Thursday, February 10, 2011

समर्पण कर दूंगा


तुम मधु ऋतू मे मिल जाओ एक बार प्रिये
मैं सपनो का संसार समर्पण कर दूँगा

जब मित्र सभी देखा करते उजियारो को
मैंने जीवन मे सिर्फ अँधेरा देखा है
जब चार दिशाओं गूँज रहा है कोलाहल
मैंने जीवन मे एक रूप जग देखा है
तुम हंसी विखेरो घूमो नाचो गाओ प्रिये
मैं जन्मो का श्रृंगार समर्पण कर दूंगा

जब तारे टिम टिम करते चन्दा चमक रहा
मैंने कुटिया मे घुप्प अँधेरा देखा है
जब गली गली मे धूम मच रही होली की
मैंने दर्पण मे धूल सना मुख देखा है
तुम लिए गुलाल हाथ मे आ तो जाओ प्रिये
तेरी इकरंग चुनरी को रंगविरंगी कर दूंगा

जब रास रंग में डूबी यारों की टोली
मेरे ललाट पर सिर्फ विरह की रेखा है
मेरी नैया तो डूब रही मझधार प्रिये
मैंने कब कब दृश्य तटों का देखा है
तुम निज स्वर मे गाओ मेरे गीत प्रिये
मैं जीवन का अभिसार समर्पण कर दूंगा

3 comments:

M VERMA said...

तुम निज स्वर मे गाओ मेरे गीत प्रिये
मैं जीवन का अभिसार समर्पण कर दूंगा
बहुत खूबसूरत स्वर --

ज्योति सिंह said...

तुम मधु ऋतू मे मिल जाओ एक बार प्रिये
मैं सपनो का संसार समर्पण कर दूँगा


जब मित्र सभी देखा करते उजियारो को
मैंने जीवन मे सिर्फ अँधेरा देखा है
जब चार दिशाओं गूँज रहा है कोलाहल
मैंने जीवन मे एक रूप जग देखा है
तुम हंसी विखेरो घूमो नाचो गाओ प्रिये
मैं जन्मो का श्रृंगार समर्पण कर दूंगा
bahut achchhi panktiyan .

ज्योति सिंह said...

तुम मधु ऋतू मे मिल जाओ एक बार प्रिये
मैं सपनो का संसार समर्पण कर दूँगा


जब मित्र सभी देखा करते उजियारो को
मैंने जीवन मे सिर्फ अँधेरा देखा है
जब चार दिशाओं गूँज रहा है कोलाहल
मैंने जीवन मे एक रूप जग देखा है
तुम हंसी विखेरो घूमो नाचो गाओ प्रिये
मैं जन्मो का श्रृंगार समर्पण कर दूंगा
bahut achchhi panktiyan .