिबिम्ब कोई और हैं
झूठ की परतें चढ़ाये क्या फ़रेबी दौर है
इस हुज़ुमी वक़्त में हैवान होकर रह गए
लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए |
बस्तियों के बीच कितनी ख्वाहिशें है लुट रही
दंभ की दीवार सबके आंगनों में जुट रही
जिंदगी की दौड़ में अपमान होकर रह गए
लोग अब इस भीड़ में अनजान होकर रह गए |
मेरे ब्लोग पर आज लेखिका के रूप मे रजनी मोरवाल जुड रही हैं. आप एक अध्यापिका के साथ साथ सुलझी हुई सोच की लेखिका है. मैं अपने ब्लोग पर उनका स्वागत करता हूँ. उनका अपना ब्लोग है - http://www.rajanimorwal.blogspot.com
3 comments:
bhtrion bhtrin alfazon ki bhtrin adaakari he mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan
लगता है एक बेहतरीन रचनाकार मिली है ब्लॉग जगत को ! आपका आभार हरि भाई !
आभार अकेला भाई,शुक्रिया सतीश जी,
स्नेह बनाये रखिये
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