बीते वर्ष मॉस पखवारे एक एक कर सांझ सकारे
थाम उम्र का हाथ बुढापा हंसकर बोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़नखटोला रे
थाम उम्र का हाथ बुढापा हंसकर बोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़नखटोला रे
ख़तम हुआ सब खेल तमाशा अब किस अभिनय की अभिलाषा
थोथे मंचो की तलाश मे भूल गया अपनी परिभाषा
लिए गंध की प्यास मन हिरन वन-वन डोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़न खटोला रे
भोर भई हंस खेल गवाई दोपहरी भर दौड़ लगाईं
गोधूली मे थककर बैठी सांझ देख नैना भर लाइ
अमित युगों से रही बदलती पचरंग चोला रे
चल पगली तय्यार खडा तेरा उड़नखटोले रे
अमृत सिन्धु धारे अंतर में नाहक डूब मरी पोखर में
प्यासी धरा तृप्त हो जाये इतनी ओस कहाँ अम्बर में
अंतर रतन बेचकर पगली पाहन तोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़न खटोला रे
शब्द रूप रस गंध छुअन में चुम्बन दर्शन आलिंगन में
सारी साँसे हवन हो गयी कुछ काया मे कुछ कंचन में
अब काहे पछताए पिया का आया डोला रे
चल पगली तैयार खडा तेरा उड़न खटोला रे
1 comment:
आपके पन्ने देखना सुखद रहा. सुंदर और सुरुचिपूर्ण. पठनीय एवं दर्शनीय संकलन.
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