Thursday, February 10, 2011

ना मैं आहें भरुंगा



ना मैं आहें भरुंगा और न मैं आंसू बहाउंगा
तुम्हारी याद आयेगी तो बस इक गीत गाऊंगा

मेरी तन्हाई की दौलत तो मुझसे छिन नहीं सकती
तुम्हारा नाम लेकरके दोस्त जी भर गीत गाऊंगा


तुम्हारी बेवफाई को छुपाकर दिल के लॉकर में
खुशी की ओढ़कर चादर जमाने को दिखाउंगा


भुलाऊं मैं तुम्हें ये तो नहीं मुमकिन मगर फिर भी
जहाँ तक हो सकेगा दर्द ये दुनियाँ से छिपाउंगा


तुम्हें शायद किसी दिन आ जाये बफा मेरी
उसी दिन के लिए जीता रहूंगा, मुस्कराउंगा

4 comments:

निर्मला कपिला said...

तुम्हें शायद किसी दिन आ जाये बफा मेरी
उसी दिन के लिए जीता रहूंगा, मुस्कारुंगा
बहुत सुन्दर रचना है बधाई

समयचक्र said...

बहुत सुन्दर रचना बधाई...

ज्योति सिंह said...

भुलाऊं मैं तुम्हें ये तो नहीं मुमकिन मगर फिर भी
जहाँ तक हो सकेगा दर्द ये दुनियाँ से छिपाउंगा
bahut sundar rachana hai .

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद