Monday, March 28, 2011

क्या मुक्त हो पाओगे? - श्रीमती रजनी मोरवाल





तुम पुरुष हो,
तुम्हे बंधन  नहीं स्वीकार्य ?
चाहते हो मुक्त होना
मेरी इच्छाओं से ,
भावनाओं से,
और
अपेक्षाओं से |
मैनें तो तुम्हें मुक्त ही किया है ,
अपनी
अभिलाषाओं से
आकांक्षाओं से
और
कामनाओं से ,
परन्तु..........
तुम ही सदैव
आश्रित रहे
मुझ पर............
लिपटे रहे  मेरे
नारीत्व से 
ममत्व से 
और
आस्तित्व से |
क्या तुम मुक्त कर पाओगे
स्वयं को 
मेरी आत्मा से
देह से 
और
नेह से ?
क्या मुक्त  हो पाओगे....................?

1 comment:

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी कविता।
इस प्रश्न का जवाब तो ‘नहीं’ ही सूझ रहा है।