अकेलापन
मौन कमरों के झरोखे
और खिड़की चुप हुई,
पीर आँखों से बरसती
चुभ रही दिल मैं सुई,
एक वीराना हमेशा पालता रहता मुझे |
भीड़ फैली हर तरफ है
मैं अकेली हूँ खड़ी,
ज्यों समुन्दर के किनारे
पर कोई कश्ती पड़ी,किन्तु गीलापन हमेशा टालता रहता मुझे |
प्रीति की क्यारी सहेजूँ
मन उलझकर रह गया है
विरह की इन झाड़ियों में
कौन सपनों में हमेशा ढालता रहता मुझे ?
2 comments:
बेहतरीन.
मौन कमरों के झरोखे
और खिड़की चुप हुई
पीर आँखों से बरसती
चुभ रही दिल में सुई
एक वीराना हमेशा पालता रहता मुझे
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सूक्ष्म गहनतम भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति है ......आपका सुकोमल गीत
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