Tuesday, March 29, 2011

टीस अब बहने लगी है - श्रीमती रजनी मोरवाल


आँसुओं की बाँह थामे टीस अब बहने लगी है |
दर्द की किरचन ज़िगर को पार कर चुभने लगी है |

जिंदगी के इस तरफ से उस तरफ की दूरियाँ 
फ़ासिले   कम कर न पाई वक़्त की मजबूरियाँ ,
सब्र की साँसें दरकते ज़िस्म में थमने लगी है |

है सभी चेहरों पे चेहरा, डर कहीं पर औ" हया है 
ये कहानी हर किसी की है मगर मौंजू नया है ,
ओढ़कर झूठे नकाबों में हँसी छलने  लगी है |

देह की मंडी बज़ारों की कतारों में लगी है 
चाहतों के नाम पर अब हो रही देखो ठगी है ,
अब नयी ये खेप साँझे सोच में बिकने लगी है |  

1 comment:

आपका अख्तर खान अकेला said...

kya bat he jnab bhtrin bdhaai ho . akhtar khan akela kota rajsthan