Saturday, October 31, 2009

राष्ट्रमंडल खेल और कुछ सुझाब राष्ट्र हित मे




जैसे जैसे राष्ट्र मंडल खेल नज़दीक आते जा रहे है दिलरुबा दिल्ली की तस्वीर को निखारने की खूब कोशिश हो रही है. दुनिया में और कही खेल आयोजित होते है तो वो देश पूरा जोर लगा देता है अधिक से अधिक पदक जीतने पर लेकिन अतिथि देवो भव: की उज्जवल परम्परा हमारे यहाँ पुरातन काल से चली आ रही है इसलिए सुरेश कलमाडी और उनके साथी खिलाडियों के प्रदर्शन से ज्यादा जोर दिल्ली को चमकाने मे लगा रहे है.

खिलाडियों की इस देश के खेल प्रशासकों को कितनी चिंता है ये तो मध्य प्रदेश में पी टी उषा के स्वागत से हम सबको पता चल ही गया है बाकी पता करने का मन हो तो खेल छात्रावासों की व्यबस्था देखने से पता चल जाएगा. जिन लोगो की ये जिम्मेदारी है कि वे देश मे खेलो का माहौल बनाए वो लोग खेलो का मखौल बनाने मे जुटे हुए हैं.

ऐसे में मुझे चिंता हो रही है कि कैसे भारत को  मिलने बाले पदक अधिक से अधिक हो सकें. और क्यों नहीं हो? सबको अपने अपने तरीके से देश भक्त होने का हक है. ये तो हमें भी पता है कि पारंपरिक खेलो में तो पदक किसी भारतीय को तकदीर से मिलेगा क्यों नहीं हम कुछ नवोन्मेष करके ऐसे खेलों को भी इन खेलों में शामिल करे जिन्हें और देश नहीं खेलते.

मेरे बड़े ब्लोगर भाई  श्री अविनाश वाचस्पति जी ( http://avinashvachaspati.blogspot.com/ )  आजकल दिल्ली की सड़को पे क्या हो कार या गाय ( http://hamkalam1.blogspot.com/2009/10/blog-post_24.html ) इस पर उनकी कलम खूब दौड़ रही है और क्यों ना दौडे अविनाश भाई तो ब्लॉग जगत की वो वला  हैं जो शीशे से पत्थर को तोड़ दे. जिसपे वो लिख दे वो खुद अपने आप ही लिखने योग्य बिषय बन जाता है बाद में भाई लोग सर पकड़ के सोचते है कि हमें ये क्यों नहीं सूझा और तब तक अविबाश भाई कोई दूसरा नया बिषय पकड़ लेते है. खैर उनके लेखन को प्रणाम करने से ही हमारा काम तो चल ही जाएगा बात क्या शुरू की और कहा पहुच गए चलो इसी बहाने बात कहने की थोड़ी कला हाथ आ जायेगी. तो पदको की संख्या बढाने के लिए मैंने अपने यार दोस्तों से चर्चा की और कुछ ऐसे नए खेल राष्ट्रमंडल खेलो मे जोड़ने का सुझाब आया है कि कमसेकम १० पदको का जुगाड़ हो जायेगा.

बैलगाडी दौड़ - इसमे बैलगाडी पर भूसा भरा होगा और उसके उपर चालाक समेत १० लोग बैठेंगे
( इस टीम के प्रबंधक और प्रशिक्षक ताऊ रामपुरिया जी होंगे वो ही किसे कहा बैठना है इसके बारे मे जानकारी देंगे और इसकी तैयारी पूरी तरह गुप्त रूप से होगी. और देशो की टीम जब तक ये जान पायेगी कि बैलगाडी उलार क्यों होती है और उसे उलार होने से बचाने के लिए बैठक व्यबस्था और बजन संतुलन कैसे कैसे बनाया जाता है तब तक हम पदक जीत चुके होंगे.

२. तांगा दौड़ - इसे भारत के किसी कसबे मे जैसे मेरा कस्बा हिंडौन सिटी है वहा आयोजित किया जाएगा और तांगे मे तीन सवारी पीछे तीन आगे २ बच्चे पीछे गोदी मे, आगे डंडे पे चालक के अलावा एक एक सवारी दोनों तरफ. कसबे की टूटी फूटी सड़को पे और देशो के तांगे पूरी दूरी तय कर लें यही गनीमत है इस दौड़ का विचार इसलिए भी कि नया दौर मे दिलीप कुमार इसमे जीत का परचम पहले ही फहरा चुके हैं. दिलीप कुमार कि इस टीम का नॉन प्लेयिंग कप्तान बना दिया जाएगा. इसमे भी भारत का पदक पक्का ही है.

३. रिक्सा दौड़ - इसकी शर्त ये होगी कि रिक्से का चालक पीछे सीट पर पति-पत्नि उनके दो छोटे बच्चे और पीछे से उल्टे बैठे हुए किशोर साला और साली या भाई बहिन बैठे हो. यहाँ मज़े की बात ये है कि यातायात सिपाही नज़दीक दिखने पर उल्टी सवारी पहले ही उतर जायेंगी और अन्य देशों की टीम को ये पता भी नहीं होगा कि रेफरी से तो निबट लेंगे पर यातायात सिपाही से या तो चालाकी से या ५ का नोट दिखा के ही आगे बढा जा सकता है. अपने अनुभव और चालाकी से ये पदक भी हमारी टीम को ही मिलेगा.

४. गाय पैदल चाल - इसमे राजधानी की व्यस्त सड़क से १० गायो के समूह को हांक के ले जाना है और सभी गाय एक साथ निर्धारित दूरी तक पहुचे

इसी तरह ऊंट गाडी, भैसा गाडी, गधा गाडी की दौड़ राखी जा सकती है और एक एक खेल मे एकल युगल और टीम के पदक रखे जा सकते है. प्रुश और महिलाओ के अलग अलग पदक ऐर मिश्रित युगल के अलग.  अगर प्रविष्टिया कम हो तो भरात की ही तीन टीम रखी जा सकती है जिससे स्वर्ण ही नहीं रजत और कास्य पदक भी हमारा ही हो.

पुनश्च: - ये सारे खेलो का सुझाब मेरी तरफ से है ब्लॉग के पाठक जिन खेलो का सुझाब देंगे उन्हें भी आगे जोड़ दिया जायेगा. वैसे एक पूरी लिस्ट तो खिलाडियों के खिलाड़ी अक्षय कुमार के पास होगी लेकिन उनमे जीत की पक्की गारंटी सिर्फ अक्षय की ही है और वो बिना अग्रिम पैसा लिए कोई खेल नहीं खेलता.

2 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

राष्‍ट्रहित में अवश्‍य हिट करें
बीच में आये उसे चिट करें।
चिट करें या करें चित्‍त
पर व्‍यवस्‍था करें वित
राष्‍ट्रमंडल खेलों में से
निकालें नोटों के बंडल।

समयचक्र said...

पंडित जी अभी भी देश में कई जगह हाथी ऊंट घोड़ा बैल और रिक्सो की दौड़ होती है .... ये तो अपने देसी गेम है ..... आज भी जबलपुर शहर के पनागर में बैलगाडी की रेस कराइ जाती है लोग बाग़ उत्साहित होकर देखने जाते है ...