Saturday, August 22, 2015

चाँद तन्हा - हरि तन्हा


रात भर चलता  रहा था  चाँद तन्हा
और में हर रात भरता सांस तन्हा 
चाँद की महफ़िल में हैं तारे बहुत पर
फिर भी रहता आकाश में ये चाँद  तन्हा

भीड़ में रहकर में होता रात  तन्हा
जंगलों में शेर भी रहता है  तन्हा
जानवर है औ शिकार का सामान भी है
शेरनी मायके गयी तो शेर जी  हो गए  तन्हा

पहाड़ों के बीच मई समतल जमी  तन्हा
और समतल बीच है ये पहाड़ तन्हा
दुकानों में भीड़ आती लौट जाती
शाम को बाजार खाली, बैंक खाली "हरि " तन्हा 

3 comments:

दर्शन कौर धनोय said...

♥•°●”˜˜”●°•.Darshan .•°●”˜˜”●°•♥

(⁀‵⁀,)♥ ♥¸.•°*”˜˜”*°•. Like
.`⋎´ ♥¸.•°*”˜˜”*°•. ♥•
... ♥¸.•°*”˜˜”*°•.
...•°*”˜˜”*°•.

दर्शन कौर धनोय said...

♥•°●”˜˜”●°•.Darshan .•°●”˜˜”●°•♥

(⁀‵⁀,)♥ ♥¸.•°*”˜˜”*°•. Like
.`⋎´ ♥¸.•°*”˜˜”*°•. ♥•
... ♥¸.•°*”˜˜”*°•.
...•°*”˜˜”*°•.
bahut sunder ....

मुकेश कुमार सिन्हा said...

!! प्रकाश का विस्तार हृदय आँगन छा गया !!
!! उत्साह उल्लास का पर्व देखो आ गया !!
दीपोत्सव की शुभकामनायें !!