बंद करो तकरार मुझे तुम माफ़ करो
जीत गए अब तो अश्को को साफ करो.
जीत गए अब तो अश्को को साफ करो.
तुम से होकर दूर मुझे हिचकी सी आती
दिल की धड़कन अक्सर थम थम जाती.
दिल की धड़कन अक्सर थम थम जाती.
निकल गए सब कांटे लेकिन घाव हरा
आशंकाओ से मेरा मन रहता डरा-डरा.
किन्तु मन मे फिर भी जीवित आशा है
शायद यही प्रीत की चिर परिभाषा है.
शायद यही प्रीत की चिर परिभाषा है.
जव वियोग की यह दुपहर ढल जायेगी
तय है मधुर-मिलन - रजनी भी आयेगी.
आओ एक बार फिर हम तुम साथ चलें
गले मिलें हम लेकर हाथो में हाथ चलें.
गले मिलें हम लेकर हाथो में हाथ चलें.
12 comments:
ek baar phir bahut achha likha hai aapne ...ashawadi kavita hai ..
aashankaaon se mera mann rahta dara dara
kintu mann mein phir bhi jeevit asha hai
nice lines..likhte rahiye ...aapko padhna achha lagta hai ......
hari ji, achha hai apka lekhan. aur kya kya likh rahe hain aajkal. ham sabhi ko padhne ka avsar dijiye. pratibha ko yu chhipayenge to kaise chalega bhala?
SACHMUCH ACHCHHI RACHNA.........
DIL SE GUZARNE WALI !!!!
अद्भुत रचना। दिल को छूती रचना। मग पर फोटो भी शानदार है।
बेहतरीन रचना.
मन मे फिर भी जीवित आशा है
शायद यही प्रीत की चिर परिभाषा है....
प्रीत की प्रीति पर रीझती सी कविता अच्छी लगी ...!!
इस सुन्दर रचना को पढ़कर मन प्रमुदित हो गया!
achi rachna
बहुत सुंदर रचना जी, चित्र भी मग वाला बहुत सुंदर. धन्यवाद
bahut sundar!!
जव वियोग की यह दुपहर ढल जायेगी
तय है मधुर-मिलन - रजनी भी आयेगी.
आओ एक बार फिर हम तुम साथ चलें
गले मिलें हम लेकर हाथो में हाथ चलें.
bahut sahi or jivit bhav.....
जव वियोग की यह दुपहर ढल जायेगी
तय है मधुर-मिलन - रजनी भी आयेगी.
आओ एक बार फिर हम तुम साथ चलें
गले मिलें हम लेकर हाथो में हाथ चलें.
bahut sahi or jivit bhav.....
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