सबका सफ़र एक है लेकिन अलग अलग रफ़्तार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।
ऐसा कौन नहीं जो जूझे मौजो से मझधार से,
तैराको की असल कसौटी परखी जाती धार से।
दुनिया अर्ध्य चढाती उनपर जिनका बेडा पार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।
सबकी अपनी तीर कमाने अपना सर संधान है,
किन्तु लक्ष्य घोषित करता है किसका कहाँ निशान है।
मत्स्य वेध जो करे सभा मे उसका जय जयकार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।
जिसकी जितनी लम्बी चादर उतना ही फैलाव है,
जितना बोझ वजन गठरी मे उससे अधिक दबाव है.
अपनी अपनी लाद गठरिया जाना सबको पार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।
दुःख की करुणा भरी कथा मे सुख तो सिर्फ प्रसंग है,
और जिन्दगी भी जीवन से उबी हुई उमंग है.
साँसों का धन संघर्षो से माँगा हुआ उधार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है।
रैन वसेरा करके पंछी उड़ जाते है नीद से,
सब चुपचाप चले जाते है आंसू पीकर भीड़ से.
जाना सबको राम गाँव तक करकर राम जुहार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है.
8 comments:
जीवन की सच्चाई व्यक्त करती एक लाज़वाब कविता..बधाई
सबकी अपनी तीर कमाने अपना सर संधान है,
किन्तु लक्ष्य घोषित करता है किसका कहाँ निशान है।
मत्स्य वेध जो करे सभा मे उसका जय जयकार है,
और एक दिन थककर सबको सोना पाँव पसार है...
सच है ........ जीवन में लक्ष्य प्राप्त करने पर ही नाम होता है ........... बहुत अच्छी रचना है .......
सुंदर गीत.
yahi jivan hai .ham sab ki manjil ik hai lekin raste alag alag hai sundar rachna ke liye aabhaar
सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए धन्यवाद!
जबरदस्त रचना - लाजवाब गीत को पढवाने के लिए आभार
bahut sunder
अपनी -अपनी सबकी राहे ..अपना -अपना सबका सफ़र ..
तुम भी किसी के साथ चले हो ,हम भी किसी के साथ चले ...
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