Thursday, February 10, 2011

मुलाकात अभी बाकी है




लोग पिया करते हैं मय से भरे प्यालों को, 
मैं वो साकी जिसमें शराब अभी बाकी है.




उम्र बढ़ने से फितरत नहीं बदला करती,
मेरे जीवन में मधुमास अभी बाकी है.




किसी भँवरे ने पिया रस तभी से अब,
कुमुदनी सोचे कित्ती रात अभी बाकी है.




मिलने को मिल भी लिए उनसे हम ना जाने क्यूँ,
ऐसा लगता है मुलाकात अभी बाकी है.

मैं गूंगी हूँ पर गुड का स्वाद मुझे मालूम है,
मेरे ओठों पर गुड का स्वाद अभी बाकी है. 



22 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

मुलाकात तो बाकी हीरहेगी तभी तो बार बार हर बार मिलते रहेंगे

rashmi ravija said...

मैं गूंगी हूँ पर गुड का स्वाद मुझे मालूम है,
मेरे ओठों पर गुड का स्वाद अभी बाकी है.

वाह वाह...बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है

शरद कोकास said...

कुमुदनी सोचे कित्ती रात अभी बाकी है.
इस पंक्ति में कित्ती रात का प्रयोग बहुत खूबसूरत लग रहा है \ बाकी गज़ल तो गज़ल जैसी ही है , मतलब बढ़िया है भाई । कुछ कुछ रह

राज भाटिय़ा said...

वाह किउस किस लाईन की तारिफ़ करे सभी एक से बढ कर एक, धन्यवाद जी

Anonymous said...

गुड़ का स्वाद तो गुड ही है जी

बढ़िया

shikha varshney said...

मैं गूंगी हूँ पर गुड का स्वाद मुझे मालूम है,

मेरे ओठों पर गुड का स्वाद अभी बाकी है.
जबर्दस्त्त पंक्तियाँ ...पूरी गज़ल ही शानदार है.

Udan Tashtari said...

मैं गूंगी हूँ पर गुड का स्वाद मुझे मालूम है,
मेरे ओठों पर गुड का स्वाद अभी बाकी है.

वाह! वही मिठास आई.

Unknown said...

मीठी और मदहोश करने वाली ग़ज़ल

Satish Saxena said...

क्या बात है यार ! आनंद आ गया सुबह सुबह ! शुभकामनायें !

अजय कुमार झा said...

वाह वाह कत्ल का सामान तैयार है , और हम मासूम कत्ल होने को तैयार बैठे हैं ..कमाल की पंक्तियां हरि भाई

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

वा्ह वाह भाई जी
गुड़ सी मीठी बात कही तब से चींटियों ने डेरा डाल दिया है और च्युंटे जा रही है। हा हा हा
सुंदर गजल के लिए आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत गज़ल...

अजय कुमार said...

अच्छी रचना ,बधाई

Dheerendra Singh said...

Saari Jawani katra ke kati piri me takra rahe ho...?

बीनाशर्मा said...

गूगे के गुड़ का स्वाद तो केवल गूंगा ही जानता है या रचनाकार क्या खूब गजल लिखते है आप

ZEAL said...

.आपने आप में अनोखी ग़ज़ल ।

महेन्‍द्र वर्मा said...

ग़ज़ल अच्छी लगी...सभी शे‘र मोहक हैं।

राजीव तनेजा said...

उम्मीद पे दुनिया को कायम रखिये...मुलाकात ज़रूर होगी...
सुन्दर रचना

Unknown said...

बहुत अच्‍छे हरि जी

Amit Sharma
www.patrkar.com
9829014088

Amit said...

बहुत खूब साहब
अमित शर्मा
www.patrkar.com

गुड्डोदादी said...

बहुत स्टीक
किस पंक्ति पर न लिक्खूँ
दर्द की कड़वी मीठास
अमीर बाई कर्नाटकी के गीत की पांति याद आ गए
कोई रोके उसे और यह कह दे अपनी निशानी देता जा
याद अपनी लेता जा

Unknown said...

amma aapka comment paake ye geet anugrahit ho gaya. mere ahobhagya.