Monday, June 6, 2011

कैसे लौटे मोहब्बत


जिसके होने से घर रोशनी से नहा जाता
जिसके कहने से कोई बात घर मे होती है
वो मेरा प्यार चुपचाप है दम तोड़ रहा
कैसे लौटे मोहब्बत बस यही सोच रहा

प्यार घुटता है घर मे तो फिर ऐसा करे
आकाश से करे प्यार जिए सबके लिए
लकड़ी की छत तले दम घुटता है मेरा
ले कुल्हाडी अब तोड़ दू सभी दीवारें 

इस जेल से निकल बाहर खुले मे आ
नए प्यार के रंगों से सजा दू तुमको
जैसे धरती को मिलाया है बदलिया से
ऐसे हम तुम करे प्यार खामोशी से

होंगी मजबूरिया सनम तेरी और मेरी भी
होंगे गम तंगी के भूख और बेकारी के
मत मांगो तुम हिसाब जमाने भर के
प्यार कर, हमें क्या लेना है जमाने से

16 comments:

Udan Tashtari said...

मत मांगो तुम हिसाब जमाने भर के
प्यार कर, हमें क्या लेना है जमाने से

-बस यही जज्बा होना चाहिये. उम्दा.

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

'कैसे लौटे मोहब्बत बस यही सोच रहा'
aajkal sab issi soch main doobey hue hain sahib!
kyonke kai bar janewale loutte nahi wapas.good thought.

"अर्श" said...

bahut hi gahare bhav se saraabor hai yah rachanaa.. badhaayee kubulen is khaaksaar ki..


arsh

vandana gupta said...

waah...........mohabbat ko lauta lane ka andaaz pasand aaya.

Dr. Sudha Om Dhingra said...

हरी जी,
बहुत खूब....
मत मांगो तुम हिसाब जमाने भर के
प्यार कर, हमें क्या लेना है जमाने से

ANIRUDH JAGDHARI said...

Chacha ji, Poem sahi mei achhi hai....Mei bus 3 words kehna chahonga..........Ye poem 3S hai....simple,short n sweet...kam shabdo mei sateek baat...........

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

waah!aapne to achhi rachnao ke sath bahut kuch lagaya hai blog per.aapse bahut kuch sekhne ko milta hai.thanx for beautiful tiranga.

DR.MEERA SHUKLA said...

अति सुंदर भाव है ,शब्दों को पिरोने की कला में आप प्रवीण है ......भावो की गंभीरता रचना में उजागर है ....बस आपके लिए यही कहना चाहती हूँ कि :-
मत ढूँढो मोहब्बत को इस ज़ालिम जमाने में ,
अरे दीवाने ..ये तो कैद है तेरे अफसाने में ....

अनूप शुक्ल said...

कुल्हाड़ी से दीवार तोड़ने वाले के साथ मोहब्बत कोई कैसे कर सकता है भाई! हथौड़ा /कुदाल तो लाओ कुल्हाड़ी की जगह!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्या हुआ?

vijay kumar sappatti said...

WAAH WAAH WAAH WAAH WAAH

AUR KYA KAHE.. APNE ITNI ACCHI RACHNA JO LIKH DAALI HAI ...

BADHAYI KABUL KARE..

VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

vijay kumar sappatti said...

AUR HAA JI , JALDI SE THEEK HO JAAYIYE .AAPKI KAMI KHALTI HAI

VIJAY

Satish Saxena said...

बहुत बढ़िया ! शुभकामनायें शर्मा जी !

राजीव तनेजा said...

बहुत बढ़िया....

Anonymous said...

bahut hi khoob...

A Silent Silence : Shamma jali sirf ek raat..(शम्मा जली सिर्फ एक रात..)

Banned Area News : It's difficult to recreate same emotion in remake: Aamir

दर्शन कौर धनोय said...

"फिर आई बहकी हुई रात तो सोचेंगे
चुप रहे या करे बात ये सोचेंगे
मिलकर बिछड़ना ही जो होगा इक दिन
.करे की नही मुलाक़ात यह सोचेंगे
उल्फत मे बह जाए दोनों किनारे
थम गई बरसात तो सोचेंगे
ऐसे नही फेलाएगे हम अपनी लाज का अंचल
दोगे कोई सोगात तो सोचेगे
पल भर की पहचान का क्या यंकी यारा !
थम लोगे हाथ अगर तो सोचेगे
न बचाएगे लहरों से घिरी किश्ती
तुम भी दोगे साथ तो सोचेंगे ! "

खुबसुरत कविता के लिए एक प्यारा सा उपहार ....