आज के दिन किसी सूने से पडे आंगन मै
रोती हंसती सी आई थी एक भोली लडकी
घर के लोग खिलौना सा समझते जिसको
मुख पे रौनक सी छाई थी वो भोली लडकी
गुडियो से खेलती हुई मन मै उमंगे भरके
खेलती,पढती, लुभाती थी वो भोली लडकी
मा की ममता, पिता के कडे अनुशासन मै
पल के बढती है पढाकू सी वो भोली लडकी
दीन दुनिया की सभी फिकरों को धुंए उडा
आईने देख के सवरती रही वो भोली लड़की
होले होले से जवानी ने तभी दस्तक दे दी
दादी अम्मा की भई फिक्र अब भोली लड़की
ढूढा एक राजकुमर शादी की तयारी कर ली
मूक रहकर के बनी दुल्हन वो भोले लड़की
रोती हंसती सी आई थी एक भोली लडकी
घर के लोग खिलौना सा समझते जिसको
मुख पे रौनक सी छाई थी वो भोली लडकी
गुडियो से खेलती हुई मन मै उमंगे भरके
खेलती,पढती, लुभाती थी वो भोली लडकी
मा की ममता, पिता के कडे अनुशासन मै
पल के बढती है पढाकू सी वो भोली लडकी
दीन दुनिया की सभी फिकरों को धुंए उडा
आईने देख के सवरती रही वो भोली लड़की
होले होले से जवानी ने तभी दस्तक दे दी
दादी अम्मा की भई फिक्र अब भोली लड़की
ढूढा एक राजकुमर शादी की तयारी कर ली
मूक रहकर के बनी दुल्हन वो भोले लड़की
4 comments:
भोली सी दुल्हन जो पिया मन भाये।
सुंदर रचना, कुछ टंकण त्रुटि है, कृपया ठीक कर लें।
ढूढा एक राजकुमर शादी की तयारी कर ली
मूक रहकर के बनी दुल्हन वो भोले लड़की
bahut sunder......
सुंदर रचना...
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