Saturday, July 9, 2011

उसके होने से मैं हूँ,

उसके होने से मैं हूँ,
वो नहीं तो अपना वजूद ढूँढता हूँ!
उसके होने से आबाद हूँ,
आज उसके जाने से जर्जर पड़ा हूँ!
तपती रेत से पड़े छालों में इतनी तासीर न थी,
जितने गहरे ज़ख्म उसके जाने ने दिए!
आज जब वो नहीं तो मेरा अस्तित्व नहीं,
बांसुरी बिन कान्हा, कान्हा नहीं!
मैं रेत, वो पानी,
मेरे ऊपर गिरती और विलुप्त हो जाती!
सोचता था ठंडक देगी मुझको,
चली गयी और झुलसा मुझको!
आज वो नहीं,
तो कुछ नहीं!
जानता था रेत और पानी का मिलन न होगा कभी,
पर दिल कहता था थोड़ी देर देख ले अभी!
अब मैं हूँ और मेरी तन्हाई,
और जिससे कभी मेरी याद न आई,
आज उसे याद कर रोता हूँ अकेले में!!!
NEERU KUMAR

3 comments:

दर्शन कौर धनोय said...

उसके होने से मैं हूँ

वो नहीं तो अपना वजूद ढूँढता हूँ!

उसके होने से आबाद हूँ,

आज उसके जाने से जर्जर पड़ा हूँ!

बेहद खुबसुरत गीत ..दर्द में डूबा हुआ ..बिछोह की चरम काष्ठा..
आज वो नही !
तो कुछ नहीं !!

शोभा said...

bahut badhiya.

शोभा said...

bahut sundar