Sunday, June 27, 2010

जयपुर ब्‍लॉगर मिलन और मुलाकात अविनाश वाचस्पति परिवार से






टाटा की वो कार जिसने स्वर्णिम त्रिभुज दिल्ली आगरा जयपुर में अविनाश परिवार का खूब साथ दिया. 




इस तरह चलता रहा मिलने बात करने का सिलसिला 


ब्लॉग जगत के अपने अनुभव साझा करते हरि शर्मा और ध्यान से सुनते राजीव जैन, सुधाकर, अविनाश वाचस्पति और डॉ. गरिमा  









प्रेम का दरिया बहाते प्रेम चंद गांधी आये और साथ में बैठे हुए है इस मिलन को कवर करते चैनल के लोग श्री देशराज सिंह तंवर और अक्षय  

तीय
t : जिंदगी सिखाती है कुछ
बतियाते हुए कार्टूनिस्ट सुधाकर और अविनाश
देरी से आये लेकिन खूब प्यार से मिले एम डी सोनी जी के साथ हरि शर्मा, अविनाश और गरिमा 













लो जी जयपुर ब्‍लॉगर मिलन पर पहली किस्‍त पेश है जल्दी ही लेकर हाज़िर होंगे पूरी रिपोर्ट..................... 

Thursday, June 24, 2010

अविनाश वाचस्पति जयपुर में

अविनाश वाचस्पति

aidichoti khabarchi
माता-पिता
खामोशी... बहुत कुछ कहती है
पिताजी
हरि शर्मा - नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे
हँसते रहो हँसाते रहो
Ek sawaal tum करो
संजीवनी
बगीची
स्मृति-दीर्घा
तेताला
नुक्कड़
निर्भीक खबरी
पांचवा खम्बा
झकाझक टाइम्स
गड़बड़झाला
भारत-ब्रिगेड
माँ
भारतीय शिक्षा - Indian दुकतिओन
मीडिया मंत्र (मीडिया की खबर)
चौखट
पहला एहसास
सुधाकल्प
शब्द-लोक । The World of वोर्ड्स
ब्लॉग् मंत्रालय्
मैं आपसे मिलना चाहता हूं
ये कुछ ब्लॉग है जिनसे अविनाश वाचस्पति जी की पहचान है और ये हमारा सौभाग्य है कि आज कल और परसों वे जयपुर आये हुए हैं.  अभी यह तय हुआ है कि उनके आगमन पर एक ब्लोगर मीट रखी जाए. इस पोस्ट के माध्यम से जयपुर और आसपास के सभी ब्लोगरो और ब्लोगिंग में रूचि रखने वालो से आग्रह है कि प्रस्तावित ब्लोगर मीट को सफल बनाएं. 
हरि शर्मा 
९००१८९६०७९

Sunday, June 13, 2010

सबका सफर अलग है लेकिन अलग अलग रफ़्तार है - आत्म प्रकाश शुक्ला ( प्रसिद्द गीतकार )





सबका सफ़र एक है लेकिन अलग अलग रफ़्तार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।

ऐसा कौन नहीं जो जूझे मौजो से मझधार से,
तैराको की असल कसौटी परखी जाती धार से।
दुनिया अर्ध्य चढाती उनपर जिनका बेडा पार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।

सबकी अपनी तीर कमाने अपना सर संधान है,
किन्तु लक्ष्य घोषित करता है किसका कहाँ निशान है।
मत्स्य वेध जो करे सभा मे उसका जय जयकार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।

जिसकी जितनी लम्बी चादर उतना ही फैलाव  है,
जितना बोझ वजन गठरी मे उससे अधिक दबाव  है.
अपनी अपनी लाद गठरिया जाना सबको पार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।

दुःख की करुणा भरी कथा मे सुख तो सिर्फ प्रसंग है,
और जिन्दगी भी जीवन से उबी हुई उमंग है.
साँसों का धन संघर्षो से माँगा हुआ उधार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।

रैन वसेरा करके पंछी उड़ जाते है नीद से,
सब चुपचाप चले जाते है आंसू पीकर भीड़ से.
जाना सबको राम गाँव तक करकर राम जुहार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है.

Thursday, June 10, 2010

मेरी ब्लॉग यात्रा और नए नए रिश्ते - 2 कल तुमको मैंने एक गीत सुनाया था



कल तुमको मैंने एक गीत सुनाया था
ब्लॉग जगत को थोड़ा थोड़ा भाया था 
कुछ गीत लिखे मैंने फिर इसी ब्लॉग पर ही 
कुछ सुधी जानो ने  दी थी वहा टिप्पणिया भी
उड़न तश्तरी वाले मिले समीर लाल 
तो फुर्सत से  देते कमेन्ट फ़ुरसतिया जी 

अविनाश मिले  नुक्कड़ से जोड़ा हमको भी
थोड़ी चिक चिक के बाद जुड़े सुशील कुमार 
था जोश बड़ा उनको तो अच्छा लिखने का 
पर नयी पोस्टिंग ने उस क्रम को तोड़ दिया 
फिर सूर्यकान्त जी मिले सपत्नी ऑरकुट पर 
हौले हौले वो बढ़ने लगे ब्लॉग पर भी 

इन दिनों पूर्णिमा जी ने कुछ टोपिक देकर 
हमसे कुछ गंभीर  काव्य लिखवा डाला
ऐसे ही अनुराधा जी ने भी दीदी बनकर
दे देकर कुछ  आदेश गद्य लिखवा डाला 
फिर मिले हमें कुछ बड़े ३६ गढ़ी ब्लोगर 
मूछो वाले हैं ललित बने छोटे भैया 

एक पावला जो टाले हर तकनीक बला
मिले अजय झा, लिखें पोस्ट निरंतर ही
राजीव मिले जो बिना तने- जा-ते लिखते
ये दौर था ऐसा जब पढ़ते तो बहुत पोस्ट 
पर ना कमेन्ट ना चटके का था हमें जोश 
इसलिए हमें भी कम ही कमेन्ट मिला करते 

कविता अभी जारी है. अगले अंक मे जोधपुर ब्लोगर मिलन और उसके कारण जुड़े नये ब्लोगर साथियो पर कुछ लिखने की कोशिश होगी. जिनके भी नाम यहाँ आये है वो सभी मेरे लिए बहुत सम्मानित व्यक्ति हैं. मेरे और पोस्ट के खिलाफ कमेन्ट का स्वागत है अगर भाषा ठीक हो.  प्यार बनाए रखिये.           

  

Wednesday, June 9, 2010

मेरी ब्लॉग यात्रा और नए नए रिश्ते - 1

तोप ना बाबा बा - अब तोप का क्या काम, चलो ब्लॉग निकालते हैं  






ब्लॉग जगत में कुछ रिश्ते बन जाते है
वो  रिश्ते हमको याद बहुत ही आते हैं 

हम पहले चैटिंग ही करते थे 
चैटिंग से ही दोस्त बनाया करते थे 
तब चैटिंग में दिन में होली मनती थी
और रात को दीप जलाया करते थे
तभी एक दिन गूगल से होकर 
किसी ब्लॉग पर अपनी नज़र पडी

ब्लॉग  को पढ़कर मेरी आँख खुली
जैसे कि गंगा की हो धार मिली 
खेल खेल में थे कुछ ब्लॉग बने 
अलग अलग बिषयो पर अलग बने 
तभी एक ब्लोगर से बात हुई 
कुछ हम कहे है नाम ब्लॉग का तो 

लिखने वाली रहती  मुंबई में
नाम  अनीता प्रोफ़ेसर है जो
फिर हमने भी ध्यान दिया इस पर
कविता,  लेख लिखे कुछ ब्लोगर पर
शुरू  शुरू कोई पढ़ने नही आया 
जब तक ब्लॉग विवाद मे नही आया 


आगे पढ़िए अगली पोस्ट में जल्दी ही .........................




Sunday, June 6, 2010

यादें : कैसे लगी ये नौकरी - हरि प्रसाद शर्मा




आज भी मेरी स्मृति में अपने उस साक्षात्कार की यादें ताजा हैं जो उस नौकरी में आने का ज़रिया बना जो मैं आज कर रहा हूँ। साक्षात्कार से पहले लिखित परीक्षा होती है और उसे पास करने के लिए उसमें बैठना पड़ता है। हम शुरू से ही एक अगंभीर तबियत के मालिक थे।


जब ये परीक्षा देनी थी तब एक नौकरी के लिए चुन लिए गए थे इसलिए गंभीर होने का कोई विशेष कारण भी तो नहीं था। परीक्षा के लिए अपने कुछ दोस्तों के साथ मस्ती करते हुए रेल से कोटा गए। वहा सवेरे चाय नाश्ता किया। अपने-अपने प्रवेश पत्र निकाले और परीक्षा केंद्र का पता किया और अपने-अपने परीक्षा केंद्र की तरफ निकल गए। परीक्षा केंद्र पहुंचे तो सूचना-पट पर रोल नंबर देखने को प्रवेश-पत्र जेब से निकाला। कागज़ हाथ में था और पैरों के नीचे से जमीन खिसक रही थी। मेरे हाथ में दोस्त का प्रवेश पत्र था। इसका मतलब ये हुआ कि मेरा प्रवेश पत्र दोस्त के हाथो में था।
मन को ये समझाकर कि अब इस परीक्षा में बैठना नामुमकिन है एक प्रयास करने की सोची और दोस्त के परीक्षा केंद्र की तरफ के ऑटो में बैठ गया. उसके केंद्र तक जाने के लिए बीच मे ऑटो बदलना था. जैसे ही ऑटो से उतरा, ऐसा लगा जैसे आधी रात को सूर्य निकल आया हो,सामने के ऑटो से दोस्त उतर रहा था. दोनों ने बिना बात किये प्रवेश पत्र बदले और उसी ऑटो बाले को अपने ने सेंटर चलने को कहा. जब परीक्षा केंद्र पहुचे तो बाहर सन्नाटा था. तुंरत अपना कमरा पता किया और जा बैठे.
तो परीक्षा हो गयी बढिया और बाद में परिणाम भी आया लेकिन क्या है की अपन गीता से प्रेरणा लेकर कर्म करने में ज्यादा विश्वास रखते हैं। परीक्षा दी और भूल गए। जब अखवार में परिणाम आया तो हमने देखा ही नहीं देखते कहा से रोल नंबर थोड़े लिखके रखा था। खैर जिसका कोई नहीं उसका ऊपर बाला तो है डाक से आने बाली सूचना भी इधर उधर भटक के हम तक पहुची और पता लगा कि हम पास हो गए हैं। पुराने अखवार देखे तो वहा भी रोल नंबर मिल गया। दूसरी नौकरी पहले से पक्की थी.

पिताजी रोज शाम को ज्ञान देते ऐसे प्रश्न तैयार करो, ये भी और वो भी। हमारा दिमाग कुछ और ही सोच रहा था। साक्षात्कार के दिन सवेरे कोटा, जहा नवरंग होटल में साक्षात्कार होना था पहुचे। वही अपुनका पुराना तरीका। चाय पी ढावे पे और फिर आगे जाकर रेस्तरा में नाश्ता किया और पानी से बाल भिगोके सँवारे ( कुंवर बेचैन जी की कविता - तालाबों में झाँक संवर जाते थे हम ) और पहुच गए साक्षात्कार देने। वहां जितने भी साथी ( काहे के साथी प्रतियोगी थे सब ) थे वो सब बने ठने अप-टू-डेट, चमकते चेहरे, टाई पहने जामे हुए थे। जिसे पूछो हमसे ज्यादा पढा लिखा। एक बार तो लगा कि भाई फूट ले यहाँ से लेकिन फिर सोचा कि खोने को क्या है? हमारा नंबर आया। अंदर बुलाया, कमरे मे घुसे तो बैठने को कहा और अपुन थैंक्स कहके बैठ गए।

पहला बोला - शर्मा जी आपने अपने बायो-डाटा में होबीज में क्रिकेट लिखा है, बतायें आप क्रिकेट खेलते हो? कमेंट्री सुनते हो? क्रिकेट देखते हो? या कमेंट्री करते हो?मैंने जवाब दिया - सर, मैं क्रिकेट खेलता भी हूँ, क्रिकेट देखता भी हूँ, कमेंट्री सुनता भी हू और कमेंट्री करता भी हूँ ।

दूसरा बोला - अच्छा फिर तो आप क्रिकेट के एक्सपर्ट हुए। मैंने तपाक से कहा - नो डाउट सर

एक धमाका सा हुआ कमरे में - वो सब कुर्सी पर बैठे बैठे हिल गए )

फिर थोड़ी देर मैं एक बोला - अच्छा बताओ गुगली और चाएनामेन में क्या फर्क है? वो मैंने बता दिया दूसरे ने पूछा पुल और ड्राइव मे क्या फर्क है वो भी बता दिया। फिर क्रिकेट पर हल्की फुल्की बात की उसी समय गावस्कर- कपिल देव विवाद हुआ था उस पर बात हुई।

अगला सवाल आया - आपके पास स्नातक में हिंदी विषय रहा है। मैंने कहा जी हाँ रहा तो है।

बोला - हिंदी के एक कवि हुए हैं। मैंने कहा बहुत हुए हैं साहब।

बोला - बच्चन का नाम सूना है? मैंने कहा - खूब सूना है साहब।

बोला - उन्होंने एक किताब लिखी है मैंने कहा - बहुत सी लिखी है साहब।

बोला - मधुशाला पढी है? मैंने कहा पढी है साहब।

बोला - कुछ सूना सकते हो मधुशाला मे से? मैंने कहा कहाँ से सुनाऊं साहब?

बोला - कही से सुना दो। मैंने फिर जो रिकॉर्ड पे पहले कविता बजती है वो सुनाई -

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीने बाला,

किस पथ से जाऊं असमंजस में है बह भोलाभाला।

अलग अलग पथ बतलाते सब पर में यह बतलाता हूँ,

राह पकड़ तू एक चलाचल पा जाएगा मधुशाला।

एक बोला ये बताओ ये सिर्फ शराब की बात हो रही है या कोई और अर्थ भी है? मैंने कहा साहब, ये मधुशाला जो है प्रख्यात सूफी संत उमर खय्याम की कल्पना है। ये मस्ती का दर्शन है। जब गांधी जी ने बच्चन जी को कहा की तुम ये क्या मदिरा का प्रचार करते फिरते हो तो बच्चन जी ने ये जवाब दिया था की सर में तो शराब की बात ही नहीं करता. में तो इसमे ये कहता हूँ की -हर धर्म का आदमी मोक्ष प्राप्त करने की कामना करता है। लेकिन उसे यह पक्का पता नहीं है की किस धर्म के रास्ते पर चलकर उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। सभी धर्मो के ठेकेदार उसे अलग अलग रास्ते बताते हैं लेकिन मेरा ये कहना है - तू कोई भी एक राह पकडके चलता जा तुझे मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी।

इसके बाद उन्होंने थोडा राजनीति पर बात की, राजीव गांधी २१वी सदी की बात कर रहे थे नए जोश मे थे उस पर कुछ बात की। फिर उन्होंने बहुत गर्मजोशी से मुझे विदा किया और सभी ने शुभकामना दी। ६ दिन बाद ही इसका परिणाम आ गया और मैंने कोटा केंद्र से प्रथम स्थान प्राप्त किया।

जिसे मैंने खेल समझा - वही जिन्दगी की किताब बन गयी ।


हरि प्रसाद शर्मा
77  / 101,
अरावली मार्ग, मानसरोवर,
जयपुर 
302020
 फ़ोन - 09509362347, 09680890951