तोप ना बाबा बा - अब तोप का क्या काम, चलो ब्लॉग निकालते हैं
ब्लॉग जगत में कुछ रिश्ते बन जाते है
वो रिश्ते हमको याद बहुत ही आते हैं
हम पहले चैटिंग ही करते थे
चैटिंग से ही दोस्त बनाया करते थे
तब चैटिंग में दिन में होली मनती थी
और रात को दीप जलाया करते थे
तभी एक दिन गूगल से होकर
किसी ब्लॉग पर अपनी नज़र पडी
ब्लॉग को पढ़कर मेरी आँख खुली
जैसे कि गंगा की हो धार मिली
खेल खेल में थे कुछ ब्लॉग बने
अलग अलग बिषयो पर अलग बने
तभी एक ब्लोगर से बात हुई
कुछ हम कहे है नाम ब्लॉग का तो
लिखने वाली रहती मुंबई में
नाम अनीता प्रोफ़ेसर है जो
फिर हमने भी ध्यान दिया इस पर
कविता, लेख लिखे कुछ ब्लोगर पर
शुरू शुरू कोई पढ़ने नही आया
जब तक ब्लॉग विवाद मे नही आया
आगे पढ़िए अगली पोस्ट में जल्दी ही .........................
13 comments:
सही जा रहा है... तोप मस्त है... मेहरानगढ़ कि है?
शुरू शुरू कोई पढ़ने नही आया
जब तक ब्लॉग विवाद मे नही आया
हिंदी पाठकों की यही मानसिकता तो हिंदी की दयनीय स्थिति की जिम्मेदार है !!
सही कह रहे हैं आप ...अपने साथ भी कुछ-कुछ ऐसा ही हुआ था
लिखते रहो!
रिश्ते तो बनते ही जायेंगे!
टुकड़ों में लिख रहे हो, मतलब टिप्पणियां बटोर रहे हो।
लिखते रहो ऐसे ही
पढ़ने वाले भी आएगें।
जो भी यहाँ आएंगें....
बिन टिपियाए ना जाएंगें।:))
बढिया है पोस्ट लिखी!
nice
श्रीगणेश अच्छा था, अनिता जी ही मिलीं।
बहुत बढ़िया !
बहुत ही शानदार। तोप भी अच्छी है।
लिखने से अधिक पढ़ने से मित्र बनते हैं। यह मायने नहीं रखता कि आपकी पोस्ट पर कितनी टिप्पणी हुई परन्तु यह मायने रखता है कि आपने कितनी टिप्पणी की।
तोप का क्या काम ..चलो ब्लॉग लिखते हैं ...
हा हा हा ...
ब्लॉग लिखने वाले किसी अलग दुनिया से तो हैं नहीं ...लेखकों , साहित्यकारों की वास्तविक दुनिया भी कम राजनैतिक नहीं रह गयी है ...उसका असर यहाँ भी होना लाजिमी है ...
बढ़िया शुरुआत है ,आगे का इंतज़ार है.
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