जब भी मैं ले के बैठता हूं किताबें
तो याद आती हो मुझे तुम,
हर बार किताब रह जाती है
खुली की खुली बिना पढ़ी
मेरे मन के किसी कोने से
मेरे मन के किसी कोने से
फिर यही आवाज आती है
इन किताबों में क्या रक्खा है.
पढना है तो कोई और किताब पढ़ो
किसी के दिल की किताब पढ़ो
किसी के मन की किताब पढ़ो
किसी की सांसों को पढ़ो
और कुछ भी ना पढ़ सको
तो ये कविता ही पढ़ लो
जो लिखी है बस तुम्हारे लिये.
इसे लिखा है आज अभी ही
तुमसे बातें करते हुए
कैसी रही नई कविता ?
वो ये सब पढ़ती है और
हमको जवाब देती है
कविता तो हमने ली सुन
इसमें से आती प्यार की धुन.
इसमें से आती प्यार की धुन.
कुछ ऐसा भी दिखाओ गुण
तुम वहां कीबोर्ड पर लिखो
मैं यहां पर गाऊं रून-झुन
जवाब जमता है तो ठीक
नहीं तो अपना सिर धुन
मैंने तुझे चुना तू मुझे चुन
हवाए गाने लगी मीठी धुन.
हवाए गाने लगी मीठी धुन.
5 comments:
अच्छी जा रही थी कविता ...आखिरी पंक्तियों में यह क्या कर दिया ..!!
Just instal Add-Hindi widget on your blog. Then you can easily submit all top hindi bookmarking sites and you will get more traffic and visitors !
you can install Add-Hindi widget from http://findindia.net/sb/get_your_button_hindi.htm
badhiya hai ......yah baat sahi aapaki mul rachana me gana bilkul fit nahi ho raha hai.......
sir ji , namaskar ;
bahut hi sundar kavita ...padhkar maza aa gaya , bus thoda sa antim lines ko nikaal de ...
kavita ke bhaav acche ban padhe hai .man bahta hi chala jaata hai ..
aabhar
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
sundar abhivyakti....
Post a Comment