Tuesday, February 9, 2010

आज कुमार विश्वास जयन्ती है - जन्म १०.०२.१९७०

वास

डाँ कुमार विश्वास
जन्मदिन  - बसंत पंचमी

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है 
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है

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१० फरवरी (बसंत-पंचमी ) को पिलखुवा (गाज़ियाबाद) में जन्में डाँ कुमार विश्वास का नाम हिन्दी कविता-प्रेमियों के लिए परिचय का मोहताज नहीं है। कवि-सम्मेलन के मंचों पर उनकी लोकप्रियता का कारण उनकी वाक्-पटुता, विद्वता, और समय-अवसर पर अपनी विराट स्मरण-शक्ति का प्रयोग है। श्रोताओं को अपने जादुई सम्मोहन में लेने का उनका अदभुत कौशल, उन्हें समकालीन हिन्दी कवि-सम्मेलनों का सबसे दुलारा कवि बनाता है। आई.आई.टी , आई.आई.एम या कॉरपरेट-जगत के अधिक सचेत श्रोता हों, या कोटा-मेले के बेतरतीब फैले दो लाख के जन समूह का विस्तार हो , प्रत्येक मंच को अपने संचालन में डॉ कुमार विश्वास इस तरह लयबद्ध कर देते हैं कि पूरा समारोह अपनी संपूर्णता को जीने लगता है। स्व० धर्मवीर भारती ने उन्हें हिन्दी की युवतम पीढ़ी का सर्वाधिक संभावनाशील गीतकार कहा था। महाकवि नीरज जी उनके संचालन को निशा नियामक कहते हैं। तो प्रसिद्ध हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा के अनुसार वे इस पीढ़ी के एकमात्र ISO 2006 कवि हैं। हास्यरसावतार लालू यादव, अभिनेता राजबब्बर, गोविन्दा, खिलाड़ी राहुल द्रविड़, मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, नीतिश कुमार, टेली न्यूज के  चेहरो, उद्योगपतियों से लेकर भोपाल स्टेशन के कुलियों और मंदसौर मध्यप्रदेश की अनाज मंडी के पल्लेदारों तक फैला उनका प्रशंसक परिवार ही डॉ कुमार विश्वास की सचेत प्रज्ञा का परिचायक है। यह समूह डॉ कुमार विश्वास के देश दुनियां में फैले उन लाखों दीवानों का है जिन्हें उन्होंने बार-बार अपनी क्षमताओं से सम्मोहित किया है और जिनके दिलों की दास्तां को अपनी मीठी-आवाज , खास-अदायगी और खूबसूरत-लफ़्जों में बयान किया है
http://www.kumarvishwas.com/  से साभार 
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आज १० फरबरी है और इसे मैं कुमार विश्वास जयन्ती के रूप में याद करता हूँ. डा. कुमार विश्वास जिन्हें मैं इसलिए बहुत पसंद करता हू कि उन्होंने हिन्दी कवि सम्मलेन के मंचो से विदा होते हुए गीतों को नया जीवन दिया. एक समय आ गया था कि गीतकारो को कोई सुनना ही नहीं चाहता था और बड़े नामी गीतकारो को भी केवल नाम के लिए ही बुलाया जाता था. उस समय डा कुमार एक नयी हवा के झोंके की तरह आये तो आते ही छा गए.

१९९६ में कुमार का पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ जिसके एक हस्ताक्षरित प्रति मेरे पास अभी भी है. उससे कुछ माह पहले ही उनसे ठीक से परिचय हुआ था. मेरी कुछ खराब आदतों में से ये भी है कि मैं पंक्ति, मुक्तक या गीत नहीं याद करता बल्कि किताब याद कर  लेता हू और १ महीने में ही मुझे डा. कुमार पूरी तरह से याद हो गए. कवि सम्मेलनों में कुमार से मुलाक़ात होती रहती.

२००० की गीत चांदनी में कुमार जयपुर  आये तो गीत को समर्पित इस अनोखे आयोजन में आगे से पीछे तक कुमार की धूम मची  हुई थी. पहले दौर में ही कुमार ने सभी श्रोताओं का दिल जीत लिया. दूसरे दौर में जब कुमार से एक के बाद दूसरे गीत की मांग होने लगी तो कुमार ने एक ऐसा गीत जो वो कभी भी मंच से नहीं सुनाते थे वो शुरू किया (रूपा रानी बड़े सयानी, मधुरिम वचना भोली- भाली ) तो सुनाते सुनाते कुमार अटक गए, एक दो बार कोशिश की लेकिन फिर उनकी नज़र मेरे ऊपर पडी और मंच से ही बोले शर्मा जी बताना भाई आगे क्या है. मै खडा हुआ और आगे की  पंक्तिया शुरू कर दी. इस तरह वो गीत पूरा हुआ. एक दम से मंच और सभी बचे हुए श्रोताओं में हंगामा हो गया. कवि सम्मेलनों के इतिहास में ये पहला मौक़ा होगा जब एक जाना माना कवि सामने बैठे श्रोता से कहे की आगे क्या है बताना. संचालक ने कहा शर्मा जी आप मंच पर आये और जो कुछ सुनना चाहे सबको सुनाये. लेकिन मैंने मना कर दिया. मैंने कहा श्रोता के रूप मे में नंबर १ हूँ कवि के रूप में आख़िरी पायदान पर नहीं बैठूंगा. जिस दिन मेरी कविता में दम होगा मै खुद मंच पे आ जाउंगा. उन्होंने कहा आप इतना तो करो ही  कि  अपने विजिटिंग कार्ड सारे कवियों को दे दो क्या पता कब किसे जरूरत पड़ जाये. वाद में प्रसिद्द कवयित्री श्रीमती सरिता शर्मा जी ने कहा शर्मा जी आप जैसा एक भी श्रोता मिल जाए तो हम लोगो का जीवन सफल हो जाए.

इसके बाद अनेक जगह अनेक अवसरों पर डा कुमार को सुनते और मिलते रहे कभी अलीगढ़ कभी गाज़ियाबाद कभी एटा इस बीच मेरा निवास आगरा बना. तभी देखा कि डा कुमार इन्टरनेट पर लोकप्रिय हो गए है उन्हें ऑरकुट पर जोड़ा और जी टॉक और याहू पर भी और बात होने लगी. तभी हमारी आपसी बात चीत को पढके आगरा में उनके एक भगत  ने हमें ढूढ़ लिया तो हमने डा कुमार को फ़ोन मिला के  उनका परिचय भी कराया और कहा कि भाई इन बच्चो पर क्या जादू कर दिया है. तब तक (२००७ ) उनकी नयी किताब "कोई  दीवाना कहता है" भी प्रकाशित हो गई  थी उसमे कुछ नए मुक्तक और गीत भी पढ़ने को मिले. फिर हमारा ट्रांसफर जोधपुर हो गया तो २० नबम्बर २००८ को कुमार जोधपुर आये उन्हें किसी कार्यक्रम में आगे जाना था तो दिन भर उनसे मुलाक़ात हुई वो घर भी आये. तब घर वालो से उनका परिचय भी हुआ. मैं नोयडा के एक कार्यक्रम में उनके परिवार से मिल चुका था.

मेरे बच्चो के स्कूल में बच्चे डा कुमार की चर्चा करते है तो बेटा और बेटी कहते है वो तो मेरे पापा के दोस्त है तो लडके लडकिया इसे गप्प समझते है. वैसे मेरे बेटे ने ३ साल की उम्र में सबसे पहले जो कविता टाइप चीज याद की वो कुमार का ये मुक्तक था जिसे उन दिनों मे गुनगुनाता रहता था.

बहुत टूटा बहुत  बिखरा थपेड़े सह नहीं पाया, 
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया. 
अधूरा अनसुना ही रह गया यूं प्यार का किस्सा, 
कभी तुम सुन नहीं पाए कभी मैं कह नहीं पाया. 

डा. कुमार के  कुछ लोकप्रिय मुक्तक यहाँ लिखने से खुद को नहीं रोक पा रहा हू.

 बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन
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समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नही सकता


ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नही सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नही पाया वो तेरा हो नही सकता
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मोहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है 
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है
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भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा

 डा कुमार विश्वास को जन्म दिन की शुभकामनाये

7 comments:

Udan Tashtari said...

डॉ कुमार विश्वास को जन्म दिवस की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.

दिनेशराय द्विवेदी said...

डॉ. विश्वास समर्थ कवि हैं। उन्हे जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएँ। वास्तव में आप जैसा श्रोता किसी कवि को मिले तो यह उस का सौभाग्य ही होगा।

विवेक रस्तोगी said...

डॉ. कुमार विश्वास को जन्मदिन की बधाई, आपने उनसे व उनकी कविताओं से भी परिचय करवाया, आपको भी बधाई।

rashmi ravija said...

डा.कुमार विश्वास को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई
और आपका शुक्रिया कि आपने इतने ज़हीन कवि से परिचय करवाया ..उनके मुक्तक पढ़ के तो बस वाह वाह ही निकलती है...अति सुन्दर..

अविनाश वाचस्पति said...

यह तो जी कुमार का अटूट विश्‍वास ही है

जन्‍मदिन उनका दीवानेपन की आस ही है।

दीपक 'मशाल' said...

Kumar ji ka parichay dene ke liye bahut aabhari hoon.. unhe janmdin ki hardik shubhkaamnayen..
1 saal pahle jab mujhe UK aaye kuchh hi mahine beete the ki ek din ek mitra ne meri rachnayen padhke kaha ki inme Dr. Kumar Vishwas ki jhalak miltee hai... main thoda chaunka kyonki ye naam pahli baar suna tha.. magar baad me youtube me dekha to samajh aaya ki ye kya hastee hain aur tab us mitra se maine kaha ki kahan tulna kar baithte ho bhai kahan raja Bhoj(Kumar ji) kahan gangoo teli... :)

Unknown said...

कुमार विश्वास जी को हमारी और से भी हार्दिक बधाई ....... सही है आपके जैसा श्रोता और पाठक मिल जाये तो बात ही क्या।