Saturday, August 22, 2015

सुख और दुःख



दुःख सुख क्या है
वक्त का अँधेरा है
फैला है चारो ओर
कव होगा सवेरा
कब मिटेंगे दुःख मेरे
जीवन फिर महकेगा

दुःख के अंधेरो मे
आशा के होने से
विजली तो चमकती है
ऐसा समय आयेगा
फिर सुख के दिन होंगे
सूरज फिर चमकेगा

जीवन मे देखो तो
हैं रात बड़ी लम्बी
घनघोर है अँधेरा
दुःख का है कथानक
सुख महज प्रसंग है
कौन सदा चहकेगा

7 comments:

Udan Tashtari said...

जीवन का यथार्थ!!

Vandana Singh said...

sach much sukh or dukh jeevan ki parchayee hi hai .nic poety

rajni chhabra said...

bahut hi ashawaadi

मुकेश कुमार सिन्हा said...

behtareen:)

ANULATA RAJ NAIR said...

सुन्दर भावाव्यक्ति.....

सादर

दर्शन कौर धनोय said...

bahut badhiya likha hai ...har dukh ke baad khushi ka suraj to ugta hi hai ....

Dinesh Lahoti said...

Shandar.
Attitude makes the diifference.