Monday, September 26, 2011

आज की रात वाहो़ मे़ सो जाइये - प्रसिद्ध गीतकार श्री आत्म प्रकाश शुक्ल






आज की रात वाहो़ मे़ सो जाइये
क्या पता ये मिलन फिर गवारा ना हो
या गवारा भी हो तो भरोसा नही
मन हमारा भी हो मन तुम्हारा भी हो

इस अजाने उबाऊ सफ़र मे़ घडी
दो घडी साथ जी ले़ बडी बात है
भीड से बच अकेले मे़ बैठे़ जरा
हम फटे घाव सी ले़ बडी बात है

गोद मे़ शीश धर चूम जलते अधर
इस घने कुन्तलो मे़ छिपा लीजिये
आचरण के सभी आवरण तोडकर
प्राण पर्दा दुइ का मिटा दीजिये

हाथ धोके पडा मेरे पीछे शहर
लेके कोलाहलो़ का कसैला ज़हर
इसलिये भागकर आ गया हू़ इधर
मेरे मह्बूब मुझको बचा लीजिये

आज की रात तन-मन भिगो जाइये
क्या पता कल किसी का इशारा ना हो
या इशारा भी हो तो भरोसा नही़
मन हमारा भी हो मन तुम्हारा भी हो

इससे पहले मुअज्जन की आये अजान
या शिवालय में गूंजे प्रभाती के स्वर
या अजनबी शहर में उठे चौंककर
दूर से सुन बटोही सुवह का सफ़र

या नवेली दुल्हन से ननद मनचली
हंसके पूछे रही थी कहाँ रात भर
सांस की सीढियों से फिसलती हुई
निर्वसन रात पूछे कहा कंचुकी

आज की रात सपनो में खो जाइए
क्या पता कल नज़र हो नज़ारा ना हो
या नजारा भी हो तो भरोसा नहीं
मन हमारा भी हो मन तुम्हारा भी हो

6 comments:

Mishra Pankaj said...

मस्त लिखा है भाई आपने इस को यहाँ पढाने का आभार

Lata said...

Bahut khoob.Dil ko chhuu gaya.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

स्वाधीनता दिवस पर हार्दिक शुभकामानाएं.

सपने आधे अधुरे ... said...

Bahot hi acha likha hai Hari ji..

दर्शन कौर धनोय said...

Bahut achhe se likha hei ....photo bhi shut ho raha hei ..apke sath hi shree Aatmprakash ji ko bhi badhaai

दर्शन कौर धनोय said...
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