जब तेरी जेब मैं
ना हो फूटी कौड़ी और
ताजमहल खरीदने का ख़याल आये,
तो समझना तू कालजयी है..
चहुँ ओर हो निराशा
और मन पर गम की बदली छाए
मगर तू मुस्कुराए
तो समझाना तू कालजयी है.
लोग मारें तुझे नफ़रत से पत्थर
सारा समाज तुझे सताए
और तुझे उन्हीं पर प्यार आये
तो समझना तू कालजयी है.
हर और हो अन्धेरा और
तुझको हो तम ने घेरा
तुझसे मिलकर सब उमंग से भर जाये
तो समझना तू कालजयी है
ठिठुरती हुई ठण्ड में
अलाब तापते लोगों को देखकर
तेरे दिल में नहाने का ख़याल आये
तो तू समझना तू कालजयी है.
यह रचना मेरे अभिन्न मित्र भाई कमलेश शर्मा की मुझे समर्पित कविता है. भाई कमलेश मनचा संचालन की अपनी शैली और विशिष्टता के लिए भरतपुर संभाग का एक जाना माना नाम है.
3 comments:
बेहतरीन प्रस्तुति .सही कहा आपने.
@-लोग मारें तुझे नफ़रत से पत्थर
सारा समाज तुझे सताए
और तुझे उन्हीं पर प्यार आये
तो समझना तू कालजयी है..
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जरूर मिलेगा !उपरोक्त पंक्तियों ने जीवन का फलसफा समझा दिया।
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What impressed me in this poem is your optimism. Keep it up.
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