Tuesday, December 6, 2011

भोली लडकी

आज के दिन किसी सूने से पडे आंगन मै
रोती हंसती सी आई थी एक भोली लडकी

घर के लोग खिलौना सा समझते जिसको
मुख पे रौनक सी छाई थी वो भोली लडकी

गुडियो से खेलती हुई मन मै उमंगे भरके
खेलती,पढती, लुभाती थी वो भोली लडकी

मा की ममता, पिता के कडे अनुशासन मै
पल के बढती है पढाकू सी वो भोली लडकी

दीन दुनिया की सभी फिकरों  को धुंए   उडा
आईने देख के सवरती रही  वो भोली लड़की

होले होले से जवानी ने तभी  दस्तक दे दी
दादी अम्मा की भई फिक्र अब भोली लड़की

ढूढा एक राजकुमर शादी की तयारी कर ली
मूक रहकर के बनी  दुल्हन वो भोले लड़की

4 comments:

SANDEEP PANWAR said...

भोली सी दुल्हन जो पिया मन भाये।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सुंदर रचना, कुछ टंकण त्रुटि है, कृपया ठीक कर लें।

दर्शन कौर धनोय said...

ढूढा एक राजकुमर शादी की तयारी कर ली
मूक रहकर के बनी दुल्हन वो भोले लड़की
bahut sunder......

संध्या शर्मा said...

सुंदर रचना...